Friday 8 November 2013

सुख, शान्ति और समृद्धि


आज शाम हम सब अपने मन में समृद्धि की कामना लिए लक्ष्मी-पूजन में बैठेंगे। कुछ लोग ऐसा नहीं भी करेंगे तो भी वे अपने जीवन में सुख-समृद्धि कि चाहना को नकार नहीं सकते। नकारें भी क्यूँ, ये हमारा अधिकार है, हमारा स्वभाव है। 
एक बात पर गौर किया आपने, कैसे समृद्धि के पीछे-पीछे सुख चला आया। सुख और समृद्धि का यही मिलन जीवन में शान्ति का कारण बनता है। 

हम सब किसी न किसी तरीके से यह सब जानते जरुर है, समझते भी हैं लेकिन मानने से हिचकिचाते है। समृद्धि का आशय - प्रचुरता, और दैनिक जीवन में उसकी इकाई धन।  अब न जाने क्यूँ और कब से हम सब नए यह मान लिया है कि जिस काम से हमें पैसे मिलते हों वो कभी पवित्र-पावन या आध्यात्मिक हो ही नहीं सकता। आपको नहीं लगता यही वो बात है जिस कारण या तो व्यक्ति दो चेहरों के साथ जी रहा है यानि 'स्प्लिट पर्सनलटी' या व्यक्ति आध्यात्मिक होने को अपने बूढ़े हो जाने, अपनी जिम्मेदारियों के निपटा लेने तक स्थगित किए रखता है। 

व्यक्ति अपने घर में, दोस्तों में, समाज में कुछ और तरीके से पेश आता है और अपने कार्यस्थल पर कुछ और तरीके से। वहाँ उसके मूल्य कुछ और होते है और वहाँ कुछ और। उसे लगता है जिन मूल्यों के साथ वह जीना चाहता है उन पर टिके रहकर तो पैसे कमाना सम्भव नहीं और पैसों के बिना जिंदगी चलाना भी सम्भव नहीं। इसके जवाब में कोई तर्क देने से बेहतर है स्टीव जॉब्स, सुनील दत्त, अजीम प्रेमजी, डॉ नरेश त्रेहन या प्रोफेसर यशपाल जैसे लोगों को याद करना। हो सकता है ये नाम बड़े हों पर इस कारण से इन्हें हाशिए पर डाल देने से पहले हम एक बार अपने ही चारों ओर नज़र घुमाए तो ऐसे लोग जरुर दिख जाएँगे जिन्होंने अपने काम से समाज को फायदा भी पहुँचाया तो सुख, शान्ति और समृद्धि भरा जीवन भी जीया। सिर्फ पैसा कमाने के लिए किसी काम को करना निश्चित ही हेय है लेकिन अपने काम का उचित मूल्य मिले इसमें गलत क्या है? एक बात जो यहाँ स्पष्टीकरण माँगती है वह यह कि मैं यहाँ आदर्श मूल्यों और नीतिगत आचरण की बात कर रहा हूँ, नियमों को शत-प्रतिशत पालन की पैरवी नहीं कर रहा। हमारी व्यवस्था के कुछ नियम इतने अप्रासंगिक और अव्यावहारिक है कि कई बार उनकी अवहेलना अपरिहार्य हो जाती है।

व्यक्ति के लिए शास्त्रों में चार पुरुषार्थों का उल्लेख है,- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इसका सीधा सा तात्पर्य यह हुआ कि मनुष्य सही रास्ते पर चलते हुए धन का उपार्जन करे जिससे वो अपनी कामनाओं को पूरा कर सके। ऐसा जीवन ही शान्त मृत्यु के बाद मोक्ष का अधिकारी होगा। एक योगी इन चारों में से सिर्फ धर्म और मोक्ष को चुनता है तो एक भोगी सिर्फ अर्थ और काम को लेकिन एक सद् गृहस्थ के लिए तो इन चारों में श्रम करना और इनमें सही संतुलन बनाना उसके जीवन का लक्ष्य और परीक्षा होती है। शायद इसीलिए हमारी संस्कृति में एक सद् गृहस्थ को सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त है। 

लक्ष्मी जी कमल पर विराजित है। मैं सोचता हूँ हमारे जीवन में धन-वैभव का यह श्रेष्ठ रूपक है। कमल कीचड़ में ही खिलता है, पानी का स्तर कितना भी उपर या नीचे हो कीचड़ कमल छू भी पाता। लक्ष्मी जी की इस कल्पना के साथ पूजा-अर्चना के विधान का आशय शायद यही रहा होगा कि हमें स्मरण रहे कि हमारे काम हमारे जीवन में उसी धन-वैभव को लाएँ जिस पर दुनियादारी के छींटे न लगे हों। हमारे आँगन में लक्ष्मी आए, खूब आए लेकिन कमल पर आसीन आए कीचड़ से सनी नहीं। 
मेरी ओर से भी आपके और मेरे लिए इन्हीं मंगल कामनाओं के साथ आप सभी को दिवाली कि बहुत-बहुत बधाई।  


(जैसा कि नवज्योति में दिवाली कि सुबह प्रकाशित) 
आपका,
राहुल ............    

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