Saturday 24 September 2011

A THIN LINE

हमारे संस्कार और हमारा परिवेश हमें अच्छा बनने कि बराबर याद दिलाते हैं लेकिन हम अच्छे होने कि कोशिश को भूल अच्छे लगने कि कोशिश में जुट जाते हैं. हमारा जीवन मूल्यों पर आधारित न होकर दूसरों कि इच्छाओं और अपेक्षाओं पर निर्भर हो जाता है.
हम में से सभी को थोड़ी या ज्यादा;सबको  यह शिकायत रहती है कि लोग हमारे अच्छे व्यवहार का गलत इस्तेमाल करते है, हमारा फायदा उठाते हैं. ये हमारे जीवन के वो ही महत्वपूर्ण लोग होते है जिन्हें हम अनजाने ही अच्छे होने के प्रमाण-पत्र देने का अधिकार दे बैठते है.

हमारे व्यक्तित्व का यह गुण होना ही चाहिए कि हम किसी व्यक्ति के बारें में राय न बनाएं एवं व्यक्ति और घटनाओं को अलग-अलग करके देखें. इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हम अच्छे और बुरे में भेद ही न करें. घटनाओं के पीछे व्यक्ति कि मंशा उसके चरित्र को परिलक्षित करती है और हमारा यह ही गुण जीवन में हमारी रक्षा करता है.

हमारा समाज असहमति को आक्रामकता मानता है और खुद कि इच्छाओं के सम्मान करने को अहंकार. हमारा अहम् हमारी पहचान न बने लेकिन उतना भी अतिआवश्यक है जिससे हम अपनी जानकारियों  का विश्लेषण कर सकें. हम ' धारणा '  (Judgement) न बनायें लेकिन ' सही देखे समझें ' (Right seeing). यह हमारे  आध्यात्मिक विकास का हिस्सा भी है और हमारा जीवन धर्म भी.
हम सब अपने-अपने जीवन कि डोर स्वयं संभालें. इन्हीं शुभकामनाओं के साथ अपनी बात यहीं समाप्त करता हूँ; अगले सप्ताहांत किसी और विषय पर चर्चा करेंगे.

आपका
राहुल.....

Saturday 17 September 2011

Looking Tokyo, going London.

हम क्षण भर ठहर कर अपने चारों ओर बिखरी खुबसूरत प्रकृति पर नज़र डालें तो एक गुण जो प्रकृति के हर घटक में स्पष्ट नज़र आएगा वो है संतुलन. सूर्य पूर्व में उदय  होने के लिए पश्चिम में अस्त होता है, अमावस से पूर्णिमा तक पहुँचने चाँद लयात्मक कलाएं करता है और पतझड़ वसंत के लिए होता है.
फिर ये हमारी जिन्दगी में भेंगापन क्यूँ ? क्यूँ हम देखते कुछ और है और हमारी नज़रें कंही और है ? हम जाना दिल्ली चाहते है ट्रेन बम्बई कि पकड़ते है.
 
हर व्यक्ति के मन में एक तड़प होती है कि वो अपने जीवन को कैसे गुजरेगा. मन को पता होता है कि उसके लिए क्या सही है और क्या गलत पर मन के पास तर्क नहीं होते और ये तड़प दुनिया के सफलता के मानदंडो में कहीं दब कर रह जाती है.
हम अपनी रोजमर्रा कि जिन्दगी पर नज़र डालें तो पाएंगे कि हमारे दैनिक कामों और जैसी जिन्दगी हम जीना चाहते है के बीच कोई संतुलन नहीं है. दिन - दिन मिलकर ही तो जीवन बनता है. हमारे दैनिक काम ऐसे होने चाहिए जो हमें उस जीवन कि ओर ले जाएँ. 
जीवन में इस संतुलन के लिए हमें स्वयं को अपने ही मूल  गुणधर्म को वापस याद दिलाना होगा और वह है 'हम जैसा सोचते है वैसा पाते है, चाहे हम चाहें या न चाहें'.
 
हमारे विचार उर्जा-पुंज होते है और वे समान तरंगीय क्षमताओं कि उर्जा को ही अपनी ओर आकर्षित करते है इसलिए हमें अपनी वैचारिक शक्ति को हमारे सपनो से एकरूप करना होगा. हम अपना ध्यान जैसा जीवन चाहते है उस पर केन्द्रित करें न कि रास्ते में आने वाली मुश्किलों पर. हमारी मानसिक द्रढ़ता मुश्किलों का हल स्वतः ढूंढ़ लेगी.
हमे रोज पग-पग अपने इच्छित जीवन कि ओर बढ़ना होगा. रोजमर्रा में क्या करें और क्या न करें इसके निर्णय का आधार इसे ही बनाना होगा.
हमारे जीने का अंदाज ही हमारा परिचय हो.
 
आपकी अद्वितीयता को अभिवादन के साथ.
 
आपका
राहुल...... 
 
      

Sunday 11 September 2011

Permanent address

अमर होने कि   इच्छा बहुत आदिम है. हर व्यक्ति अपने जीवन में ऐसा कुछ कर गुजरना चाहता है कि वो हमेसा ही याद रखा जाए. पद, ज्ञान, पैसा, उद्देश्यपूर्ण दान और कई दूसरे ऐसे रास्ते है जिन्हें वह अपने होने को प्रमाणित और स्थायी  करने के के लिए चुन लेता है.जीवन के संध्याकाळ में उसे यह सारी जुगत भी असफल होती दिखती है और वो इसलिए कि कहीं  व्यक्ति अपने व्यक्त होने के मूल उद्देश्य को ही भूल बैठता है और वह है प्रेम को अनुभव करना. प्रेम कि अभिव्यक्ति और अनुभूति .
 प्रेम यानि विशुद्ध प्रेम; वो शक्ति जो इस सृष्टी   को चलायमान रखे है.
 जो शक्ति इस सृष्टी को चलायमान रखे है, जो आपको और सभी को जीवित रखे है उसी कि निरंतरता ही तो आपको चिर स्थायी जीवन दे सकती है; आपको अमर बना सकती है. प्रेम वह एकमात्र भाव है जो आपको अमर बना सकता है. लोगो के दिल ही वो जगह है   जहाँ आप स्थाई रूप से रह सकते है.
                                      When  you  are  dead,
                                                                    seek  for  your  resting  place
                                      Not  in   the   earth,
                                                                    but   in   the  hearts  of  men.
                                                                                                       -  Rumi   
किसी पर निर्भर रहना प्रेम नहीं है. प्रेममय होना तो वह है कि जब आप किसी से मिले तो ऐसे मुस्कराएँ कि अगले को अंदर तक भीगों दे, जिसके साथ हो तो इस अहसास के साथ कि दुनिया में वह ही व्यक्ति जिसके साथ आप यह क्षण गुजारना चाहते थे, किसी कि बात सुनें तो आपका पूरा ध्यान उस व्यक्ति कि बात और उसकी भावनाओं पर हों. लोगों के दिलों में रहना है तो उनके दिलों तक पहुचना होगा.
 
हम इसकी शुरुआत अपने बच्चों से कर सकते है. बच्चे जो प्रकृति प्रद्दत हमारी निरंतरता के सबूत है. दुनिया में कोई है तो वे हमारे बच्चे ही है जिनसे हम अखंडित प्रेम पा सकते है. जिनके हर काम में हम सुगंध के रूप में हमेशा विद्ध्यमान रह सकते है.
 
बच्चे हमें हमारी मूल प्रकृति जो कि निःसंदेह प्रेम ही है से पुनः पहचान कराने में सहायक होते है. हमारा काम तो इतना भर है कि हम हमारी मूल प्रकृति को पहचानने और फिर उसे विस्तार दें. इस जीवन यात्रा में टकराने वाले हर व्यक्ति को आत्मीयता के अनुभव का साधन बनाएं और इस तरह लोगों के दिलों में अपना स्थायी निवास ढूंढ़ लें; अमर हो जाएँ.
 
आपके विचार मुझे उन्नत करेंगे, प्रतीक्षा में;
 
आपका
राहुल....

Sunday 4 September 2011

Let go, let god.

संवत्सरी के इस पावन पर्व पर दिल से क्षमा-याचना.

क्षमा मन का सुंदरतम भाव है. क्षमा कर पाना एक वरदान है जो हमें हमीं से मिलता है. क्षमा  कर पाने से तात्पर्य है स्वयं या किसी और  को दण्डित करने के भाव से मुक्त होना.

दैनिक जीवन में कहीं हम मान बैठते हैं की क्षमा  करने का मतलब है किसी और के दृष्टिकोण  को स्वीकार कर लेना, अच्छे और बुरे में भेद न करते हुआ समान व्यवहार करना, कोई हमारा महज़ उपयोग कर रहा हो तो सतर्क न होना या अपने मूल्यों से समझौता करना. वास्तव में यह आचरण क्षमाशीलता नहीं कायरता है. क्षमाशील होने का मतलब है अपनी निजता,आत्म सम्मान, और मूल्यों को बचाते हुआ स्वयं को एवं  किसी और को दण्डित करने के भाव से मुक्त होना.

क्षमा करने की शुरुआत स्वयं से करनी होगी. स्वयं को  क्षमा कर पाना किसी और को क्षमा कर पाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है. हम अपने जीवन में क्या कर सकते थे? हमें जीवन में क्या करना चाहिए था? हमने जैसा किया वैसा क्यूँ किया? हमने वैसा क्यूँ नहीं किया?  सोचने का यह तरीका हमें हमेशा आत्म-ग्लानि से भरा रखेगा  और  हम अपना भविष्य भी खराब कर लेंगे. इस तरह तो हम कभी अपने जीवन को खुशहाल नहीं बना पायेंगे.

जिस समय हमारे विवेक ने हमें जो कहा वह किया या नहों किया. उस समय के लिए वह ही सही था. आज हम जो भी हैं वो उन  सभी क्षणों में से होकर गुजरने का ही परिणाम है. यदि हम खुद को प्यार नहीं कर सकते. समान नहीं दे सकते तो दूसरों से ऐसी अपेक्षा करना ही व्यर्थ है.

हमें अपने लिए और अपनों के लिए शान्ति बनानी होगी.

इसी आशा और विश्वास के साथ.
मंगलमय कामनाओं के साथ अगले हफ्ते तक के लिए आज्ञा चाहूँगा.

आपका
राहुल......