Saturday 31 October 2015

अपना संसार आप रचिए



आज हर कोई व्यक्ति भीड़ में अकेला नज़र आता है; डरा हुआ, सहमा हुआ। ख़ुशी है तो बाँटे किसके साथ और दुखी है तो सम्बल कौन दे? बस, हर बार बिखरे हुए स्वयं को इकट्ठा करके आगे चलता हुआ, हर क्षण अपने अकेलेपन से जुझता हुआ। मुझे लगता है अकेलेपन से बड़ा कोई श्राप नहीं। व्यक्ति में सकने वाली सारी शारीरिक बीमारियों और मानसिक कमजोरियों की जड़ है उसका अकेलापन। यदि हम सब एकाकी महसूस करते है तो फिर एक-दूसरे का हाथ क्यों नहीं थाम लेते? स्वाभाविक है यहाँ इस प्रश्न का उठना, पर ये भी सत्य है कि हम ऐसा नहीं कर पा रहे है? क्या वजह हो सकती है? व्यक्ति इतना संकीर्ण कैसे हो गया?

'डर'- एकमात्र वजह है और यह डर देन है हमारे सामाजिक वातावरण की, उन मूल्यों की जिस पर हमारी सामाजिक व्यवस्था टिकी है। आज व्यक्ति डरा हुआ है अपने और अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर, पग-पग पर व्याप्त गला-काट प्रतिस्पर्धा को लेकर, बच्चों के भविष्य और उसके लिए आवश्यक धन को लेकर, जीवन के संध्याकाल के सुकून से गुजर पाने को लेकर और ऐसी ना मालूम कितनी चिंताएँ। साधारण सी बात है जब व्यक्ति डरा हुआ होता है तब उसे अपने अलावा किसी का ख्याल नहीं आता। फ़र्ज़ कीजिए, आप किसी जंगल से गुजर रहे है और आपके सामने शेर आकर खड़ा हो गया, ऐसे समय आपको क्या किसी को भी अपनी जान बचाने के अलावा कुछ और याद नहीं आएगा। बस, ये डर ही है जिसने हमको इतना संकीर्ण बना दिया है।

डर ने व्यक्ति को संकीर्ण बना दिया और व्यक्ति ने अपनी चिंताओं का उपाय पैसे में ढूंढ़ लिया। उसने अपने आपको बचाने के लिए अपने चारों ओर पैसे की चारदीवारी खींच ली और व्यक्ति, व्यक्ति से कटता गया। पैसे की दौड़ में हम एक-दूसरे के डर को ही तो भुना रहे है और एक-दूसरे के जीवन में चिंताएँ पैदा कर रहे है। हमारे यही सामाजिक मूल्य हमारे अकेलेपन की वजह है।

जिन मूल्यों में आप विश्वास नहीं करते उन्हें क्यूँ समाज से उधार लें? इसका मतलब यह भी नहीं कि आप बिला वजह विरोध करें जैसे किसी दिन आप बिना कपड़ों के ही घर से निकलने की सोचने लगें। सामाजिक मर्यादाओं का पालन करना ओर बात है और जीवन मूल्यों का चुनाव और बात। आप किस तरह जिएँगे, ये आप और सिर्फ आप तय करेंगे। आप किन बातों को अपने जीवन में तरजीह देंगे इसका फैसला सिर्फ आप करेंगे, कि समाज और रीती-रिवाज।

आप जब ऐसा करने लगेंगे तो स्वतः ही आप जिन्दगी में ऐसे लोगों को उपस्थित पाएँगे जिनके जीवन-मूल्य आपसे मेल खाते हों। हाँ, इतना अवश्य है कि हाथ आपको बढ़ाना होगा। धीरे-धीरे आपके चारों ओर अपना एक संसार बनने लगेगा। ऐसा संसार जिसमें लोग आपके दुःख-सुख बाँटने को आतुर होंगे। जिन्दगी की मुश्किल घड़ियों में, जब आप थक हुआ महसूस कर रहे होंगे, वे घने वृक्ष की तरह छाया तो देंगे ही, जरुरत पड़ी तो  देर के लिए आपका सामान  भी उठा लेंगे। ऐसे मित्रों के जीवन को आसन बनाने के लिए आप भी हमेशा तत्पर होंगे क्योंकि आप एक-दूसरे को बखूबी समझते है। आप के रिश्ते समान  जीवन-मूल्यों की डोर से बंधे है। एक-दूसरे पर ये भरोसा ही आपको सच्ची ख़ुशी देगा। आप संकीर्णताओं के केंचुल से मुक्त हो जिंदादिल जिन्दगी जी पाएँगे। जीवन एक उत्सव होगा।
तो आइए, कहीं ओर निवेश करने की बजाए इंसानों में निवेश करें, अपने संसार की रचना स्वयं करें।


​(पुराने पन्नों से - दैनिक नवज्योति (1/3/13)​

Saturday 24 October 2015

कम गुड़ ज्यादा मिठास




बात छोटी सी है पर है बड़ी काम की, लुभावने शब्दों में कहूँ तो सक्सेस मैनेजमेंट; वो ये कि 'हमारे अस्सी प्रतिशत लक्ष्य हमारे कुल प्रयासों के बीस प्रतिशत से ही प्राप्त होते हैं।
इसे थोड़ा खोलते हैं, चाहे आपके जॉब में टारगेट्स हों या आपके बिज़नस का प्रॉफिट, आप गौर करेंगे तो पाएँगे कि आपके 80% टारगेट्स और प्रॉफिट आपके 20% एफर्ट्स का रिजल्ट होते हैं। यानि बाकि बचे 20% टारगेट्स या प्रॉफिट के लिए आप अपना 80% समय और मेहनत देते हैं। 
आप कहेंगे, इसमें हर्ज क्या है? मैं उस 20% को क्यूँ छोड़ूँ? आखिर मुझे कुछ मिल ही रहा है। 

पर सच तो यह है कि आपको मिल नहीं रहा, आप खो रहे हैं। आप उन और जगहों पर देख ही नहीं पा रहे जहाँ ठीक उसी तरह आप अपने 20-20% से 80-80% हासिल कर सकते हैं। ये सब इसीलिए हो रहा है कि आप बिना यह सोचे कि मुझे कितने प्रयास से कितना मिल रहा है बस लगे हैं। सोचिए यदि आप अपना ध्यान सिर्फ उन जगहों पर लगा रहे होते जहाँ 20% समय और मेहनत आपको 80% दिला सकती है तो आप कहाँ होतेगणित की मानें तो आप 320% पा सकते हैं और आप हैं कि 100% से समझौता किए बैठे हैं। 

भरने के लिए खाली होना जरुरी होता है। हमारी संस्कृति खाली होने से सहज नहीं। कुछ नहीं करने का समय हमें अपने पास काम नहीं होने का आभास देने लगता है, हम अपने आपको असफल होता देखने लगते हैं और इसी डर से हमेशा कुछ कुछ करने की जुगत में लगे रहते हैंबिना यह सोचे कि जो कुछ इससे मिलने वाला है वो हमारा इतना समय और मेहनत डिसर्व भी करता है? व्यस्तता हमें सफलता का भ्रम देती है, और धीरे-धीरे हमेशा कुछ करते रहना हमारी आदत में शुमार हो जाता है। 

रुकिए, अपनी ऑडिट कीजिए उन कामों और जिम्मेदारियों से अपने आपको छुट्टी दीजिए जो  जाने कब और कैसे आपके जीवन  हिस्सा तो बन गई लेकिन आपको दे कम और ले ज्यादा रहीं है। ऐसा करना आपको देखने और सोचने का मौका देगा। कुछ ही देर में आपको वे जगहें, वे काम आपको नजर आने लगेंगे जो आपको सचमुच करने चाहिए। जिन्हें करने से आपको सन्तुष्टि भी मिलेगी और सफलता भी और दोनों का साथ आपके जीवन को सुन्दर बना देगा। 

जो मैं समझा वो ये कि 
धन के निवेश की तरह ही आपके समय और मेहनत का निवेश भी सही जगह पर हो, इसे ध्यान रखना ही कम प्रयासों में अधिक पाने का एकमात्र रास्ता है। मैं तो कहूँगा पैसे से भी ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है आप अपना समय और मेहनत कहाँ इन्वेस्ट करते है क्योंकि आपका समय और मेहनत आपके पैसे से कहीं-कहीं अधिक कीमती जो है।