Friday 30 March 2012

अपना - अपना सच




हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव को दो ही चीजें रोके है, एक तो छोटी सोच एवं दूसरी भ्रमित समझ. आज हम बात करेंगे कि कैसे हम अपनी सोच से स्वयं को सीमित कर लेते है.
हम सब ने बचपन में खूब सर्कस देखे है जिसमे हाथी जैसे विशाल और शक्तिशाली जानवर भी रिंग मास्टर के इशारे पर एक निश्चित गोले में घूमते है. इन हाथियों को बचपन से ही एक खूंटे से बाँध दिया जाता है और रस्सी कि लम्बाई उतनी ही रखी जाती है जितने बड़े घेरे में रहना उन्हें सिखाना है. कई सालों बाद जब इन्हें खोला जाता है तब भी ये उतने ही घेरे में रहते है. वे यह सोच लेते है कि इससे बाहर निकलना संभव ही नहीं है और यही उनका सच बन जाता है.

हमारी हालत भी बहुत कुछ उस हाथी जैसी ही है जिसे अपने से ज्यादा अपने बन्धनों पर भरोसा है. हम अपने बीते हुए कल के अनुभवों और अपने आस पास कि दुनिया से परिभाषित हो अपने आपको छोटा बना लेते है. हम दूसरों से ऐसे व्यवहार कि अपेक्षा करते है जिसे हम उचित मानते है और ऐसा ही वे भी हमसे चाहते है और इस तरह हम क्या है? हम क्या कर सकते है? हमें कैसे जीना चाहिए? ; अपनी आस पास कि दुनिया से उधार ले लेते है वसे ही जैसे रिंग मास्टर के बनाए घेरे में हाथी अपनी दुनिया बना लेता है. हम यह सोच लेते है कि इससे अलग, इसके आगे तो कुछ हो ही नहीं सकता जबकि सच तो यह है कि हम अपने आस पास कि दुनिया कि अपेक्षाओं को जी रहे होते है. इस तरह लोगो के बीच स्वीकार्य हो अपना जीवन सहज बना लेते है. लोगो कि यह स्वीकार्यता और जीवन की सहजता हमारी अपने बारे में बनायी गलत धारणाओं को और पक्का कर देती है.

एक मिनट के लिए हम ठिठक कर अंदर झांके तो पायेंगे कि इतना सब कर लेने के बाद भी मन संतुष्ट नहीं है, आत्मा तृप्त नहीं है. कुछ कमी सी लगती है, एक बैचेनी सी रहती है. वो इसलिए क्योंकि हर व्यक्ति का अपना - अपना सच होता है. जो चीजें मुझे सुख और शांति देती है जरुरी नहीं वह आपको भी दे. हमें उधार ली हुई सोच से अपने चारों और बनाए घेरे से बाहर निकलकर अपना सच खुद तलाशना होगा. यही हमारा जीवन उद्देश्य है जो हमें संतुष्ठी भी देगा.

इस सब को कर पाने के लिए जरुरत है सिर्फ अपने ऊपर विश्वास जगाने की. हाथी को हाथी होने पर और हमें अपने होने पर विश्वास करना होगा. हम जो असीमित क्षमताओं और संभावनाओं के धनी है.

हम इसका अभ्यास रोजमर्रा की अपनी छोटी - छोटी आदतों को चुनौती देकर कर सकते है. अपने सुबह की सैर के रास्ते और समय को बदलकर देखे, अपने पहनावें में बदलाव करें, नियत स्थान से अलग जगह सोकर देखे आदि - आदि. हम पायेंगे की पूरे विश्वास से किए इन बदलावों से हमारे आनंद में कोई कमी नहीं हुई ये सिर्फ हमारी सीमित सोच थी जो हमें बांधे थी. इस तरह ये अभ्यास जिन्दगी के महत्वपूर्ण प्रश्नों और पहलुओं के बारे में अपनी सोच को विकसित करने और विस्तार देने मे मदद करेंगे.

( जैसा की 25 मार्च को दैनिक नवज्योति के रविवारीय में प्रकाशित हुआ )
आपका 
राहुल......

Friday 23 March 2012

इंतज़ार किस बात का




हम जीवन के सही मोड़ पर खड़े है, हममें वह सब कुछ है जो हमारे जीवन को आनंदमय बनने के लिए जरुरी है तो हमें इंतज़ार किस बात का है. कौन सी बात हमें अपने दिल की सुनने को रोके है.
बौद्ध धर्म में दिन की शुरुआत करने के लिए एक अभ्यास बताया है. सुबह उठते ही एक मिनट के लिए हम कल्पना करें की हमारे दाहिने कंधे पर एक पक्षी बैठा है. उससे पूछे, ' कंही आज ही मेरा दिन तो नहीं ?' यानि मेरा आखिरी दिन तो नहीं और फिर अपनी दिनचर्या तय करें.

यह अहसास हमें छोटी - छोटी परवाहों और अपने ऊपर जबरदस्ती लादी हुई जिम्मेदारियों से मुक्त कर देगा. हम लोगों की छोटी - छोटी बातों पर नाराज़ नहीं होंगे. माफ़ करना हमारे लिए ज्यादा आसान होगा. हमें 'चाहिए' शब्द से मुक्ति मिलेगी और हम वो सब करने को प्रेरित होंगे जिसे करने का हमारा अंतर्मन कह रहा है. हमारे लिए किसी काम को करने य न करने की कसौटी यह होगी की यदि आज मेरे जीवन का आखिरी दिन है तो क्या में यही करूँगा या कुछ और. इस तरह हम जीवन को खुलकर जी पायेंगे और जीवन का हर क्षण हमारी सुगंध से महक उठेगा.

हो सकता है यह बदला व्यवहार कुछ लोगों को नाराज़ कर दे. ये वे लोग है जो हमें और हमारे जीवन को अपने तरीके से चलाना चाहते है. इसमें इनकी कोई गलती नहीं क्योंकि हम ही ने अनजाने ही अपने जीवन का नियंत्रण इनके हाथों में दे दिया था. ये लोग हमें प्रिय है तब भी इनकी नाराजगी की चिंता करने की जरुरत नहीं क्योंकि इन्हें हमारे नए व्यवहार के साथ सामंजस्य बैठाने में कुछ तो समय लगेगा और विश्वास मानिए ये ही लोग तब हमें ज्यादा गंभीरता से लेंगे, हमारा ज्यादा सम्मान करेंगे.

एक पक्ष और जो हमें आज को नहीं जीने देता वह है बीते हुए कल के अनुभव और आने वाले कल की चिंताएँ. सच तो यह है की हमारे अनुभवों की कोई उपयोगिता है भी तो इतनी भर की वे हमारे आज के निर्णयों को और बेहतर बनाने में मदद करें. कल की चिंताएँ भी बीते हुए कल से ही उपजती है. हर व्यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ दिल दुखाने वाला जरुर घटित हो चुका है ; हम सब अपने और अपनों के साथ जो कुछ अप्रिय घटित हो चुका है, से अपने भविष्य को सुरक्षित कर लेना चाहते है और इस उधेड़बुन में अपने वर्तमान को डर और चिंताओं से भर लेते है. हमारा ये डर, ये चिंताएँ उल्टे हमारे आने वाले कल को बिगाड़ने का ही काम करती है.

कुछ हद तक इन सब के लिए हमारी गहरी पैठी हुई मान्यताएँ भी दोषी है. जैसे, हम शान्ति से जीवन जीने के लिए पैसा कमाना चाहते है लेकिन यह बात हमारे गहरे पैठी है कि दंद - फंद के बिना पैसा कमाया ही नहीं जा सकता. हम ऐसा करके पैसा कमा भी लेते है और हमारी धारणा और पक्की हो जाती है लेकिन तब भी मन को शान्ति नहीं मिलती. वो इसलिए, क्योंकि हम यह मानने और जोखिम उठाने को तैयार ही नहीं होते कि मूल्यों पर आधारित जीवन जीकर भी पैसा कमाया जा सकता है और यही जीवन को सुख - शांतिमय बनाएगा.

आइए, बहुत हुआ, अब हम अपने दिल कि सुनेगें. अरे ! जब हम ही हमारी नहीं सुनेगें तो कोई हमारी क्यूँ सुनेगा?


( दैनिक नवज्योति - 18 मार्च ) 

Sunday 18 March 2012

मुझ ही में मेरी सफलता


यह घटना है उस युवक की जो कार्टूनिस्ट होने के अपने सपनो को पूरा करने में लगा था. उसने जितने अख़बारों के दरवाजे खटखटाए सबने उसे इस सलाह के साथ लौटा दिया की बेहतर है की वह किसी और काम के बारे में सोचे. काम की तलाश करते - करते उसकी माली हालत इतनी खराब हो चुकी थी की उसे एक खस्ता हालत गैराज में रहना पड़ा जिसमे जगह - जगह चूहों ने बिल बना रखे थे. खली बैठे - बैठे वह इन चूहों की अठखेलियाँ देखता और फिर के चित्र बनने लगा. एक चूहा जो कुछ ज्यादा ही शरारती था उस युवक का दोस्त बन गया और उसके चित्रों का हीरो. उसने अपने हीरो का नाम ' मिकी ' रखा और यह युवक था वॉल्ट डिज्नी. 

वॉल्ट डिज्नी की ही तरह हममें वह सब कुछ होता है जो हमारी सफलता के लिए जरुरी है. हमारा होना हममें कंही छिपा होता है ठीक उसी तरह जिस तरह एक चिड़िया में उसका उड़ पाना होता है. हमें तो बस उस चिड़िया की तरह ही दिल से उठी उड़ने की इच्छा को सुनने के लिए कान खुले रखने है, अपने उड़ पाने की क्षमताओं पर विश्वास करना है और उड़ान भरने की कोशिश में जुट जाना है चाहें कितनी भी बार कोशिश क्यों न करनी पड़े.

इसी बात को दूसरी तरफ से देखें तो हमारा अंतर्मन की आवाज़ ही वो दिशा है जहाँ सफलता हमारा इन्तजार कर रही है. कोई भी आवाज़ उसके होने का प्रमाण होती है. अन्तर्मन हमें वही करने को प्ररित करता है जिसका कर पाना हमारे लिए संभव है. दुनिया के सफलतम व्यक्ति वे ही है जिन्होंने अन्तर्मन की आवाज़ को अपना लक्ष्य बनाया. यहाँ मुझे  ' 3 इडियट्स ' का वो संवाद याद आता है जहाँ रेंचो अपने दोस्तों से कहता है की सोचो यदि लता मंगेशकर ने क्रिकेट खेला होता या सचिन तेंदुलकर ने गाना गया होता तो वे आज कहाँ होते.

तो फिर सभी तो सफल नहीं होते ? वो इसलिए क्योंकि वे अपने सपनों और अंतर्मन की आवाज़ पर विश्वास नहीं करते. सफल होने के लिए सबसे अहम् तथ्य हमारा यह विश्वास है की हम जो कुछ होना चाहते है वह सही है, हम उसके काबिल है और हममें वो सारे गुण मौजूद है जो उसके लिए जरुरी है. मुझ ही में मेरी सफलता निहित है. हमारा यह विश्वास ही हमारी लगातार कोशिशों की प्रेरणा - शक्ति बनता है.

प्रकृति ने अकेले मानव को कल्पनाशीलता का गुण दिया है. हम ही है जो गेंहूँ से रोटी की कल्पना कर सकते है और कपास से कपडे की. हममें वो शक्ति है, वो विवेक है जिससे हमें जो कुछ मिला है उसे जो कुछ चाहिए में बदल सकते है.
हम सभी ईश्वर की स्वतंत्र अभिव्यक्ति है. जिस तरह गेहूं की सफलता रोटी होने में है और कपास की कपड़ा होने में उसी तरह हमारी सफलता हमारी सच्ची अभिव्यक्ति में है. हमारा होना ईश्वर की इच्छा है, हमारा जीवन उसकी भेंट और हमारे अन्तर्मन की आवाज़ उसकी हमसे अभिव्यक्ति की चाह ; इसलिए हमारे असफल होने की तो गुंजाइश ही नहीं बचती.

सफलता की इन्ही शुभकामनाओ के साथ ;

आपका
राहुल....


जैसा की ' दैनिक नवज्योति ' में 11 मार्च को छपा.


Sunday 11 March 2012

हमारा जीवन हमारे हाथ





मैं इस स्तम्भ के सहारे एक यात्रा पर ले जाना चाहता हूँ जो हमसे हमारी पहचान करायें. किसी भी यात्रा की तरह यह भी जीवन के सिर्फ उसी मोड़ से शुरू हो सकती है जहाँ हम है. हम जीवन मैं जहाँ है जैसे है वह बिलकुल सही जगह है जहाँ से हम अपनी पसंद की जिन्दगी पा सकते है. हम बिलकुल ठीक है. तय करने भर की देर है हमारा जीवन ही हमारी अभिव्यक्ति बन जाएगा.

होता यह है की हमारा अहम् हमें यह विश्वास दिला देता है की जो कुछ भी हमें इस जीवन में भौतिक, मानसिक या आध्यात्मिक मिला है हम उससे ज्यादा के हकदार है और हम जहाँ भी है उसके लिए हमारा भाग्य या परिस्थितियाँ दोषी है.
भाग्य और परिस्थितियों की यह गुलामी हमें आज कैसे जियें को चुनने के प्रति लापरवाह बना देती है जिस पर वास्तव में हमारा कल टिका है.

वास्तव में हमारा आज भूतकाल में चुने विकल्पों का नतीजा है. हमने वो चुना जो हमारी समझ के हिसाब से समय, काल और परिस्थितियों के अनुरूप था. सच तो यह है की हमारा आज हमारी चेतना (कोंशियसनेस) और जागृती (अवेयरनेस) का दर्पण है और कल को बेहतर बनाने के लिए हमें आज अपनी चेतना और जागृती के स्तर को बढ़ाना होगा. बेहतर विकल्पों को चुन पाने के लिए अपनी समझ को विकसित करना होगा.

सच तो यह है कि अपने जीवन - अनुभवों के लिए सिर्फ और सिर्फ हम ही जिम्मेदार है. जिम्मेदारी का यह अहसास अपने आपको कोसने के लिए नहीं बल्कि मन में यह विश्वास जगाने के लिए है कि यदि में अपने अनुभवों के लिए स्वयं जिम्मेदार हूँ तो भविष्य में होने वाले अनुभवों को बेहतर बना पाना भी मेरे ही हाथ में है.

हम अपने जीवन कि तुलना स्कूल से कर सकते है जहाँ हमें पढाई पहली कक्षा से ही शुरू करनी होती है चाहें हम दाखिला किसी भी उम्र में क्यूँ न लें. जैसे - जैसे हम बड़ी कक्षाओं में आते है हमें अपने विषय - चुनाव करने होते है. हम जीवन में वही बनते है जिन विषयों को हमने सिखाना चुना था. बायलोजी का चुनाव कर कोई संगीतज्ञ नहीं बन सकता, डॉक्टर ही बनेगा लेकिन एक डॉक्टर ' आज ' संगीत सीखना चुन सकता है.

आईए, इस यात्रा कि शुरुआत इस अहसास के साथ शुरू करें कि जीवन में हम जहाँ है वह बिलकुल सही जगह है. हमें तो बस थोडा और चेतन होना है थोडा और जागृत होना है तो कल का आज से बेहतर होना निश्चित है.

आपका...
राहुल 

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नई शुरुआत 




आप मुझे बधाई दे सकते है. पिछले सप्ताह से मेरा कॉलम " दैनिक नवज्योति " में छपने लगा है जो हर रविवार को प्रकाशित होगा. ये विचार मैंने पिछले रविवार को नवज्योति में साझा किए थे. 

Saturday 3 March 2012

Life is Beautiful




जीना इसी का नाम है 




एक बार मेरे प्रिय लेखक ऐलन कोहेन अपने ही शहर के ' ईस्ट माउइ रिफ्यूज ' केंद्र को देखने गए. यह केंद्र लाइलाज समझी जाने वाली बीमारीयों, सड़क दुर्घटना में बुरी तरह से घायल या किसी और वजह से हुआ बेसहारा पशु - पक्षियों के इलाज और सेवा में समर्पित है. इसे एक दम्पति सिलवान और सूजी चलाते है. इस फार्म में उस समय करीब 400 पशु -पक्षी थे.
ऐलन जब वहाँ पहुंचे तो उनका स्वागत सिलवान और ऑस्ट्रलियन शीप डॉग ने किया जो अँधा था. फार्म में घूमते हुआ वो उस बिल्ली से भी मिले जो एड्स से पीड़ित थी.सिलवान ने उसके जख्मों पर एंटी - बायोटिक लगते हुआ बताया की ये दवाईयाँ उस पर लागू हो गयी है और उसकी तबियत तेजी से सुधर रही है.
फार्म पर घूमते -घूमते ऐलन ने अपने प्रिय पक्षी तोते के बारे में पूछा तो सिलवान उन्हें अपने ऑफिस में ले गए जहाँ छोटे - छोटे कार्डबोर्ड के खानों में रखे पक्षियों को सूजी आईड्रोपर से खाना खिला रही थी. वहाँ उसने ऐलन को ब्लू से मिलवाया.
सिलवान ने बताया कि इसके मालिक इसकी सुन्दरता देखकर इसे ले तो आये लेकिन उन्हें तोते का रख - रखाव नहीं आता था. उन्होंने उसे अलमारी में बंद कर दिया. घुप्प अँधेरे में तीन साल बंद रहने कि वजह से धीरे - धीरे उसके सारे पंख चले गए लेकिन अब इस खुले वातावरण में रहते - रहते उसके सारे पंख वापस आ गए.

ईश्वर या प्रकृति ने हम सभी को असीमित क्षमताएं और असीमित संभावनाएं दी है बशर्ते हम उन्हें काम में लें वरना वे ताते के पंखों कि तरह गायब हो जाती है. यदि किसी कारण से गायब हो भी जाए तो भी घबराने कि कोई बात नहीं है क्योंकि खुले मन से हम कोशिश करें तो ताते के पंखों की ही तरह वे वापस मिल भी जाती है.

फार्म पर पूरा घूम लेने के बाद जब ऐलन ने सिलवान से पूछा की ये सब कैसे शुरू हुआ तो उसने बताया की सूजी शांति से मरने माउइ आई थी, उसे टर्मिनल कैंसर था और डॉक्टर्स जवाब दे चुके थे. यहाँ वह एक चीनी डॉक्टर से मिली जिसने जड़ी - बूटियां देते हुआ हिदायत दी की ये तब ही प्रभावी होंगी जब वो अपने आपको किसी ऐसे काम में व्यस्त कर ले जो उसे आत्मिक सुख और संतुष्टी दे.
यह तब की बात है जब हम पहले पहल मिले थे और पाया की हम दोनों को ही पशु - पक्षियों से बेहद लगाव है और यही हमारे प्रेम का कारण बना.

प्रेम एक दुसरे की आँखों में नहीं वरन  अपनी - अपनी  आँखों से दुनिया को एक ही तरह से देखते हुए जीवन - उत्सव का आनंद मनाने में होता है. प्रेम में वे ही है जो दुनिया को एक ही नज़र से देखते है.

वे लोग पेट शॉप से किसी  बीमार कुत्ते को लाते और उसका इलाज और सेवा करते और ठीक होने पर लोटा देते . धीरे - धीरे उनके जूनून की खबर आस पास के लोगो में फैलने लगी और अब तो लोग स्वयं बीमार और घायल पशु - पक्षियों को उनके पास छोड़कर जाने लगे.
सूजी को तो जैसे जीवन उद्देश्य मिल गया था; जितनी सेवा करती उतना ही उसका दर्द कम होता जा रहा था. कुछ महीनों बाद जब हम डॉक्टर के पास गए तो टूयमर जा चुका था और सिलवान ने ऐलन को बताया यह करीब तेरह साल पुरानी बात है.

जो काम सच्चा  आनंद और संतुष्टी दे वही हमारा जीवन उद्देश्य है और यही जीवन की सारी समस्याओं का उपचार भी.

जीवन आनंद और आत्मिक संतुष्टी की शुभकामनाओं के साथ.
आपका

राहुल......