Saturday 4 February 2017

शिकायत जरुरी




बहुत बड़े संयुक्त परिवार के मुखिया हैं वे। गर्व और संतुष्टि के भाव से बता रहे थे, "मैंने तो अपने परिवार की सारी लड़कियों को विदा करते समय ही कह दिया था, बेटा! कभी अपने ससुराल से कोई शिकायत लेकर मत आना। और सभी ने आज तक तो मेरी बात रखी है।" कई लोग थे हम, किसी शादी में ही मिलना हुआ था और उनके अनुभवों का लाभ ले रहे थे। उनकी बात सुन हम सब की आँखों में प्रशंसा के भाव थे लेकिन मेरी आँख में शायद कोई किरकिरी रल रही थी। बात कानों को तो अच्छी लग रही थी  पर दिल अपने अन्दर आने नहीं दे रहा था। और मेरा दिमाग, बिना पूछे ही काम पर लग गया। 

कोई शिकायत ना लायें? तो बिटिया किसके पास जाए? क्या हर शिकायत गलत ही होती है? क्या शान्ति, सुकून और अच्छा लगने के नाम पर वो बस 'एडजस्ट' करते चली जाए?
नहीं, ऐसा तो किसी हालत में नहीं होना चाहिए। 
ये मतलब शायद उन बुजुर्ग का भी नहीं रहा होगा। वे कहना चाहते होंगे कि बिटिया वहाँ सब ही से अच्छे से पेश आए। नए रिश्तों को स्वीकारे, और सुने यह मानकर की कहने वाला भी उसका अपना है। ये रिश्तों के मिट्टी का खाद-पानी होगा जो दाम्पत्य-जीवन के वृक्ष को हरा-भरा रखेगा। 
कोई बुजुर्ग और क्या 'भलावण' देगा भला। 

लेकिन परम्पराओं से चले आ रहे ये शब्द इतनी अच्छी बात को कितने गलत अर्थों के साथ पहुँच रहे थे। जैसे उसके लिए सारे दरवाजे बन्द हो गए हो। जो है, जैसा है उसे बस निभाना है। उसे ही अपने आप को बदलना है क्योंकि यही हिदायत मिली है उसको। और हम, उसके शिकायत ना करना उसका सुखी होना समझ लेते हैं। पर, हम जानते हैं कई बार ऐसा नहीं भी होता। 

बचपन से हर छोटी बात में उसकी मदद को तैयार रहते हम माँ-बाप, जिन्दगी के इतने अहम पड़ाव पर उसे यूँ अकेला कैसे छोड़ सकते हैं? जब भाई-बहनों को सुलह-सफाई की जरुरत होती है, तो नव-दम्पति को ऐसी जरुरत हो इसमें गलत क्या है? फिर छोटे बच्चों को समझाना तो आसान होता है जबकि बड़े बच्चों का 'ईगो' को आकार ले चुका होता है। हाँ, ये जरूर एहतियात बरतनी होगी कि हम किसी का पक्ष ना लें, दोनों को पूछें, सुनें और उनकी मदद करें। लेकिन यदि सचमुच हमारी बिटिया को कोई शिकायत है तो उसे भरोसा होना चाहिए कि कहीं हो न हो दुनिया में एक जगह है जहाँ जाकर वो अपना दिल हल्का कर सकती है, जहाँ से कोई न कोई रास्ता तो अवश्य निकलेगा। 

तो जो मैं समझा वो ये कि,
शिकायत तो करनी होगी, और शिकायत करना कतई गलत नहीं होता। बल्कि शिकायत तो वही करता है जिसमें आत्म-विश्वास हो। पर अकेले आत्म-विश्वास का होना भी तो काम नहीं आता। कई बार आत्म-विश्वास हो भी तो हम सब के पास शिकायत करने की जगह नहीं होती। खुशकिस्मत होते है जिनके पास कोई होता है जिसके पास वे अपनी शिकायत कर सकें! 
तो जवाब में प्रश्न उठता है कि हम किन-किन को वो भरोसा दिला पा रहे हैं? हमारे कितने अपने निर्भीकता से हमारे पास आ अपनी शिकायत कर सकते हैं? और यदि नहीं, तो ऐसा कर पाने के लिए हम क्या कर रहे हैं?