Thursday 26 February 2015

दिल की अपनी वजहें




आज हम विश्वास खोते जा रहे हैं; विश्वास अपने पर, अपनों पर। नाउम्मीदी ने हमें घेर रखा है। विश्वास है तो सिर्फ एक बात का कि कुछ नहीं हो सकता। और यही कारण है कि कुछ नहीं होता। आपको याद होगा, पिछली बार हमने बात की थी कि जैसा हम देखते-सुनते है वैसा ही मानने लगते है और धीरे-धीरे उसी में विश्वास करने लगते है, इसलिए जरुरी है इस बात के लिए सतर्क रहना कि हम क्या देखते और सुनते हैं। जब इस बात का होश रहने लगता है तो एक दूसरी मुश्किल आन खड़ी होती है, ऐसा देखने-सुनने को मिलता ही नहीं जो उम्मीदों में हमारे विश्वास को जमा सके। तो क्यूँ न इस स्तम्भ में हम हर बार किसी ऐसी सच्ची घटना की बात करें जो ये काम करती हो। 

बात अमेरिका की है, ऐन कार्ल से बहुत प्यार करती थी। वे एक-दूसरे को लम्बे अरसे से जानते थे पर जब भी बात शादी की आती वो टाल जाती। वास्तव में उसके अवचेतन में माँ की एक बात बैठी थी जो उन्होंने उसे बचपन में कभी कही थी। माँ ने कहा था, दुनिया में हर चीज का एक दिन अन्त हो जाता है और यह बात रिश्तों पर भी लागू होती है। ऐन कार्ल को किसी हालत में खोना नहीं चाहती थीं इसलिए शायद सोच लेती थी कि मैं रिश्ता बनाऊँगी ही नहीं तो उसका अन्त कैसे होगा। वो अनजाने ही किस्मत को छकाने में लगी थी और इस तरह 11 साल बीत गए। समय के साथ उम्र भी तो बढ़ जाती है, इन दिनों कार्ल की तबियत कुछ गड़बड़ रहने लगी थी। चलते-चलते हाँफना, पसीना आना, सीने में हल्का-हल्का दर्द। दोनों को अंदेशा हुआ कहीं कोई हार्ट-प्रॉब्लम तो नहीं? डॉक्टर को दिखाया, उन्होंने कुछ टेस्ट लिख दिए। रिपोर्ट आयी, कोई ब्लॉकेज नहीं। डॉक्टर ने फिर आगे के कुछ टेस्ट लिखे तो मालूम चला कि कार्ल के हार्ट की आधी से ज्यादा कोशिकाएँ मर चुकी हैं। ऐन ने जब पूछा कि क्या इन्हें दवाइयों या और किसी तरह पुनर्जीवित किया जा सकता है? डॉक्टर्स ने बड़ी मायूसी से कहा,'नहीं।' बस एक विशेष दवाई लिख दी और कहा अगर कोशिकाएँ इसी तरह ख़त्म होती हैं तो हार्ट-ट्रांसप्लांट एक मात्र रास्ता बचेगा।  

अस्पताल से घर जाते हुए ऐन को लगा जैसे कार्ल उसकी जिन्दगी से छूटा जा रहा है। वो अचानक कह उठी, 'कार्ल, अब हमें शादी कर लेनी चाहिए।'कार्ल ने इतना ही कहा,'हाँ'। अगले ही हफ्ते बड़े ही सादे समारोह में घरवालों और ख़ास मित्रों की उपस्थिति में उनकी शादी हो गयी। शादी के कुछ ही दिनों में उसे अहसास होने लगा कि जितना वो सोचती थी कार्ल उससे कहीं अधिक उससे मोहब्बत करता है। यहाँ तक कि अब तक उसने घर की हर जगह कुछ जगह खाली छोड़ रखी थी जैसे किसी और के आने का इन्तजार हो। इधर वो दवाई कार्ल को मानसिक और शारीरिक रूप से और कमजोर कर रही थी। कुछ महिनों बाद उसने दवाई लेना बन्द कर दिया। धीरे-धीरे उसकी तबियत ठीक रहने लगी थी। ऐन बहुत खुश थी, उसने सोचा ये दवाई का कमाल है पर जब उसे सच्चाई मालूम चली तो मन ही मन डरने लगी। वापस टेस्ट्स करवा लेना ही इस शंका का एकमात्र निवारण था।  

टेस्ट के रिजल्ट्स हैरतअंगेज थे और डॉक्टर्स परेशान। कार्ल की ह्रदय-कोशिकाएँ पुनर्जीवित हो चुकी थीं। ये मेडिकल हिस्ट्री में पहला केस था, थ्योरीज़ के विपरीत। पूरी दुनिया की मेडिकल कॉन्फ्रेंसेस और डॉक्टर्स के बीच ये केस डिस्कस हुआ और आखिर वे केवल इस निष्कर्ष पर पहुँच पाये की कार्ल ऐन से इतना प्यार करता था, इतनी शिद्दत से उसके साथ रहना चाहता था कि उसके दिल ने एक तरकीब खेली जिसे उसका दिमाग भी नहीं जानता था। वो तरकीब ये थी की ह्रदय की कोशिकाओं ने कुछ समय के लिए अपनी साँस रोक ली, अपने आपको लकवा ग्रस्त कर लिया और ऐन कह उठी, अब हमें शादी कर लेनी चाहिए। कहाँ वो किस्मत को छकाने निकली थी कहाँ प्रकृति ने उसे छका दिया। 

देखा आपने, अपनी बात कहने के दिल के अपने तरीकें होते है जिसकी अपनी वजहें होती है जिसे वही जानता है। हम सही-गलत के तर्क-वितर्कों में उलझ दिल को नकारते है। शायद हमारी आदत पड़ चुकी कि हम किसी काम को तब ही करते है जब तक यह तय न हो जाए की इसे करने से होगा क्या? क्या सोच हम ऐसा करते है ? क्या किसी व्यक्ति के लिए प्रकृति की योजनाओं को पहले से जान पाना सम्भव है? नहीं ना, पर वे सारी योजनाएँ हमारे दिल में दर्ज है, उन्हें हमारा अन्तस जानता है। तो बेहतर है हम अपने अंदर से आ रही आवाज को सुने, उस पर भरोसा करें और उस ओर कदम बढ़ाएँ। हमारा ऐसा करना उस प्रकृति के साथ सहयोग करना होगा जो रात-दिन हमारा भला करने में लगी है। विश्वास और उम्मीद की ये यात्रा अपनी मान अपने से ही शुरू करनी होगी तब ही ये एक दिन अपनों तक पहुँचेगी।      

राहुल हेमराज ...........


घर-वापसी

मित्रों,
नए साल में कुछ उलझन रही, वजह थी नये फेसबुक पेज की व्यस्तता। अखबार के लिए भी नहीं लिखा लेकिन मजा नहीं आया। खुला हाथ जो यहाँ मिलता है और कहीं नहीं। फरवरी से अखबार में लिखना शुरू किया और आज से फिर आपके सामने हाजिर हूँ। 
सेकंड सन्डे को दैनिक नवज्योति में मेरा कॉलम छपता है, कॉलम का नाम भी यही है, उसी को मैं अगले दिन यहाँ पोस्ट कर दूँगा। 
एक शिकायत, आपके कमेंट नहीं आते, आशा करता हूँ अब ये सहयोग भी मिलेगा।
धन्यवाद,
राहुल_