Wednesday 18 May 2016

जो नहीं उसकी जरूरत भी नहीं



जब आचार्य विनोबा भावे जैसा व्यक्ति कहे कि, "जो गुण अपने में नहीं है, वह गुण अपने में लाने की कोशिश नहीं करनी है", तो ऐसा नहीं लगता जैसे सिर पर न जाने कब से रखा टनों बोझ किसी ने नीचे उतार, रख दिया हो। पर आप चौंकते भी हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है? अपनी कमियों को देखना और फिर उसमें सुधार करना, ये बात तो हम उस पहले दिन से रट रहे हैं जिस दिन से हम कुछ समझने लगे थे।हम आज जो हैं वो उन सुधारों का और उन कमियों का जो हम नहीं सुधार पाए, का जोड़ ही तो हैं। और जो बातें हम नहीं सुधार पाए, उनका आज भी हमें अफसोस है। फिर ऐसा कैसे हो सकता है? जो गुण अपने में नहीं है, वही तो लाने की कोशिश करनी है। यही तो बेहतर इन्सान बनने का फलसफा है, पर्सनल्टी-डेवलपमेंट का बेसिक सब्जेक्ट मैटर। और वे हैं कि कह रहे हैं, जो गुण अपने में नहीं है, वह गुण अपने में लाने की कोशिश नहीं करनी है। 

वे आगे लिखते हैं, "दूसरों के गुणों के लिए आदर बढ़ाना होगा और अपने गुणों का विकास करना होगा। ......... हमारे में दोष भी होंगे। जिन मनुष्यों में वे दोष न हों, उनका द्वेष न करें।" यहाँ आकर तो वे जैसे पूरी तरह आजाद ही कर देते हैं। हमारे में दोष होंगे ही, और ये कोई अफसोस की भी बात नहीं। हमें तो सिर्फ अपने गुणों का विकास करना है यानि हम सब में कोई न कोई गुण, कोई न कोई खास बात है, इतना भी तय है। हमारे में, हम सब में कई ऐसी बातें भी होंगी जो हमारे में नहीं होनी चाहिए, इन्हें सहर्ष स्वीकार करना होगा, यहाँ तक कि जिनमें वे दोष नहीं हैं उनसे तुलना करने की भी कोई जरुरत नहीं। आपके कुछ दोष आपको किसी तरह कमतर नहीं बनाते। 
हैं न ! पूरी आजादी, पर ये आजादी भी है हर आजादी की तरह एक जिम्मेदारी के साथ कि आपको अपने गुणों का बढ़ाना होगा। 

अपने गुणों को बढ़ाना होगा, स्वाभाविक है पर जो नहीं है उसे लाने की कोशिश ही न करना ,......... निश्चित ही कोई गहरी बात होगी, मैं काफी दिनों तक मथता रहा। समझना चाहता था इसके पीछे का विज्ञान। फिर एक दिन सूझा कि इसे उलट कर देखते हैं और जैसे ही ऐसा किया पूरी कहानी समझ में आ गयी। कैसे किसी व्यक्ति की एक गलत आदत धीरे-धीरे उसमें सारी गलत आदतें लगवा देती है। जैसे एक चोर चोरी करते-करते किसी दिन बड़ा हाथ मार ले तो जुआ खेलने लगता है। जुआरियों के साथ बैठ कर शराब और फिर लालच में आकर कोई बड़ा अपराध, हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य। उसने अपनाया था एक अवगुण को पर लग गए धीरे-धीरे सारे। वैसे ही जब हम उस गुण को पालने-पोसने लगते हैं जो हमारे में हैं तो एक सीमा तक बढ़ जाने के बाद वो स्वतः दूसरे गुणों को आकर्षित करने लगता है। और धीरे-धीरे आप में वे सारे अच्छे गुण भी आने लगते हैं जिसके लिए आपने अलग से कोई प्रयास किए ही नहीं। जैसे एक करुणा से भरा व्यक्ति किसी से क्या झूठ बोलेगा, अहिंसा में तो उसका विश्वास होगा ही, और सेवा की तरफ स्वतः उन्मुख भी। 

तो जो मैं समझा,
वो ये था कि हम सब में कोई न कोई खास बात है। प्रकृति ने एक भी ऐसा इन्सान नहीं बनाया जिसे कोई विशेष गुण न दिया हो। हमें उसे पहचानना कर उसे बढ़ाना होगा। यदि आप में सच बोलना है, या दूसरों की दुखों को कम करना अच्छा लगता है, या फिर आप अपने काम में ईमानदार बने रहना चाहते हैं या कोई और बात,- आप बस इन्हें ही अपने आप में बढ़ाइए। प्रकृति ने आपके बढ़ने का यही रास्ता चुना है। जो आप में नहीं है, यदि वे जरुरी हैं तो इसी रास्ते मिलेंगे। इसके साथ गाँठ बाँध लीजिए कि आप में जो नहीं है उसका एक मिनट भी दुख नहीं मनाना है, ये भी प्रकृति का ही चुनाव है। जिनमें है, वो उनका रास्ता है। आप सिर्फ अपने रास्ते पर चल सकते हैं इसलिए इस बात को लेकर न तो अपने आप को कमतर समझने की जरुरत है और न ही उन रास्तों पर पहुँचने की कोशिश करने की दरकार।