Friday 23 March 2012

इंतज़ार किस बात का




हम जीवन के सही मोड़ पर खड़े है, हममें वह सब कुछ है जो हमारे जीवन को आनंदमय बनने के लिए जरुरी है तो हमें इंतज़ार किस बात का है. कौन सी बात हमें अपने दिल की सुनने को रोके है.
बौद्ध धर्म में दिन की शुरुआत करने के लिए एक अभ्यास बताया है. सुबह उठते ही एक मिनट के लिए हम कल्पना करें की हमारे दाहिने कंधे पर एक पक्षी बैठा है. उससे पूछे, ' कंही आज ही मेरा दिन तो नहीं ?' यानि मेरा आखिरी दिन तो नहीं और फिर अपनी दिनचर्या तय करें.

यह अहसास हमें छोटी - छोटी परवाहों और अपने ऊपर जबरदस्ती लादी हुई जिम्मेदारियों से मुक्त कर देगा. हम लोगों की छोटी - छोटी बातों पर नाराज़ नहीं होंगे. माफ़ करना हमारे लिए ज्यादा आसान होगा. हमें 'चाहिए' शब्द से मुक्ति मिलेगी और हम वो सब करने को प्रेरित होंगे जिसे करने का हमारा अंतर्मन कह रहा है. हमारे लिए किसी काम को करने य न करने की कसौटी यह होगी की यदि आज मेरे जीवन का आखिरी दिन है तो क्या में यही करूँगा या कुछ और. इस तरह हम जीवन को खुलकर जी पायेंगे और जीवन का हर क्षण हमारी सुगंध से महक उठेगा.

हो सकता है यह बदला व्यवहार कुछ लोगों को नाराज़ कर दे. ये वे लोग है जो हमें और हमारे जीवन को अपने तरीके से चलाना चाहते है. इसमें इनकी कोई गलती नहीं क्योंकि हम ही ने अनजाने ही अपने जीवन का नियंत्रण इनके हाथों में दे दिया था. ये लोग हमें प्रिय है तब भी इनकी नाराजगी की चिंता करने की जरुरत नहीं क्योंकि इन्हें हमारे नए व्यवहार के साथ सामंजस्य बैठाने में कुछ तो समय लगेगा और विश्वास मानिए ये ही लोग तब हमें ज्यादा गंभीरता से लेंगे, हमारा ज्यादा सम्मान करेंगे.

एक पक्ष और जो हमें आज को नहीं जीने देता वह है बीते हुए कल के अनुभव और आने वाले कल की चिंताएँ. सच तो यह है की हमारे अनुभवों की कोई उपयोगिता है भी तो इतनी भर की वे हमारे आज के निर्णयों को और बेहतर बनाने में मदद करें. कल की चिंताएँ भी बीते हुए कल से ही उपजती है. हर व्यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ दिल दुखाने वाला जरुर घटित हो चुका है ; हम सब अपने और अपनों के साथ जो कुछ अप्रिय घटित हो चुका है, से अपने भविष्य को सुरक्षित कर लेना चाहते है और इस उधेड़बुन में अपने वर्तमान को डर और चिंताओं से भर लेते है. हमारा ये डर, ये चिंताएँ उल्टे हमारे आने वाले कल को बिगाड़ने का ही काम करती है.

कुछ हद तक इन सब के लिए हमारी गहरी पैठी हुई मान्यताएँ भी दोषी है. जैसे, हम शान्ति से जीवन जीने के लिए पैसा कमाना चाहते है लेकिन यह बात हमारे गहरे पैठी है कि दंद - फंद के बिना पैसा कमाया ही नहीं जा सकता. हम ऐसा करके पैसा कमा भी लेते है और हमारी धारणा और पक्की हो जाती है लेकिन तब भी मन को शान्ति नहीं मिलती. वो इसलिए, क्योंकि हम यह मानने और जोखिम उठाने को तैयार ही नहीं होते कि मूल्यों पर आधारित जीवन जीकर भी पैसा कमाया जा सकता है और यही जीवन को सुख - शांतिमय बनाएगा.

आइए, बहुत हुआ, अब हम अपने दिल कि सुनेगें. अरे ! जब हम ही हमारी नहीं सुनेगें तो कोई हमारी क्यूँ सुनेगा?


( दैनिक नवज्योति - 18 मार्च ) 

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