Saturday 24 September 2011

A THIN LINE

हमारे संस्कार और हमारा परिवेश हमें अच्छा बनने कि बराबर याद दिलाते हैं लेकिन हम अच्छे होने कि कोशिश को भूल अच्छे लगने कि कोशिश में जुट जाते हैं. हमारा जीवन मूल्यों पर आधारित न होकर दूसरों कि इच्छाओं और अपेक्षाओं पर निर्भर हो जाता है.
हम में से सभी को थोड़ी या ज्यादा;सबको  यह शिकायत रहती है कि लोग हमारे अच्छे व्यवहार का गलत इस्तेमाल करते है, हमारा फायदा उठाते हैं. ये हमारे जीवन के वो ही महत्वपूर्ण लोग होते है जिन्हें हम अनजाने ही अच्छे होने के प्रमाण-पत्र देने का अधिकार दे बैठते है.

हमारे व्यक्तित्व का यह गुण होना ही चाहिए कि हम किसी व्यक्ति के बारें में राय न बनाएं एवं व्यक्ति और घटनाओं को अलग-अलग करके देखें. इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हम अच्छे और बुरे में भेद ही न करें. घटनाओं के पीछे व्यक्ति कि मंशा उसके चरित्र को परिलक्षित करती है और हमारा यह ही गुण जीवन में हमारी रक्षा करता है.

हमारा समाज असहमति को आक्रामकता मानता है और खुद कि इच्छाओं के सम्मान करने को अहंकार. हमारा अहम् हमारी पहचान न बने लेकिन उतना भी अतिआवश्यक है जिससे हम अपनी जानकारियों  का विश्लेषण कर सकें. हम ' धारणा '  (Judgement) न बनायें लेकिन ' सही देखे समझें ' (Right seeing). यह हमारे  आध्यात्मिक विकास का हिस्सा भी है और हमारा जीवन धर्म भी.
हम सब अपने-अपने जीवन कि डोर स्वयं संभालें. इन्हीं शुभकामनाओं के साथ अपनी बात यहीं समाप्त करता हूँ; अगले सप्ताहांत किसी और विषय पर चर्चा करेंगे.

आपका
राहुल.....

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