Sunday 4 September 2011

Let go, let god.

संवत्सरी के इस पावन पर्व पर दिल से क्षमा-याचना.

क्षमा मन का सुंदरतम भाव है. क्षमा कर पाना एक वरदान है जो हमें हमीं से मिलता है. क्षमा  कर पाने से तात्पर्य है स्वयं या किसी और  को दण्डित करने के भाव से मुक्त होना.

दैनिक जीवन में कहीं हम मान बैठते हैं की क्षमा  करने का मतलब है किसी और के दृष्टिकोण  को स्वीकार कर लेना, अच्छे और बुरे में भेद न करते हुआ समान व्यवहार करना, कोई हमारा महज़ उपयोग कर रहा हो तो सतर्क न होना या अपने मूल्यों से समझौता करना. वास्तव में यह आचरण क्षमाशीलता नहीं कायरता है. क्षमाशील होने का मतलब है अपनी निजता,आत्म सम्मान, और मूल्यों को बचाते हुआ स्वयं को एवं  किसी और को दण्डित करने के भाव से मुक्त होना.

क्षमा करने की शुरुआत स्वयं से करनी होगी. स्वयं को  क्षमा कर पाना किसी और को क्षमा कर पाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है. हम अपने जीवन में क्या कर सकते थे? हमें जीवन में क्या करना चाहिए था? हमने जैसा किया वैसा क्यूँ किया? हमने वैसा क्यूँ नहीं किया?  सोचने का यह तरीका हमें हमेशा आत्म-ग्लानि से भरा रखेगा  और  हम अपना भविष्य भी खराब कर लेंगे. इस तरह तो हम कभी अपने जीवन को खुशहाल नहीं बना पायेंगे.

जिस समय हमारे विवेक ने हमें जो कहा वह किया या नहों किया. उस समय के लिए वह ही सही था. आज हम जो भी हैं वो उन  सभी क्षणों में से होकर गुजरने का ही परिणाम है. यदि हम खुद को प्यार नहीं कर सकते. समान नहीं दे सकते तो दूसरों से ऐसी अपेक्षा करना ही व्यर्थ है.

हमें अपने लिए और अपनों के लिए शान्ति बनानी होगी.

इसी आशा और विश्वास के साथ.
मंगलमय कामनाओं के साथ अगले हफ्ते तक के लिए आज्ञा चाहूँगा.

आपका
राहुल......

No comments:

Post a Comment