Friday 9 August 2013

आप कहाँ रहते है?


पिछले सोमवार को जापान के मिनामी उरावा स्टेशन पर ट्रेन और प्लेटफ़ॉर्म के बीच के गैप में एक 30 वर्षीय महिला फंस गयी। जैसे ही यात्रियों को मालूम चला उन्होंने मिलकर एक साथ उस 32 हजार किलो की बोगी को धक्का दिया और बोगी को हल्का सा झुका दिया। बस फिर क्या था, महिला को सुरक्षित निकाल लिया गया। उन्हें हल्की सी  खरोंचे भर आयी और वह ट्रेन, आठ मिनट की देरी से अपने गंतव्य के लिए रवाना हो गयी।

इस घटना से मुझे एक छोटी सी कहानी याद हो आयी। एक व्यक्ति मृत्यु पश्चात् यमराज के सामने पहुँचा। चित्रगुप्त से उसकी जिन्दगी का लेखा-जोखा सुनने के बाद यमराज ने खुश होकर उसे स्वर्ग दिया। उस पुण्यात्मा ने इच्छा जाहिर की, कि वो स्वर्ग जाने से पहले एक बार नर्क भी देखना चाहता है। सबसे पहले उसे नर्क ले जाया गया। दूर से लोगों के रोने की आवाजें आ रही थी। उसे लगा, जरुर उन पर भयंकर अत्याचार हो रहे होंगे। पास जाने पर मालूम चला, वे सब तो भूख से बिलख रहे थे। अरे ! ये क्या उनके सामने स्वादिष्ट भोजन भी पड़ा था लेकिन उनके हाथ में अपने हाथों से भी लम्बे चम्मच पकड़ा रखे थे और वे चाहकर भी नहीं खा पा रहे थे। इसके बाद वो स्वर्ग पहुंचा; उन्हें देखकर उसकी आँखे खुली की खुली रह गयी। स्वर्ग और नर्क एक जैसे ही थे। यहाँ भी चम्मच उतने ही लम्बे थे लेकिन बस फर्क इतना था कि वे एक-दूसरे को खिला रहे थे और स्वादिष्ट भोजन का आनन्द ले रहे थे। 

स्पष्ट है, ये हम पर निर्भर करता है कि हम अपने जीवन को स्वर्ग जैसा बनाते है या नर्क जैसा। यदि हम सोचें कि एक ट्रेन को धक्के से झुकाया जा सकता है, यदि हमारे मन में विश्वास हो कि और लोग भी इसमें मेरा साथ देंगे, एक-दुसरे पर इतना भरोसा हो कि बिना तर्क-वितर्क सभी इस काम में जुट जाएँ, तो भला स्वर्ग और क्या होगा? अपने जीवन को स्वर्ग सा बनाने का एकमात्र तरीका है एक-दूसरे की मदद के लिए तत्पर रहना। ये दुनिया यदि एकाकी जीवन जीने के लिए बनी होती तो व्यक्ति के ह्रदय में दया, करुणा और प्रेम की भावनाएँ ही क्यूँ होती?

इस सब के बीच जरुरी है इस बात का ध्यान रखना कि ये दुनिया आपकी या मेरी भलाई पर नहीं टिकी है। किसी भ्रम में रहकर अहंकार पालने की कोई जरुरत नहीं। स्वामी विवेकाननद कहते है, हम किसी की भलाई करके वास्तव में अपना ही भला कर रहे होते है। हम कुछ करें या न करें, ये दुनिया बड़े आराम से वैसे ही चलती रहेगी। हाँ,  इतना अवश्य है कि ये हमारी भलाई ही है जो हमें सच्चे आनन्द की अनुभूति करवा सकती है।  आप ही देखिए, जापान वाली घटना में बात उन लोगों की हो रही है जिन्होंने उस महिला को बचाया न कि उस महिला की। 

कितना सुन्दर गीत है फिल्म 'अनाड़ी' का, जो इस जज्बे को कितने खुबसूरत अंदाज में बयाँ करता है,-
किसी की  मुस्कराहटों पे हो  निसार,
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार,
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार,
जीना इसी का नाम है....... 


(दैनिक नवज्योति में रविवार, 4 अगस्त को प्रकाशित)
आपका,
राहुल ........             

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