Friday 23 August 2013

क्या हम इतना भी नहीं कर सकते?




रक्षा-बन्धन का त्यौहार कब, कैसे और कहाँ शुरू हुआ इसका प्रमाणिक लेखा-जोखा तो कहीं नहीं मिलता। हाँ, कुछ कथाएँ जरुर प्रचलित हैं। उनमें से एक है, जब समुद्र-मंथन के समय असुरों का पलड़ा भरी पड रहा था तब इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी ने अभिमंत्रित कर एक धागा उनके हाथ पर बाँधा था। इस रक्षा-कवच के बाद असुर उनका बाल भी बांका नहीं कर पाए, वह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा का था। एक कथा राजा बलि और वामनावतार की भी है। तीन पग जमीन नापते हुए भगवान विष्णु ने राजा बलि को रसातल में भेज दिया। राजा बलि ने एक बार फिर भगवान विष्णु की तपस्या की और उन्हें प्रसन्न कर ये वचन ले लिया कि वे हमेशा ही उसकी आँखों के सामने बने रहेंगे। अब विष्णु जी का घर लौटना सम्भव नहीं था और लक्ष्मी जी का चिंतित होना स्वाभाविक। ब्रह्मर्षि नारद ने सुझाया और लक्ष्मी जी राजा बलि को राखी बाँध अपने पति को लौटा लाई। कहते है उस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा ही थी। 

एक प्रसंग जिसका ऐतिहासिक प्रमाण है, वह है बादशाह हुमायूँ और रानी कर्मावती का। मेवाड़ की रानी कर्मावती को गुप्त सूचना मिली की बहादुरशाह उन पर हमला बोलने वाला है। उन्हें आभास था कि यदि ऐसा हुआ तो वे अपने राज्य की रक्षा नहीं कर पाएँगी। उन्होंने अपने दूत के हाथों हुमायूँ को राखी भिजवाई। हुमायूं राखी देखते ही समझ गए। बादशाह हुमायूँ मेवाड़ की रक्षा के लिए रानी कर्मावती की ओर से लड़े। निश्चित ही था, बहादुरशाह रानी कर्मावती को नहीं हरा पाया। 

आज जब हम अपने चारों और देखते है तो लगता है इस त्यौहार की प्रासंगिकता कहीं अधिक हो गयी है। प्रेम को हमने कितना संकीर्ण बना दिया है। प्रेम के मायने सिर्फ स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध होकर रह गए है। रक्षा-बन्धन का ये त्यौहार प्रतिवर्ष हमें प्रेम के सच्चे उदात्त स्वरुप की याद दिलाता है। प्रेम को हमारे संकीर्ण विचारों की बेड़ियों से मुक्त करवाने की कोशिश करता लगता है। 

ये त्यौहार याद दिलाता है कि प्रेम बिना शर्त होता है, प्रेम जिम्मेदार होता है, प्रेम प्रतिबद्धता है, प्रेम सर्व शक्तिशाली है और अंततः प्रेम ही भक्ति है। प्रेम से बांधे एक धागे की शक्ति इन्द्र को असुरों पर विजय दिला देती है, यही धागा हुमायूँ को एक जिम्मेदारी से बाँध देता है और इसी पावन धागे के कारण राजा बलि सब कुछ भूलकर विष्णु जी को लक्ष्मी जी के साथ विदा करते है। इन पौराणिक कथाओं के सच होने पर विवाद हो सकता है लेकिन प्रेम इस सृष्टि की आधार-ऊर्जा है इसमें शायद ही किसी के मन में कोई दो राय हो। आप प्रेम के बारे में थोड़ी देर गहनता से विचारेंगे तो आपको लगेगा कि किसी इन्सान में हो सकने वाली कोई भी अच्छाई वास्तव में प्रेम का ही एक रूप है। वास्तव में इंसान के सारे चारित्रिक गुण प्रेम की परिधि में ही तो समाए है।

यदि हम प्रेम के इस उदात्त स्वरुप को समझने की कोशिश करें तो निश्चित ही हमारे चारों ओर का दृश्य बदल सकता है। ये आए दिन के दुष्कर्म, घरेलू हिंसा और सामाजिक सुरक्षा का यही एकमात्र उपाय है। प्रेम ही व्यक्ति को सुसंस्कृत करेगा और तब ही हम अपने परिवार के साथ निर्भीक होकर जीवन-रस ले पाएँगे। 

हुमायूँ रानी कर्मावती के लिए युद्ध कर सकता है तो मैं चाहता हूँ, एक सवाल हम सब अपने आप से करें, क्या हम इतना भी नहीं कर सकते?


(दैनिक नवज्योति में रविवार, 18 अगस्त को प्रकाशित)
आपका 
राहुल ........   

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