Friday 5 October 2012

अपने सपनों को जिएँ




हुत कम लोग ऐसे होंगे  जिन्हें अपनी जिन्दगी से यह शिकायत न हो कि फलाँ-फलाँ कारणों से इन्हें वो जिन्दगी नहीं मिल पायी जिसके ये हक़दार थे और हैं. इनके ढेर सारे कारणों में ये कहीं नहीं होते. कोई और, चाहे वो कोई भी हो इनके आज के लिए जिम्मेवार होता है. आप जब भी इनसे मिलेंगे या तो किसी न किसी को कोसता या किसी न किसी से उलझता पायेंगे.

एक मिनट के लिए रूककर इनके दैनिक जीवन पर नज़र डालें तो माजरा बिल्कुल साफ़ नज़र आ जायेगा. ये वे लोग है जो दिल्ली की ट्रेन पकड़कर मुंबई पहुँचना चाहते है. ये जिस तरह अपना दिन बिताते है और एवज में जैसी जिन्दगी चाहते है, इन दोनों का आपस में कोई मिलान नहीं होता. वैसे ही जैसे एक व्यक्ति अच्छा गायक तो बनना चाहें लेकिन रियाज़ से कतराए और दोष दे जिन्दगी को. कर्म-व्यवहार और सपनों का यही असंतुलन हमारी शिकायतों की असली वजह है.

ये कोई ऐसी बात नहीं जो आपको पहले से मालूम नहीं, तो फिर बात आकर ठहरती है कि सब कुछ मालूम होते हुए भी हम अपना दिन अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश में क्यों नहीं गुजारते? क्यों हम उचित और अनुचित के नाम पर उन कामों में जुटे रहते है जिन्हें करने को हमारा दिल गवारा नहीं करता और उन्हें हमेशा ही आगे टालते रहते है जिनसे हमारा मन भरता है? जवाब तो सवाल में छुपा है -' विश्वास '.  हमें अपने सपनों पर विश्वास नहीं.

मैं आपको याद दिला दूँ , ये वे सपने नहीं जो हम रात को सोते हुए देख लेते है बल्कि हमारे अन्तर्मन की पुकार है जो सोते-जागते हर क्षण हमारे साथ रहती है, जैसे कोई किधर खींच रहा हो. जिस तरह एक बीज में पेड़ बन पाने की हमेशा ही क्षमता होती है बस जरुरत होती है उसे बोने की, खाद-पानी देने की, रखवाली करने की; उसी तरह हम में भी अपने सपनों को पूरा कर पाने की हमेशा ही क्षमता होती है जरुरत होती है उन पर विश्वास करने की, उन्हें जिन्दा रखने की, उन्हें जीने की. हमारे सपने हमारे होने की वजहें है और इन पर विश्वास करने की इससे पुख्ता क्या वजह हो सकती है?

आप कहेंगे, 'ये बातें कहने-सुनने में ही अच्छी लगती है'. ठीक भी है, व्यावहारिक जीवन में सपनों के आर्थिक पक्ष को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता विशेषकर जब वे हमारे काम-काज से जुड़ें हों. कुछ क्षेत्र ऐसे है जिनके बलबूते आप अपना जीवन और गृहस्थी सहजता से चला पायें, इस स्थिति तक पहुँचने में समय लग सकता है. ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अपने सपनों को पूरा करने की कोशिशों के साथ-साथ किसी ऐसे अतिरिक्त काम से भी जुड़ जाना चाहिए जो उसके जीवन की सहजता को बरक़रार रखते हुए उसके सपनों को जिन्दा रख सकें. यह सपनो से समझौता नहीं उन्हें पूरा करने की प्रक्रिया का हिस्सा भर है. आपके सपने, चाहे जो भी हो, उनमें निस्संदेह इतना माद्दा होता है कि वे आपको वैसा जीवन दे सकें जो आपके लिए अनुकूल हों; बात सिर्फ समय के अन्तराल की है.

हमारा यही विश्वास दैनिक जीवन में कर्म-व्यवहार और सपनों के संतुलन को लौटाएगा.
प्रकृति तो चाहती है कि हम अपने सपनों को जिएँ, पूरा करें; जरुरत है तो बस हाथ थामने भर की.

आपका,
राहुल......
( रविवार, ३० सितम्बर को नवज्योति में प्रकाशित )


No comments:

Post a Comment