Friday 29 June 2012

कभी अपना साथ न छोड़ें





हम लोग सबका साथ निभाते-निभाते अपना ही साथ छोड़ देते है. आज मैं आपको यही याद दिलाना चाहता हूँ की हमारी सबसे पहली निष्ठा अपने आप से है फिर किसी और से. आप सोच रहे होंगे मैं आपको स्वार्थी और अक्खड़ बनने को प्रेरित कर रहा हूँ. नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है. मैं तो सिर्फ आपको अपनी भी सुनने को कह रहा हूँ.

अपनी सुनने का मतलब है हर क्षण अपनी प्राथमिकताओं को जेहन में रखते हुए नीतिगत आचरण करना. यहाँ मैं अपने आपको अपनी प्रिय पंक्ति दोहराने से नहीं रोक पा रहा हूँ कि हम सब ईश्वर की स्वतंत्र भौतिक अभिव्यक्ति है. हम इस जीवन को जिस तरह जीना चाहते है और जो कुछ भी इससे पाना चाहते है उसके लिए आवश्यक प्रयास ही हमारी प्राथमिकताएँ होनी चाहिए क्योंकि ये ही हमारी अभिव्यक्ति का आधार है. इसके साथ ही जरुरी है कि हमारे प्रयास नीतिगत हों. सरल शब्दों में नीतिगत आचरण यानि कोई ऐसा काम न करना जिए हमारा दिल गवारा न करें. 

प्रत्येक व्यक्ति की अपनी सोच और अपना नजरिया होता है. अहम् हमें यह मानने पर मजबूर करता है कि सिर्फ हमारी सोच और हमारा नजरिया ही श्रेष्ठ है और इसलिए हम जाने-अनजाने एक-दूसरे पर ये दोनों ही थोपने लगते है. विचारों के इस आक्रमण से अपने आपको बचाना हमारा कर्त्तव्य भी है और अधिकार भी, और यही है अपने प्रति निष्ठा लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं है कि हम किसी की न सुनें और मनमाना व्यवहार करें. यदि किसी की बात हमें ठीक लगती है तो उसे अपने मानदण्डों पर कसें और खरी उतरें तो जरुर अपनायें.

कभी-कभी रास्ते के छोटे-मोटे लालच भी हमें अपनी राह से भटकाते है. अपने सपनों को पूरा करने की राह में ऐसे मोड़ जरुर आते है जहाँ से हमें जीवन ज्यादा आसान, आरामदायक और सुविधाजनक लगता है. ये परीक्षाएँ है अपने प्रति हमारी निष्ठा की. ऐसे समय हमें याद करना होगा कि हम जीवन को किस तरह जीना और इससे क्या पाना चाहते थे? हमारा इतना सोचना भर काफी होगा हमें अपनी राह पर लौटने के लिए. 

यहाँ एक स्वाभाविक सा प्रश्न उठता है कि क्या हम सिर्फ अपनी इच्छाओं को अपना जीवन ध्येय बना लें और किसी के सुख-दुःख से हमें कोई सरोकार न रहे?

मैं इस प्रश्न का जवाब एक प्रश्न से ही दूँगा. क्या किसी डूबते को बचाने के लिए आप साथ डूबते है?  नहीं ना, आप  उसे तैर कर बचाते है. आपकी अपने प्रति निष्ठा आपको समर्थ बनाती है कि आप किसी के काम आ सकें. सच तो यह है कि हम अपनी भावनाओं का आदर कर ही दूसरों कि भावनाओं को समझ पायेंगे, अपनी सोच के साथ सहज होकर ही दूसरों की सोच को स्वीकार कर पायेंगे, अपनी खुशियों को तलाश कर ही दूसरों के दुखों को बाँट पायेंगे.

जीवन को इस तरह जीने में बहुत साहस चाहिए क्योंकि हो सकता है कुछ अपने, आप से नाराज़ हो जाएँ या आपका साथ ही छोड़ दें. आप बिलकुल न घबराएँ, वास्तव में ये कभी आपके अपने थे ही नहीं. आप इनके लिए अपना मतलब निकालने का साधन भर थे. इनका तो साथ छूट जाना ही अच्छा भले ही कुछ दूर अकेला ही क्यूँ न चलना पड़े क्योंकि तब ही तो आप अगले मोड़ पर उन लोगों का हाथ थाम पायेंगे जो आपके सच्चे साथी है.

यह साहस आएगा आपको अपने पर सम्पूर्ण विश्वास से. आपकी दृढ सोच से कि मैं जिस तरह जीना चाहता हूँ व जीवन से जो कुछ भी पाना चाहता हूँ वह सर्वथा उचित है. अपने पर भरोसे से कि यदि अन्तर्मन कुछ कह रहा है तो वो तब ही जब मुझमें उसे कर पाने का सामर्थ्य है.

आइए, अपने होकर सबको अपना बना लें. साथ मिलकर इस जीवन को भरपूर जिएँ और आनंद उठाएँ.

( दैनिक नवज्योति में २४ जून, रविवार को प्रकाशित )

आपका,
राहुल.....   

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