Friday 15 June 2012

सही दिशा में एक कदम





रास्तों के बारे में हम चाहे जितनी बात कर लें, जानकारियाँ इकट्ठी कर लें, उन पर चलना शुरू किए बिना गंतव्य तक नहीं पहुंचा जा सकता. ठीक इसी तरह जीवन में भी हम जो कुछ करना और पाना चाहते है उसे साहस जुटा शुरू कर पायें तो समझ लीजिए आधा काम तो हो गया. काम कि शुरुआत में ही उसकी सफलता छुपी होती है.


हमारा सारा ज्ञान, ध्यान और प्रार्थनाएँ तब तक बेमानी है जब तक पूरे विश्वास के साथ उन्हें जिएँ नहीं. हमारी  समस्या यह है कि हम जानते तो है पर मानते नहीं. हम में से अधिकाँश के दिल में यह बात गहरे पैठी हुई है कि ये सारी बातें कहने-सुनने में तो अच्छी लगती है पर दुनिया ऐसे नहीं चलती. यही कारण है कि हम चाहते कुछ और है करते कुछ और है. बम्बई कि ट्रेन में बैठकर दिल्ली के नहीं आने को कोसते रहते है.

एक मिनट के लिए ठिठक कर अपनी भाग-दौड़ भरी जिन्दगी पर नज़र डालें और देखें कि हमारे दैनिक क्रिया-कलापों और जीवन-उद्देश्यों में कितना सामंजस्य है. हम सब बहुत व्यस्त है लेकिन क्या ये व्यस्तता उन कामों को लेकर है जो हम जिन्दगी से चाहते है या हम सोचते है कि उनसे तो इस सांसारिक जीवन का निर्वहन संभव नहीं इसलिए अपने-आपको उस दिशा में झोंके रहते है जिसे हमारे आस-पास कि दुनिया सफलता कि गारंटी समझती है. जैसे हमारा दिल तो संगीत में लगता है लेकिन यह सोचकर कि इससे तो गुजारा संभव नहीं हम अपने अंतस कि आवाज़ को अनसुनी कर बंधे-बंधाये ढर्रे पर निकल पड़ते है. ये तो अच्छा हुआ पंडित जसराज और उस्ताद बिस्मिल्लाह खां जैसे लोगों ने ऐसे नहीं सोचा. सच तो यह है कि हमारे जीवन में तनाव का कारण हमारी व्यस्तता नहीं हमारे अंतर्मन कि पुकार और दैनिक जीवन का असंतुलन है.

हमारा दायित्व काम कि शुरुआत है शेष जिम्मेदारी प्रकृति की है. कर्म और प्रकृति का यह रिश्ता गणित के प्रश्न की तरह है. यदि फॉर्मूला सही है तो प्रश्न स्वतः ही हल होता चला जाएगा और यदि फॉर्मूला ही गलत है तो आप चाहें जितनी मेहनत कर लें कुछ नहीं होने वाला. हमारी मेहनत फॉर्मूलों को याद रख, सही जगह पर सही फॉर्मूले के प्रयोग कर पाने के अभ्यास में होनी चाहिए ना कि गलत फॉर्मूले से प्रश्न को हल करने में. कर्म और प्रकृति के रिश्ते को इस तरह निभाने मात्र से जीवन में संघर्ष का कोई स्थान नहीं रह जाएगा.

हमारे लिए वे ही काम करने योग्य है जो हमारे स्वभाव और प्रवृतियों से मेल खाते हो शायद इसीलिए कहा जाता है कि व्यक्ति अपने जन्म के साथ अपने कर्म भी लेकर आता है. यही वह फॉर्मूला है जिससे गणित के प्रश्न कि तरह जीवन सुलझता चला जाएगा बस जरुरत है तो पूरे विश्वास के साथ सही दिशा में एक कदम उठाने भर कि. हमारे चारों और ऐसे ढेरों उदाहरण बिखरे पड़े है जैसे नारायण मूर्ति, अब्दुल कलाम, सचिन तेंदुलकर आदि-आदि.

इन सब लोगों ने शुरुआत कि और यही महत्वपूर्ण था. इनमें से किसे मालूम था कि वे जीवन में यह मुकाम हासिल कर पायेंगे लेकिन इन सब ने उस राह पर कदम उठाने का साहस किया जो यह अपने जीवन से चाहते थे  और नतीजा दुनिया के सामने है. 
किसी ने ठीक ही कहा है,....
कौन कहता है सुराख आसमान में हो नहीं सकता,
एक   पत्थर   तो   तबियत   से   उछालों   यारों..... 

( दैनिक नवज्योति में 10 जून, रविवार को प्रकाशित ) 
आपका
राहुल.....

 

2 comments:

  1. Bahut Acchey Rahul Bhai!! Vr well expressed.
    With all due regards, I wud like to share my views: It is nt always u can say "RIGHT DIRECTION" - Often it is retrospective, As SUCCESS may also be defined at times & agn I doubt abt: 'Kaam ki shuruat mein hi safalta chupi hai...',It is nt in Kaam ki shuruat, it is ur attitude, ur passion, ur approach towards ur work make all the diff & by the way I believe in NOT FOCUSING on result BEFORE starting. YES vr true..that U NEED TO TAKE 1st STEP for everything in life.
    Ur language & expressions are commendable Rahul Dada!

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  2. Thanks a lot.You have given a new light on the subject which always enriches my thought process.

    I think if you really believe in something it is right direction for you because our belief always comes from inner-self which is never wrong.Secondly I think results are driving force and so necessary but attachment to results compel us to take wrong means and ultimately makes our life hell.

    one more thing , feeling completely okay with yourself is success and so it is more about realisation than achievement.

    once again thanks for support.

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