Friday 3 January 2014

दस्वेदानिया




सबसे पहले ये शब्द सुना था 'मेरा नाम जोकर' देखते हुए। रुसी नायिका विदा होते समय नायक से कहती है- दस्वेदानिया। 'दस्वेदानिया' यानि अलविदा। समय आ गया है इस वर्ष को विदा करने का, दस्वेदानिया कहने का। इसी के साथ हम सब लगे है यह तय करने में कि इस नए साल में हम क्या-क्या करेंगे? क्या कुछ नया करेंगे? 'रिजोल्यूशन पास' करने में लगे हैं। इन सब बातों में ही गोते लगा रहा था कि यही  बात करती हुई, इसी नाम 'दस्वेदानिया' से बनी फ़िल्म याद आ गई। फ़िल्म ऐसी कि आपकी सोच को ठिठकने पर मजबूर कर दे। 

फ़िल्म का हीरो रोजाना ऑफिस जाने से पहले 'टू-डू लिस्ट' के पैड पर दिन भर के काम लिखता है। इसके कामों में होते है; बिजली-पानी का बिल, गैस-बुकिंग, किराने का सामान, घर की किसी चीज कि मरम्मत वगैरह-वगैरह। आप समझ ही गए होंगे, हम सब इस जंजाल से भली-भांति परिचित है। ये काम क्या हैं, द्रौपदी का चीर है; न कभी ख़त्म हुए हैं न कभी ख़त्म होंगे। उसकी जिंदगी यूँ ही रटे-रटाए ढर्रे पर चल रही होती है कि उसके पेट में तकलीफ रहने लगती है। अपनी माँ के बहुत कहने पर वह डॉक्टर के पास जाता है। कुछ जाँचे होती है जिसकी रिपोर्टें शाम को आने वाली होती है। आपको अंदाजा लग ही गया है, शाम को निश्चिन्त रिसेप्शन पर बैठा वह अपनी बारी आने पर जैसे ही डॉक्टर के पास पहुँचता है, उस पर गाज गिरती है। उसे मालूम चलता है कि वो अब सिर्फ चंद महीनों का मेहमान है। बड़ी मुश्किल से अपने आप को सम्भालता ही, घर आता है, माँ के सामने सामान्य रह, उसे बताता है कि उसे कुछ ख़ास नहीं हुआ है। दवाईयाँ लिखी है, थोड़े ही दिनों में सब ठीक हो जाएगा। 

दूसरे दिन सुबह उठता है, और आदतन पैड अपने हाथ में लेता है। हमेशा की तरह वैसे ही एक या दो काम लिखता है कि अचानक उसका हाथ और दिमाग़ रुकता है? सोचने लगता है, ये मैं क्या कर रहा हूँ? मेरा अपना भी कोई वजूद है या बस यूँ ही ..........? उसे ध्यान आने लगती है अन्तर्मन कि वे सारी अकुलाहटें जो उसने न जाने कितने वर्षों से इन दुनियादारियों के चलते स्थगित कर रखी है। इतनी लम्बी स्थगित कि वो उन्हें भूलने तक लगा था। उसे लगता है जैसे उसने अपनी जिंदगी को एक होटल समझ लिया है जिसका वह मैनेजर बना बैठा है। उसे एहसास होता है कि वे काम जो उसकी 'टू-डू लिस्ट'में हुआ करते थे, वे जरुरी है जिंदगी की गाडी को आराम से चला पाने के लिए लेकिन वे जिन्दगी नहीं है। वो वापस से अपनी लिस्ट बनाता है, ऐसी कि जिन्हें करने का सोचने भर से उसका मन रोमांच से भर उठता है। उसका नजरिया कि जिंदगी में उसके लिए क्या अहम् है, बदल चूका होता है। 

यही बात है जो आज मैं आपसे करना चाहता हूँ। इस बारे में कोई दो राय नहीं कि हमारी प्राथमिकताएँ तय होनी चाहिए, ये ही हमें सफल बनाती है पर इतना ही जरुरी है यह सोचना-समझना कि इन प्राथमिकताओं का आधार क्या हो? हमारी 'प्रायरटीज़' के 'पैरामीटर' क्या हो? 

हम सब यहाँ अपनी नियति जीने आए हैं। अनुभूति और अभिव्यक्ति हमारे भौतिक स्वरुप की वजह है। हम सब अपने-अपने अंदाज़ में इस संसार को महसूस करने और अपने होने से इसे अधिक सुन्दर बनाने आए हैं। यही तो आनन्द है। किसी को पढ़ना तो किसी को घूमना, किसी को संगीत तो किसी को दूसरों कि मदद करना, किसी को खेलना तो किसी को और कुछ पुकारता है। पग-पग इस ओर बढ़ना ही हमारे काम की सूची होनी चाहिए न कि इस ओर जाने के लिए जरुरी सुविधाओं और सामान की। तो इस बार, जब आप नए साल का 'रिजोल्यूशन' बनाए तो टटोलिए कि कौन से वो काम है जिन्हें करके आप ज्यादा जीवंत महसूस करेंगे?

अपनी अकुलाहटों को शान्त करने की सोचिए, ऐसा करने में दिक्कतें आयीं भी तो निश्चिन्त रहिए, प्रकृति ने ये अकुलाहटें दी हैं तो उसने निपटने की क्षमता भी आपको दी होंगी। शरीर को साँस लेने की जरुरत है तो फेफड़े होंगे ही। जरुरत है तो इस बात की, कि हम अपने अंतर्मन कि सुनें और उसकी पुकार को अपने जीवन में जगह दें। आइए, यह नया वर्ष कुछ यूँ मनाएँ, अपनी फेहरिस्त में उन बातों को शामिल करें जो हमारी उपस्थिति दर्ज़ कराते हों।


(दैनिक नवज्योति में रविवार,29 दिसम्बर को प्रकाशित)
आपका 
राहुल ........... 


3 comments:

  1. This word was always there in ur mind since college days.....
    (Rajendra Bohra)

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  2. Yaar, Yeh choti-choti chijen hi to hamara common canvas hai .......choti si baat par accha laga.
    (Me)

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  3. An Art is a meaningful expression of creative powers and thoughts which can be fabricated on an incidence and an experience. This is also a beautiful articulate expression of a word which was always there in back of ur mind since years.....Bravo!!!! Keep it up buddy...
    ( Inspiration-Rajendra)

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