Friday 9 November 2012

जिन्दगी के मौसम




प्रकृति से श्रेष्ठ कोई शिक्षक नहीं और इसके आश्चर्यों का आनन्द लेते हुए जीने से बड़ा कोई सुख नहीं। प्रकृति यानि बदलते मौसम। मौसम यानि जो कल था वो आज नहीं और जो आज है वो कल नहीं। निरंतरता की यही प्रवृति है प्रकृति की अद्वितीय सुन्दरता का राज। यही है हर सुबह की नई ताजगी और हर शाम की शीतलता की वजह। हमारे लिए ही गर्मियों के दिनों में सर्दी की कल्पना कर पाना कितना मुश्किल हो जाता है, इसी शिद्दत से जीती है प्रकृति अपने मौसमों को पर फिर धीरे-धीरे सर्दियाँ आने लगती है, कितनी सहजता से स्वीकार कर लेती है इस बदलाव को और उसी रंग-ढंग में ढल जाती है।

हम प्रकृति के इन रंगों के इतने अभ्यस्त हो चुके है कि इनसे सीखना तो दूर यह विविधता हमें आनंद-आश्चर्य भी नहीं देती। प्रकृति तो हर क्षण अपने आचरण से हमें याद दिलाती है कि जो कुछ जिओ उसे उस समय पूरी तरह डूबकर, कोई गिला बाकी न रहे लेकिन साथ ही यह भी याद रहे कि दुनिया में जिस किसी का भी अस्तित्व है तो उसके होने की वजह भी, तो जाने का समय भी। छोटी हो या बड़ी सबकी एक उम्र होती है लेकिन जिन क्षणों को भरपूर जिया हो उनकी विदाई आसान होती है। एक मौसम की सहज विदाई ही तो दुसरे मौसम के स्वागत का द्वार खोलती है और यही वो तरीका है जिससे हमारी जिन्दगी भी प्रकृति की तरह अद्वितीय सुंदर बन सकती है।

जिन्दगी के सबसे अहम् पहलू है हमारा काम और हमारे रिश्ते। दोनों के प्रति हमारा नज़रिया वही होना चाहिए जो प्रकृति का अपने मौसम के प्रति होता है। यह ठीक है कि हम वो करें जिसकी हमें दिल गवाही दे और तब काम, काम नहीं खेल बनकर रह जाएगा लेकिन कई बार हम व्यावहारिक कारणों के चलते अपने मनचाहे काम के अलावा किसी और काम में होते है या समय के साथ हमें अपना काम ही कम भाने लगता है। दोनों ही स्थितियों का जवाब प्रकृति में  छुपा है। पहले तो आप जिस भी काम में है उसे पूरे मन से कीजिए। पूरे मन से किया काम ही आपको सफलता देगा और यह सफलता ही आपको एक बार वापस अपने काम के चुनाव का अवसर देगी। मान लीजिए आप इंजिनियर है लेकिन चाहते है पेंटर बनना। सबसे पहले तो अपने मन में पेंटर बनने की इच्छा को जिन्दा रखते हुए इंजीनियरिंग के काम को अपना शत-प्रतिशत दीजिए। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में आपकी सफलता आपको वो सब उपलब्ध करवाएगी जिससे आप अपने पेंटर बनने के सपनों को पूरा कर सकें, ठीक उसी तरह जिस तरह प्रकृति पूरी शिद्दत से हर मौसम को जीती है और यही अगले मौसम के आगमन का कारण बनाता है।

जिन्दगी का दूसरा अहम् पहलू है हमारे रिश्ते। किसी भी रिश्ते को तब भरपूर जियें जब आप उसमें हों, यही खुशियों भरे जीवन का राज है लेकिन हम या तो रिश्ते बनाने से पहले उत्साहित होते है या बाद में उन्हें याद करते है। रिश्तों को वर्तमान में जीते हुए भी जीवन में कई बार ऐसी स्थितियाँ बन जाती है कि उन्हें एक मोड़ दे देना ही एकमात्र विकल्प बचता है, तो इसमें कुछ गलत नहीं। आप ऐसा कर दोनों का भला ही कर रहे है लेकिन याद रहे न तो यह क्षणिक भावावेश हो और न ही बेहतर बेहतर रिश्ते की उम्मीद में उठाया कदम; यह स्थिर मन से अन्तरात्मा की आवाज़ पर किया निर्णय हो। किसी भी रिश्ते को महज इसलिए न निभाए कि यह आपका नैतिक दायित्व है वरना लोग क्या कहेंगे? रिश्ते जब कोरी जिम्मेदारी बन जाते है तो अपनी सुगंध खो देते है लेकिन अपनी जिम्मेदारी को नकारा भी नहीं जा सकता अतः रिश्तों को तब तक सहेजने की कोशिश करें जब तक उसमें आत्मिक ख़ुशी का एक भी रेशा बचा हो। एक बात ध्यान रखें रिश्ते परमात्मा का हमारा जीवन खुशियों से भर देने का साधन है लेकिन उसके पास साधनों की कोई कमी नहीं।

प्रकृति से मिली इसी सीख को श्री हरिवंश राय बच्चन ने बहुत ही सुन्दर और सार्थक शब्दों में पिरोया है, " पाप हो या पुण्य कुछ भी नहीं किया मैंने आधे-अधूरे मन से।"


(रविवार, 4 नवम्बर को दैनिक नवज्योति में  प्रकाशित)

आपका 
राहुल ........     

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