Friday 3 August 2012

सहज जीवन से ही सच्चा आनंद






आज मैं अपनी बात कि शुरुआत उन उक्तियों से कर रहा हूँ जिन्हें बचपन से आज तक मैं और आप  सुनते आ रहे है जैसे, ' कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है ',  ' जिन्दगी एक दौड़ है ', ' तपकर ही सोना निखरता है ', ' जिन्दगी इम्तिहान लेती है ', आदि-आदि.

उफ़! जिन्दगी नहीं हो गई सश्रम कारावास हो गया. एक मिनट रुकिए और सोचिए क्या हमें जीवन इसलिए मिला होगा? क्या आपको प्रकृति का कोई घटक, मनुष्य के अलावा, संघर्ष करते हुए दिखता है? पेड़-पौधे, नदियाँ-पहाड़, पक्षी-जानवर सभी अपनी सहजता से जीवन जी रहे है. उनके जीवन कि सहजता इतनी आनंददायी है कि जब भी हम इनके पास होते है सुकून महसूस करते है. रोजमर्रा के संघर्षों से थक जाते है तब अपने आपको इकट्ठा करने के लिए इन्ही कि शरण मैं जा पहुँचते है.

यही सच है. संघर्ष हमारी नियति नहीं हमारा दृष्टिकोण है. हमारी सोच है. जीवन मैं आनंद और सफलता संघर्ष से नहीं सहजता से ही संभव है. संघर्ष तो शब्द ही नकारात्मक है. संघर्ष यानि किसी काम के हो पाने पर संदेह होना और इसलिए अतिरिक्त कठिन प्रयासों कि जरुरत महसूस करना जबकि सहजता की सकारात्मकता तो अपनी क्षमताओं की स्वीकार्यता मैं ही निहित है.

यदि हमें अपने जीवन से संघर्ष से निजात पानी है तो नजरिया बदलना होगा. सबसे पहले तो हम कोई काम करें या न करें इसका पैमाना हमारे अंतर्मन की आवाज़ होनी चाहिए. यदि ऐसा है तो हम में वो सब है जो उस काम की सफलता के लिए आवश्यक है. यदि ऐसा कोई काम पूरे प्रयासों के बाद भी नहीं हो पा रहा है तो हम उसी तरह से ज्यादा मेहनत करने की बजाय यह देखें कि यह और कैसे हो सकता है. तरीकों में बदलाव को आजमायें. उसी स्थिति को दूसरे कोण से देखने कि कोशिश करें. आपकी सोच-समझ से उस स्थिति का कोई पहलू छूट तो नहीं रहा है. नजरिये में यह बदलाव संघर्ष को सहज बना देगा.

सहजता को सही आशय में समझना भी उतना ही जरुरी है. सहजता का मतलब अनचाही और मुश्किल स्थितियों से मुहँ चुराना नहीं है. ऐसी किसी भी स्थिति को हम टाल सकते है, भाग नहीं सकते. जब इनसे दुबारा सामना होता है तो ये पहले से कहीं ज्यादा विषम रूप ले चूकी होती है. इन स्थितियों को अपने जीवन का अभिन्न अंग मानते हुए पूरी दृढ़ता से इनका सामना करना ही सहजता है.

सहजता आलस्य भी नहीं है. संघर्ष से हमारा प्रेम इतना गहरा है कि हमें लगता है जीने की सहजता हमें आलसी बना देगी. संघर्ष भविष्य में सुख की दिलासा दिलाता है और वर्तमान की तकलीफों को अनिवार्य मानते हुए स्वीकार करता है जबकि सहजता सिर्फ इस क्षण की बात करती है. इस क्षण में बेहतर क्या किया जा सकता है और इसे भरपूर जिया जा सकता है यही जीवन की सहजता है.

बच्चे जब चलना सीख रहे होते है तब वे उठने और चलने की कोशिश में बार-बार गिरते है. गिरना, फिर उठना, फिर थोडा चलना, फिर गिरना उनके लिए खेल है न की संघर्ष. वे गिरकर असफल नहीं चलकर सफल नहीं. उनके लिए तो पूरा प्रयोजन ही आनंद है, एक मजेदार खेल. इसी तरह जीवन के सारे काम हमारे लिए मजेदार खेल हों. खेल मुश्किल हो सकता है, थका भी सकता है लेकिन तकलीफ कभी नहीं देगा. जीवन की यही सहजता हमें आनंद देगी.


( दैनिक नवज्योति में रविवार, २९ जुलाई को प्रकाशित )

आपका,
राहुल....... 


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