Saturday 21 April 2012

विचारों का रास्ता मंजिल का पता



हमारे विचार शब्द बनाते है
हमारे शब्दों से कर्म बनते है
        कर्म   से   आदतें   बनती   है
         आदतें हमारा चरित्र बनती है 
       और 
हमारा चरित्र हमारी मंजिल तय करता है.


दुनिया में जो कुछ भी दिख रहा है वह किसी न किसी के विचारों का ही परिणाम है. विचारों की प्रकृति और शक्ति पर बात करने से पहले अहम् बात यह है की हम विचारों के अस्तित्व को स्वीकारें. हमारे विचार भी दूसरी वस्तुओं की तरह होते है जिनके अपने गुण - धर्म होते है लेकिन ये तब तक अप्रभावी रहते है जब तक इनसे हमारी भावनाएं नहीं जुड़ जाएँ. भावनाएं विचारों को गति देती है जिससे हमारी जीवन - परिस्थितियों का निर्माण होता है. हमारी परिस्थितियाँ हमारे भावपूर्ण विचारों की देन होती है.

हमने कई बार आपस की बात में एक दूसरे से कहते सुना है, ' तू, ऐसा मत सोच, सोचते है जो सही हो जाता है.'  यह धारणा हमें हमेशा डराए रखती है. एक तरफ तो हम धर्म, समाज और संस्कारों से पैदा भय के वातावरण में रहते है जिस कारण मन में हमेशा अनिष्ट की आशंका बनी रहती है दूसरी तरफ यह डर की ऐसा कुछ सोच भी लिया तो सच हो जायेगा. यह बात सही है लेकिन अधूरी. यदि हम कुछ सोचे जिसका होना हमारा अंतस स्वीकार कर ले और हम उसके लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाएँ तब ही हम सोचे वह होता है. मन का कोई ख्याल जो डर से जन्मा है और हम अपनी पूरी इच्छा - शक्ति से उसे नहीं होने देना चाहते तो वह ख्याल शक्ति - हीन है और उसके हो जाने की कोई सम्भावना भी नहीं. आप ही बताइये कौन - सा विधार्थी होगा जिसका परीक्षा - भवन में जाने से पहले जी न घबराता होगा ?

हम अपनी असफलताओं का घड़ा परिस्थितियों के माथे फोड़ खुद को बरी कर लेते है जबकि किसी भी परिस्थिति के पीछे की घटनाओं की बारीकी से जांच - पड़ताल करें तो पायेंगे की ये हमारे भावपूर्ण विचार ही थे जिन्होंने हमें इन परिस्थितियों में ला खड़ा किया. परिस्थितियों के निर्माता होने का यह अहसास हमें नयी उर्जा से भर देगा. अब हम केवल उन विचारों को भाव देंगे जिन परिस्थितियों को हम अपने जीवन में चाहते है. इस तरह भाग्य पुरुषार्थ का अनुसरण करेगा. यह सच है की हम वर्तमान की किसी परिस्थिति को बदल ता नहीं सकते लेकिन वर्तमान में विचारों को चुन भविष्य में मनचाही परिस्थितियाँ जरुर पा सकते है.

एक महिला अपने दोनों बच्चों के साथ कार से कहीं जा रही थी की रास्ते में कार का टायर पंचर हो गया. महिला स्टेपनी बदलने लगी और बच्चे आस - पास खेलने लगे. सब कुछ हो गया था और वह जैक उतार ही रही थी की खेलते - खेलते एक बच्चा उसके पास आ गया. इधर तो उसका जैक उतारना हुआ और उधर उस बच्चे का टायर के नीचे पैर रखना. उस महिला को कुछ समझ नहीं आया बस उसने तो आव देखा न ताव कार के आगे गयी और कार को छः इंच ऊपर उठा लिया. ऐसा कार लेने के बाद तो वह स्वयं भी भौंचक्की राह गयी की वह ऐसा कैसे कर पायी.

यह होती है भावपूर्ण विचार की ताकत जिसे हमारे अंतस और मानस ने इस तरह स्वीकार कर लिया है की जिसके नहीं हो पाने की तनिक भी आशंका नहीं. हम अपने अंतस से जुड़ उस शक्ति से जुड़ जाते है जिससे यह स्रष्टि चलायमान है और फिर कुछ भी असंभव नहीं रह जाता.

आइए, हम अपने विचारों को दुरुस्त करें मंजिल अपने आप मिल जायेगी.


( दैनिक नवज्योति रविवार, 15 अप्रैल में प्रकाशित)
आपका
राहुल....

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