Saturday 14 April 2012

खुद ही को बुलंद कर इतना





यह एक डाकू का ही दृढ - निश्चय ही था कि वो रामायण लिख पाया, वाल्मीकि ; और यह भी एक शिक्षक का दृढ - निश्चय ही था कि वह पूरे भारत - वर्ष को एक सूत्र में पिरो पाया, चाणक्य ; दृढ - निश्चय का एक और जीता - जागता उदाहरण मिसाइल मैंन और आज तक के सबसे चहेते राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जिन्होंने अखबार बेचकर अपनी पढाई को जारी रखा.

ये वे जीवन है जो हमें रास्ते कि मुश्किलों और अडचनों के समय अपने सपनो पर भरोसा करना सिखाते है और मंजिल कि याद दिलाते है. मंजिल से तुलना करते ही हमें इन बाधाओं कि लघुता और अस्थायी होने का अहसास हो जाता है. किसी भी व्यक्ति कि सबसे बड़ी ताकत उसके सपनो और लक्ष्यो का अहसास होती है और यही अहसास हमें सारी बाधाओं को पार कर अपने सपनो को पूरा करने कि हिम्मत देता है. यह अहसास हममें जीवन के हर क्षण बने रहना चाहिए.

निश्चय को अनुशासन बनाए रखता है. हम रोजमर्रा कि किसी आदत का ही उदाहरण लें जैसे सुबह कि सैर तो पायेंगे कि यदि एक बार क्रम टूट जाएँ तो उसे नियमित करना बहुत मुश्किल हो जाता है. इसका यही उपाय है कि जिस दिन सैर का मन न करें या कोई और कारण हो तो घर के बाहर ही जरा सी देर टहल लें. एक - दो दिन बाद अपने आप ही हमारी सैर पर जाने कि इच्छा होने लगेगी वरना हो सकता है सैर कि आदत यानी स्वस्थ रहने का निश्चय टूट जाएँ. किसी भी काम कि नियमितता ही जीवन को अनुशासित रखती है और इस तरह हमारे निश्चय और अधिक दृढ होते चले जाते है.

सबसे महत्वपूर्ण और नाजुक पहलू जहाँ हम सभी चुक कर बैठते है वह है दृढ निश्चय और हठ में फर्क करना. दृढ निश्चय अंतस कि आवाज़ के प्रति हमारी निष्ठा है तो हठ हमारे अहम् कि उपज. यदि जीवन में कभी ऐसा लगे कि हमारी योजनाएं प्रकृति की योजनाओं से भिन्न है. प्रकृति हमारे जीवन को किसी और रूप में लहलहाना चाहती है, किसी और सुगंध से महकाना चाहती है तो हमें बिना किसी ग्लानि के पूरे आत्म - विश्वास के साथ प्रकृति से ताल मिला लेनी चाहिए. यह समय होता है निश्चयों को पुनर्भाषित कर नयी राह चुनने का. सोचिये यदि गाँधी जी वकील और अब्राहम लिंकन व्यापारी ही बने रहते तो क्या होता ? सच तो यह है की हमारी पहली वचनबद्धता अपने आप से है फिर किसी और से, चाहे वह कोई विचार हो या व्यक्ति.

इसका मतलब यह कतई नहीं है की हम अपनी मनः स्थिति यानी मूड को प्रकृति के इशारे का नाम देकर रास्ते की बाधाओं से पीछा छुडा लें और अपने जीवन को भाग्य भरोसे कर दें. अनुकरणीय व्यक्तित्व वही है जो शुरूआती आनंद के बाद भी अपने काम में उसी जोश के साथ लगा रहे जो उसमें सपनो को देखते समय था. जीवन को भाग्य भरोसे करना मतलब अवसरों का इंतज़ार करना. जीवन को इस तरह जी कर भी हम कई बार सफल होंगे और कई बार असफल लेकिन हर बार अपने आपको और कमजोर बनाएँगे लेकिन यदि हमारे जीवन का मूलमंत्र दृढ निश्चय है तो ज्यादा बार सफल होंगे, कुछ बार असफल भी लेकिन हर बार और अधिक मजबूत होकर उभरेंगे. अवसर गुलामी है तो दृढ निश्चय पुरुषार्थ. वास्तव में हमारा जीवन ईश्वर का निश्चय है और हमारा निश्चय ईश्वर को हमारी भेंट. 


(दैनिक नवज्योति - 8 अप्रैल ; स्तम्भ - अपनी ज्योति आप)

आपका
राहुल.....  

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