Sunday, 18 March 2012

मुझ ही में मेरी सफलता


यह घटना है उस युवक की जो कार्टूनिस्ट होने के अपने सपनो को पूरा करने में लगा था. उसने जितने अख़बारों के दरवाजे खटखटाए सबने उसे इस सलाह के साथ लौटा दिया की बेहतर है की वह किसी और काम के बारे में सोचे. काम की तलाश करते - करते उसकी माली हालत इतनी खराब हो चुकी थी की उसे एक खस्ता हालत गैराज में रहना पड़ा जिसमे जगह - जगह चूहों ने बिल बना रखे थे. खली बैठे - बैठे वह इन चूहों की अठखेलियाँ देखता और फिर के चित्र बनने लगा. एक चूहा जो कुछ ज्यादा ही शरारती था उस युवक का दोस्त बन गया और उसके चित्रों का हीरो. उसने अपने हीरो का नाम ' मिकी ' रखा और यह युवक था वॉल्ट डिज्नी. 

वॉल्ट डिज्नी की ही तरह हममें वह सब कुछ होता है जो हमारी सफलता के लिए जरुरी है. हमारा होना हममें कंही छिपा होता है ठीक उसी तरह जिस तरह एक चिड़िया में उसका उड़ पाना होता है. हमें तो बस उस चिड़िया की तरह ही दिल से उठी उड़ने की इच्छा को सुनने के लिए कान खुले रखने है, अपने उड़ पाने की क्षमताओं पर विश्वास करना है और उड़ान भरने की कोशिश में जुट जाना है चाहें कितनी भी बार कोशिश क्यों न करनी पड़े.

इसी बात को दूसरी तरफ से देखें तो हमारा अंतर्मन की आवाज़ ही वो दिशा है जहाँ सफलता हमारा इन्तजार कर रही है. कोई भी आवाज़ उसके होने का प्रमाण होती है. अन्तर्मन हमें वही करने को प्ररित करता है जिसका कर पाना हमारे लिए संभव है. दुनिया के सफलतम व्यक्ति वे ही है जिन्होंने अन्तर्मन की आवाज़ को अपना लक्ष्य बनाया. यहाँ मुझे  ' 3 इडियट्स ' का वो संवाद याद आता है जहाँ रेंचो अपने दोस्तों से कहता है की सोचो यदि लता मंगेशकर ने क्रिकेट खेला होता या सचिन तेंदुलकर ने गाना गया होता तो वे आज कहाँ होते.

तो फिर सभी तो सफल नहीं होते ? वो इसलिए क्योंकि वे अपने सपनों और अंतर्मन की आवाज़ पर विश्वास नहीं करते. सफल होने के लिए सबसे अहम् तथ्य हमारा यह विश्वास है की हम जो कुछ होना चाहते है वह सही है, हम उसके काबिल है और हममें वो सारे गुण मौजूद है जो उसके लिए जरुरी है. मुझ ही में मेरी सफलता निहित है. हमारा यह विश्वास ही हमारी लगातार कोशिशों की प्रेरणा - शक्ति बनता है.

प्रकृति ने अकेले मानव को कल्पनाशीलता का गुण दिया है. हम ही है जो गेंहूँ से रोटी की कल्पना कर सकते है और कपास से कपडे की. हममें वो शक्ति है, वो विवेक है जिससे हमें जो कुछ मिला है उसे जो कुछ चाहिए में बदल सकते है.
हम सभी ईश्वर की स्वतंत्र अभिव्यक्ति है. जिस तरह गेहूं की सफलता रोटी होने में है और कपास की कपड़ा होने में उसी तरह हमारी सफलता हमारी सच्ची अभिव्यक्ति में है. हमारा होना ईश्वर की इच्छा है, हमारा जीवन उसकी भेंट और हमारे अन्तर्मन की आवाज़ उसकी हमसे अभिव्यक्ति की चाह ; इसलिए हमारे असफल होने की तो गुंजाइश ही नहीं बचती.

सफलता की इन्ही शुभकामनाओ के साथ ;

आपका
राहुल....


जैसा की ' दैनिक नवज्योति ' में 11 मार्च को छपा.


Sunday, 11 March 2012

हमारा जीवन हमारे हाथ





मैं इस स्तम्भ के सहारे एक यात्रा पर ले जाना चाहता हूँ जो हमसे हमारी पहचान करायें. किसी भी यात्रा की तरह यह भी जीवन के सिर्फ उसी मोड़ से शुरू हो सकती है जहाँ हम है. हम जीवन मैं जहाँ है जैसे है वह बिलकुल सही जगह है जहाँ से हम अपनी पसंद की जिन्दगी पा सकते है. हम बिलकुल ठीक है. तय करने भर की देर है हमारा जीवन ही हमारी अभिव्यक्ति बन जाएगा.

होता यह है की हमारा अहम् हमें यह विश्वास दिला देता है की जो कुछ भी हमें इस जीवन में भौतिक, मानसिक या आध्यात्मिक मिला है हम उससे ज्यादा के हकदार है और हम जहाँ भी है उसके लिए हमारा भाग्य या परिस्थितियाँ दोषी है.
भाग्य और परिस्थितियों की यह गुलामी हमें आज कैसे जियें को चुनने के प्रति लापरवाह बना देती है जिस पर वास्तव में हमारा कल टिका है.

वास्तव में हमारा आज भूतकाल में चुने विकल्पों का नतीजा है. हमने वो चुना जो हमारी समझ के हिसाब से समय, काल और परिस्थितियों के अनुरूप था. सच तो यह है की हमारा आज हमारी चेतना (कोंशियसनेस) और जागृती (अवेयरनेस) का दर्पण है और कल को बेहतर बनाने के लिए हमें आज अपनी चेतना और जागृती के स्तर को बढ़ाना होगा. बेहतर विकल्पों को चुन पाने के लिए अपनी समझ को विकसित करना होगा.

सच तो यह है कि अपने जीवन - अनुभवों के लिए सिर्फ और सिर्फ हम ही जिम्मेदार है. जिम्मेदारी का यह अहसास अपने आपको कोसने के लिए नहीं बल्कि मन में यह विश्वास जगाने के लिए है कि यदि में अपने अनुभवों के लिए स्वयं जिम्मेदार हूँ तो भविष्य में होने वाले अनुभवों को बेहतर बना पाना भी मेरे ही हाथ में है.

हम अपने जीवन कि तुलना स्कूल से कर सकते है जहाँ हमें पढाई पहली कक्षा से ही शुरू करनी होती है चाहें हम दाखिला किसी भी उम्र में क्यूँ न लें. जैसे - जैसे हम बड़ी कक्षाओं में आते है हमें अपने विषय - चुनाव करने होते है. हम जीवन में वही बनते है जिन विषयों को हमने सिखाना चुना था. बायलोजी का चुनाव कर कोई संगीतज्ञ नहीं बन सकता, डॉक्टर ही बनेगा लेकिन एक डॉक्टर ' आज ' संगीत सीखना चुन सकता है.

आईए, इस यात्रा कि शुरुआत इस अहसास के साथ शुरू करें कि जीवन में हम जहाँ है वह बिलकुल सही जगह है. हमें तो बस थोडा और चेतन होना है थोडा और जागृत होना है तो कल का आज से बेहतर होना निश्चित है.

आपका...
राहुल 

New Begnning



नई शुरुआत 




आप मुझे बधाई दे सकते है. पिछले सप्ताह से मेरा कॉलम " दैनिक नवज्योति " में छपने लगा है जो हर रविवार को प्रकाशित होगा. ये विचार मैंने पिछले रविवार को नवज्योति में साझा किए थे. 

Saturday, 3 March 2012

Life is Beautiful




जीना इसी का नाम है 




एक बार मेरे प्रिय लेखक ऐलन कोहेन अपने ही शहर के ' ईस्ट माउइ रिफ्यूज ' केंद्र को देखने गए. यह केंद्र लाइलाज समझी जाने वाली बीमारीयों, सड़क दुर्घटना में बुरी तरह से घायल या किसी और वजह से हुआ बेसहारा पशु - पक्षियों के इलाज और सेवा में समर्पित है. इसे एक दम्पति सिलवान और सूजी चलाते है. इस फार्म में उस समय करीब 400 पशु -पक्षी थे.
ऐलन जब वहाँ पहुंचे तो उनका स्वागत सिलवान और ऑस्ट्रलियन शीप डॉग ने किया जो अँधा था. फार्म में घूमते हुआ वो उस बिल्ली से भी मिले जो एड्स से पीड़ित थी.सिलवान ने उसके जख्मों पर एंटी - बायोटिक लगते हुआ बताया की ये दवाईयाँ उस पर लागू हो गयी है और उसकी तबियत तेजी से सुधर रही है.
फार्म पर घूमते -घूमते ऐलन ने अपने प्रिय पक्षी तोते के बारे में पूछा तो सिलवान उन्हें अपने ऑफिस में ले गए जहाँ छोटे - छोटे कार्डबोर्ड के खानों में रखे पक्षियों को सूजी आईड्रोपर से खाना खिला रही थी. वहाँ उसने ऐलन को ब्लू से मिलवाया.
सिलवान ने बताया कि इसके मालिक इसकी सुन्दरता देखकर इसे ले तो आये लेकिन उन्हें तोते का रख - रखाव नहीं आता था. उन्होंने उसे अलमारी में बंद कर दिया. घुप्प अँधेरे में तीन साल बंद रहने कि वजह से धीरे - धीरे उसके सारे पंख चले गए लेकिन अब इस खुले वातावरण में रहते - रहते उसके सारे पंख वापस आ गए.

ईश्वर या प्रकृति ने हम सभी को असीमित क्षमताएं और असीमित संभावनाएं दी है बशर्ते हम उन्हें काम में लें वरना वे ताते के पंखों कि तरह गायब हो जाती है. यदि किसी कारण से गायब हो भी जाए तो भी घबराने कि कोई बात नहीं है क्योंकि खुले मन से हम कोशिश करें तो ताते के पंखों की ही तरह वे वापस मिल भी जाती है.

फार्म पर पूरा घूम लेने के बाद जब ऐलन ने सिलवान से पूछा की ये सब कैसे शुरू हुआ तो उसने बताया की सूजी शांति से मरने माउइ आई थी, उसे टर्मिनल कैंसर था और डॉक्टर्स जवाब दे चुके थे. यहाँ वह एक चीनी डॉक्टर से मिली जिसने जड़ी - बूटियां देते हुआ हिदायत दी की ये तब ही प्रभावी होंगी जब वो अपने आपको किसी ऐसे काम में व्यस्त कर ले जो उसे आत्मिक सुख और संतुष्टी दे.
यह तब की बात है जब हम पहले पहल मिले थे और पाया की हम दोनों को ही पशु - पक्षियों से बेहद लगाव है और यही हमारे प्रेम का कारण बना.

प्रेम एक दुसरे की आँखों में नहीं वरन  अपनी - अपनी  आँखों से दुनिया को एक ही तरह से देखते हुए जीवन - उत्सव का आनंद मनाने में होता है. प्रेम में वे ही है जो दुनिया को एक ही नज़र से देखते है.

वे लोग पेट शॉप से किसी  बीमार कुत्ते को लाते और उसका इलाज और सेवा करते और ठीक होने पर लोटा देते . धीरे - धीरे उनके जूनून की खबर आस पास के लोगो में फैलने लगी और अब तो लोग स्वयं बीमार और घायल पशु - पक्षियों को उनके पास छोड़कर जाने लगे.
सूजी को तो जैसे जीवन उद्देश्य मिल गया था; जितनी सेवा करती उतना ही उसका दर्द कम होता जा रहा था. कुछ महीनों बाद जब हम डॉक्टर के पास गए तो टूयमर जा चुका था और सिलवान ने ऐलन को बताया यह करीब तेरह साल पुरानी बात है.

जो काम सच्चा  आनंद और संतुष्टी दे वही हमारा जीवन उद्देश्य है और यही जीवन की सारी समस्याओं का उपचार भी.

जीवन आनंद और आत्मिक संतुष्टी की शुभकामनाओं के साथ.
आपका

राहुल......

Sunday, 19 February 2012

Ease Works



जीवन  - संगीत




इस सप्ताहांत तक में तय नहीं कर पाया था की मैं आपसे किस विषय पर बात करूँगा. हर बार तो जो कुछ पढ़ा, समझा, जाना होता है उसमे से ही कोई विषय जो दिल को छूने वाला और मन को उद्वेलित करने वाला होता है के बारे मैं सोचकर, मननकर और कुछ इधर-उधर से जानकारियां इकट्ठी कर आपसे रूबरू हो जाता हूँ. इससे मुझे लगने लगा था की मेरा नया पढ़ना और जानना छुट रहा है और तब सोचा की कुछ नया पढना शुरू करूँगा और उसी में से कुछ निकालूँगा.
मैंने एक किताब शुरू की लेकिन मेरा सारा ध्यान विषय-चुनाव पर लगा था और मैं न तो पढ़ाने का रस ले पा रहा था और न ही लिखे को अपनी सोच का हिस्सा बना पा रहा था. मैं आदतन धीरे पढता हूँ पर इस बार दुगुना पढ़ गया. मुझे कोई बात अच्छी भी लगती तो सोचता आगे कुछ और ज्यादा अच्छा मिलेगा, और पूरा सप्ताह गुजर गया.
 
प्रकृति हमारे हर सवाल का जवाब देती है पर जरा अपने ढंग से. पढ़ते-पढ़ते मैं उस अध्याय पर पहुँच चुका था जिसका शीर्षक था ' Take it easy '. मैं ठिठका, होश आया, अपने आपको स्थिर किया तब दो बातें वापस समझ आई.

पहली, मंजिल पर पहुंचना उत्सव तब ही है जब यात्रा का आनंद आये. यात्रा मैं हर पग को महसूस किया हो, हर नज़ारे का लुफ्त उठाया हो तब ही मंजिल सुनहरी लगती है अन्यथा यदि यात्रा को हम सिर्फ काम मन लेंगे तो मंजिल बन जायेगी काम का निपटारा और खुशियाँ बनी रहेंगी मृग-मरीचिका.

दूसरी, संघर्ष हमारी नियति नहीं हमारा द्रष्टिकोण है. यदि हम मानते है की जो कुछ हम चाहते है वह बिना संघर्ष के मिल ही नहीं सकता तो विश्वास मानिए ऐसा ही होगा क्योंकि प्रकृति तो हर हाल में हमारा साथ निभाएगी. संघर्ष शब्द ही नकारात्मक है जिसे महसूस करें तो पाएंगे की उसमे कंही यह भावना छुपी है की ' हम जो कुछ पाना चाहते है उसके लायक नहीं है और इसलिए अतिरिक्त कठिन प्रयासों की जरुरत है.'
हमारे इस द्रष्टिकोण के लिए कुछ हद तक हमारे संस्कार (belief-system) जिम्मेदार है जहाँ हम बचपन से सुनते आये है, ' कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है ' , ' संघर्ष ही जीवन है' , ' तप कर ही सोना निखरता है', ' जीवन एक दौड़ है.'  आदि, आदि. हमारी यह सोच हमारी दृष्टी को धुंधला देती है, अंतस की आवाज़ हम तक नहीं पहुँच पाती, हम अच्छे - बुरे का भेद नहीं कर पाते और खुद ही अपने जीवन को संघर्षमय बना लेते है. 

वास्तव मैं ऐसा नहीं है, हो ही नहीं सकता. प्रकृति तो बाहें फैलाए है, हर वो चीज देने को आतुर है जो हम पाना चाहते है. जरुरत है हमें अपना द्रष्टिकोण बदलने की. हमारा निश्चिन्त भाव हमें अपनी रचनात्मक ऊर्जा से जोड़ देता है जिससे हमारे कदम प्रभावी हो उठते है. रास्ते की थकान नहीं आती. यात्रा के हर क्षण का आनंद ले पाते है. मंजिल आसान लगने लगती है.

सच तो यह है की हम चाहते भी वहीँ है जो वास्तव में हमें पहले से मिला हुआ है और हमारा जीवन - उद्देश्य , हमारे प्रयास उसे पाने के लिए नहीं महसूस करने के लिए है.
जीवन - स्पर्श से उपजी इन्ही मधुर तरंगो के साथ अपनी बात को यहीं विराम देना चाहूँगा.
दिल से, आपका;
राहुल.....

Saturday, 11 February 2012

Appreciation is Blessing


Count your blessings,
Count them one by one.
Count your blessings,
See what god has done.


सराहना ही आशीर्वाद है. सराहना का मतलब है जीवन में जो कुछ भी उपलब्ध है उसे पहचानना और उसके प्रति कृतज्ञ होना. आशीर्वाद का मतलब है ईश्वर की कृपा को आगे पहुंचाना.
अब इन शाब्दिक अर्थों के परे जाकर गौर करें तो हम पायेंगे की हम किसी भी व्यक्ति या वस्तु को और अधिक धन्य नहीं कर सकते क्योंकि प्रकृति का  हर घटक परमात्मा की स्वतंत्र अभिव्यक्ति है.यदि ईश्वर कण-कण में है तो हमारे शुभ-वचन उसकी उपस्थिति को बढ़ा कैसे सकते है? तो क्या आशीर्वाद के कोई माने नहीं?
नहीं, ऐसा नहीं है. आशीर्वाद हमारी प्रेरणा-शक्ति होते है. आशीर्वाद देने वाला अपने अंदर के ईश्वर तत्व को पहचान पाता है तब ही तो वह अपने आपको किसी और को धन्य कर पाने के लायक समझता है. ऐसा व्यक्ति उस व्यक्ति में भी मौजूद ईश्वरीय तत्वों को महसूस कर पाता है जिसे वह आशीर्वाद दे रहा होता है. वह अपने शुभवचनो से उसे यह भरोसा दिलाता है की वो जीवन की सारी संभव अच्छाइयों का हकदार है.

इसी तरह जब हम किसी व्यक्ति या वस्तु को सराहते है तब हम उनके गुणों को पहचान कर स्वीकार कर रहे होते है जो उनमें पहले से मौजूद थे और हम अपने शब्दों द्वारा हमारे जीवन में उनकी मौजूदगी के लिए धन्यवाद दे रहे होते है, कृतज्ञ हो रहे होते है. किसी भी व्यक्ति या वस्तु के वो गुण जो हमें कृतज्ञता की भावना से भर दे ईश्वरीय ही तो है. हम सराहना कर उनमें ईश्वरीय तत्वों को पहचानते है, स्वीकार करते है और ऐसा कर हम अपने अन्दर क ईश्वरीय तत्वों को महसूस कर पाते है. वास्तव में सराहना और आशीर्वाद एक दुसरे के ईश्वरीय गुणों को पहचानने , स्वीकार करने और उनके  प्रति कृतज्ञ होने की प्रक्रिया भर है.

हम में से ज्यादातर लोग किसी न किसी प्रार्थना के नियम को पालते है. कोई भी प्रार्थना हो उसमें हम उस सृष्टिकर्ता के गुणों का बखान ही तो करते है. यह सराहना नहीं तो क्या है? यह प्रार्थना हमें हमारे अंदर पहले ही से मौजूद सृष्टिकर्ता के उन गुणों से जोड़ देती है और हम अपने इच्छित को प़ा लेने के प्रति आशावान हो उठते है. सराहना न केवल आशीर्वाद है बल्कि प्रार्थना भी है. यदि प्रार्थना का पारम्परिक स्वरुप नहीं भाता है तो कोई बात नहीं बस अपने जीवन को जो कुछ मिला है उसे सराहते गुजारिये; यही सच्ची प्रार्थना है. करते हम इसका बिलकुल उलट है. ईश्वर में तो आस्था रखते है लेकिन उससे मिले जीवन और जीवन में मिली नेमतो को कभी नहीं सराहते. जिस तरह एक गृहिणी के अच्छे खाने की प्रशंसा कर ही उसे और अच्छा बनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है उसी तरह जीवन में जो कुछ अच्छा प्राप्त है उसकी सराहना कर ही जीवन के उन द्वारो को खोला जा सकता है जहाँ से ईश्वर के आशीर्वाद बरस सकें.

जीवन के प्रति यह दृष्टिकोण अपना कर हम इसे और बेहतर बना पायें, दिल से इन्ही शुभकामनाओं के साथ,

आपका,
राहुल....

Sunday, 8 January 2012

BE EFFECTIVE

आपका सम्मान आपके हाथ 
 

            " थोड़ी बातें कम हों, कोरे उपदेशो से मन नहीं मिलते.
               तो क्या करें ? झाड़ू उठाइये और किसी का घर साफ़ कर दीजिये. आप सही अर्थों में कह पायेंगे. "
                                                                                                                       -- मदर टेरेसा
अपनी बात को कहने का प्रभावी तरीका हमारे शब्द नहीं हमारा आचरण होता है. निश्चित रूप से आपसी संवाद बहुत जरुरी है लेकिन कारगर तब है जब अगला समझना चाहे. आप जिन भावनाओ से कह रहे है उसमे उसे पूरा विश्वास और श्रद्दा हो. वह आपके संवाद को आपकी कमजोरी न समझे.

सामान्यतया घर हो या बाहर लोग हमारी बात अपने मतलब जितनी और अपने मतलब के हिसाब से सुनते और समझते है. जब इन्हें विश्वास हो जाता है की हमारी असहमति सिर्फ शब्दों से बंधी है जिसे हम व्यवहार में कभी नहीं लायेंगे तो ये लोग जाने - अनजाने अपनी इच्छा की करने के लिए इसे काम में लेने लगते है. हमारा जीवन अनचाहे दायित्वों से लद जाता है जिसका नियंत्रण किसी और के हाथ होता है. हमारी बात के इस तरह अप्रभावी होने से हर वक़्त झुंझलाहट से भरे रहते है और धीरे - धीरे अपने आपको कमतर मानने लगते है.

यह उन सब गहरे पैठे हुआ संस्कारों के कारण होता है जिसमें अपनी असहमति को स्पष्ट और ठोस शब्दों में कहना ध्रष्टता ( जबान लड़ाना ) होती है और अपने मन की कही करना अपमान होती है जो हमसे कुछ और चाहते है. वास्तव में यह न तो ध्रष्टता है और न ही अपमान बल्कि यह तो आत्म - सम्मान है. सच तो यह है की हमारा आचरण ही लोगों को हमारे साथ उचित व्यवहार करना सिखाता है.

बच्चों को प्रलोभन देकर खाना खिलाने की बजाय कुछ देर भूख महसूस होने दीजिये. पत्नियाँ यदि आपके काम के बीच गृहस्थी के छोटे - मोटे कामों में घसीटती है तो उन पर कान न धरिये. पति बार - बार आपके साथ अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करते है तो पहली बार वहां से हट कर और दूसरी बार कड़े शब्दों में जता दीजिये की आप इसे सहन नहीं करेंगी. रिश्तेदार आपकी भलमानसता का फायदा उठाये तो उन्हें साफ़ लेकिन विनम्र शब्दों में अपनी असमर्थता व्यक्त कर दीजिये.आप देखेंगे की आपका आचरण आपको अधिक सम्मान दिलाएगा और लोग आपको ज्यादा गंभीरता से लेंगे.

एक पुरानी कहावत कहावत के साथ अपनी बात यही विराम देता हूँ.
                           
                              मैं सुनता हूँ, भूल जाता हूँ
                              मैं  देखता हूँ, मुझे याद रहता है
                              लेकिन
                              जब मैं स्वयं करता हूँ,
                              तब मुझे समझ आता है.
आपका,
राहुल....

पुनश्चः घर मैं शादी का उत्सव है और जयपुर मे लिटरेरी फेस्टिवल इसलिए आपसे फरवरी के पहले सप्ताहांत मैं वापस रु -बरु हो पाऊंगा, धन्यवाद.