Sunday 8 January 2012

BE EFFECTIVE

आपका सम्मान आपके हाथ 
 

            " थोड़ी बातें कम हों, कोरे उपदेशो से मन नहीं मिलते.
               तो क्या करें ? झाड़ू उठाइये और किसी का घर साफ़ कर दीजिये. आप सही अर्थों में कह पायेंगे. "
                                                                                                                       -- मदर टेरेसा
अपनी बात को कहने का प्रभावी तरीका हमारे शब्द नहीं हमारा आचरण होता है. निश्चित रूप से आपसी संवाद बहुत जरुरी है लेकिन कारगर तब है जब अगला समझना चाहे. आप जिन भावनाओ से कह रहे है उसमे उसे पूरा विश्वास और श्रद्दा हो. वह आपके संवाद को आपकी कमजोरी न समझे.

सामान्यतया घर हो या बाहर लोग हमारी बात अपने मतलब जितनी और अपने मतलब के हिसाब से सुनते और समझते है. जब इन्हें विश्वास हो जाता है की हमारी असहमति सिर्फ शब्दों से बंधी है जिसे हम व्यवहार में कभी नहीं लायेंगे तो ये लोग जाने - अनजाने अपनी इच्छा की करने के लिए इसे काम में लेने लगते है. हमारा जीवन अनचाहे दायित्वों से लद जाता है जिसका नियंत्रण किसी और के हाथ होता है. हमारी बात के इस तरह अप्रभावी होने से हर वक़्त झुंझलाहट से भरे रहते है और धीरे - धीरे अपने आपको कमतर मानने लगते है.

यह उन सब गहरे पैठे हुआ संस्कारों के कारण होता है जिसमें अपनी असहमति को स्पष्ट और ठोस शब्दों में कहना ध्रष्टता ( जबान लड़ाना ) होती है और अपने मन की कही करना अपमान होती है जो हमसे कुछ और चाहते है. वास्तव में यह न तो ध्रष्टता है और न ही अपमान बल्कि यह तो आत्म - सम्मान है. सच तो यह है की हमारा आचरण ही लोगों को हमारे साथ उचित व्यवहार करना सिखाता है.

बच्चों को प्रलोभन देकर खाना खिलाने की बजाय कुछ देर भूख महसूस होने दीजिये. पत्नियाँ यदि आपके काम के बीच गृहस्थी के छोटे - मोटे कामों में घसीटती है तो उन पर कान न धरिये. पति बार - बार आपके साथ अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करते है तो पहली बार वहां से हट कर और दूसरी बार कड़े शब्दों में जता दीजिये की आप इसे सहन नहीं करेंगी. रिश्तेदार आपकी भलमानसता का फायदा उठाये तो उन्हें साफ़ लेकिन विनम्र शब्दों में अपनी असमर्थता व्यक्त कर दीजिये.आप देखेंगे की आपका आचरण आपको अधिक सम्मान दिलाएगा और लोग आपको ज्यादा गंभीरता से लेंगे.

एक पुरानी कहावत कहावत के साथ अपनी बात यही विराम देता हूँ.
                           
                              मैं सुनता हूँ, भूल जाता हूँ
                              मैं  देखता हूँ, मुझे याद रहता है
                              लेकिन
                              जब मैं स्वयं करता हूँ,
                              तब मुझे समझ आता है.
आपका,
राहुल....

पुनश्चः घर मैं शादी का उत्सव है और जयपुर मे लिटरेरी फेस्टिवल इसलिए आपसे फरवरी के पहले सप्ताहांत मैं वापस रु -बरु हो पाऊंगा, धन्यवाद.

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