Tuesday 26 June 2018

एक रास्ता यह भी







दोस्तों के बीच उस दिन चर्चा का विषय था कि हमें किसी की राय से कोई फर्क पड़ना भी चाहिए या नहीं? हमें किसी की सुननी भी चाहिए या जो हमने सोचा है उसी पर चलते चला जाना चाहिए? शीर्षक दिया था हमने, "ओपिनियन मैटर्स?" एक ने कहा कि किसी की क्या राय है इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता, और पड़ना भी नहीं चाहिए क्योंकि इस शब्द में बू ही नकारात्मकता की है। लेकिन हाँ, यदि कोई अपना मुझे सलाह देता है तो मैं जरूर सुनूँगा। सलाह आपको सुनती है और राय आपको एक खास नजर से देखती है और उसी को सही मानने को कहती है। ये तो किसी और के हिसाब से अपनी जिन्दगी जीना हुआ! 

कुछ का मत था कि किसी अपने की राय को सुनना अपनी दृष्टि को विस्तार देना है, तस्वीर को पूरी देखने की एक कोशिश। हो सकता है हम किसी बात का वो पक्ष देख ही नहीं पा रहे हों। प्रकृति वो भी हमारे सामने रखना चाहती हो  ऐसे में उसकी राय को नहीं सुनना तो अपने निर्णयों को कमजोर और अपनी सफलता को संदिग्ध बनाना ही होगा! बेहतर है हम सब की नहीं पर अपनों की तो सुनें, उसे अपने सन्दर्भों में सोचें, और ठीक पायें तो अपनायें। यही फूल प्रूफ स्ट्रैटेजी हो सकती है। 

एक ने कहा, कोई बात ऐसी नहीं होती जिसका ताल्लुक बस हम से ही होता है। और हर बात में कोई एक लीडर होता है जिसकी राय निर्णायक होनी ही चाहिए। इन सब के बीच वे जो ध्यान और धैर्य से सुन रही थी, उन्होंने कहा, 'निर्भर करता है।' जीवन में कई बातें ऐसी होती है जिनमें तो मैं किसी की नहीं सुनुँगी। चाहे किसी को भी ठीक न लगे, मुझे मालूम होता है कि मैं जो कर रही हूँ वो सही है, और उसके बिना मैं नहीं रह सकती। हाँ, उसके अलावा की बातों में मैं सुनुँगी ही नहीं, मानूँगी भी। यहाँ तक कि कोई हर्ज नहीं होगा तो वो भी जिन्हें मैं ठीक नहीं समझती लेकिन मेरी है वो तो मेरी ही है। 

वे फीमेल बाइक राइडर हैं, हाल ही मैं 9,000 कि.मी. की सोलो राइड करके आयीं हैं। बाइक राइडिंग उनका जुनून हैं, वे उसी परिपेक्ष्य में बात कर रही थी। वे कह रही थी कि इसके बिना मैं नहीं रह सकती इसलिए मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसकी क्या राय है। 
घर आकर जब मेरे जेहन में सारी बातों का रिपीट टेलीकास्ट चल रहा था तो लगने लगा ऐसा तो हम सब के साथ में है। कुछ बातें हम सबकी हैं जो हमें करनी ही होती हैं। जिनके बारे में हमें कोई सन्देह नहीं होता; न ये कि मैं कर रहा हूँ वो सही है या नहीं और न ही ये कि ये मुझसे हो पाएगा कि नहीं। उनमें मेरा विश्वास नहीं आस्था होती है।  

और तब जो मैं समझा वो ये कि ये ही वे बातें होती हैं जो हमारा होना होती हैं। इन्हीं से हम अपनी सम्पूर्णता पाते हैं, यही वो खिड़की होती से जिससे खुशियों की रोशनी हमारी जिन्दगी के भीतर आती है। यही हमें करना होता है और यही वे बातें होती हैं जिसके लिए हम इस बार आये हैं, जैसे बाइक राइडर होना उनका होना हैं। 
तो, एक रास्ता यह भी है पता करने का कि हमें जिन्दगी में करना क्या है,- वो बात जो हम इतनी शिद्द्त से चाहें कि किसी की भी राय का हमें फर्क न पड़े। 

दैनिक नवज्योति स्तम्भ-'जो मैं समझा' 
(रविवार, 20 मई 2018 के लिए)

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