Friday 4 October 2013

ये भी जरुरी है



ये घटना कोई पांच साल पुरानी होगी। मैं अपने कॉलोनी पार्क में सुबह-सुबह टहल रहा था। क्या देखता हूँ, हमारी कॉलोनी के सेक्रेटरी ही खड़े होकर एक हरे-भरे पेड़ को कटवा रहे हैं। पहली बार तो चुप रहा लेकिन दूसरी बार जब उनके पास से गुजरा तो मुझसे रहा न गया। मैंने उनसे पूछा वे ऐसा क्यों कर रहे हैं तो उनका जवाब था, इस पेड़ के पत्तों और छाल को छूने से खुजली हो जाती है और सर्दियों के मौसम में तो इसमें से ऐसी गंध आने लगती है कि पक्षी भी इस पर नहीं बैठते। उनका जवाब सुन, संतुष्टि का भाव लिए मैं आगे बढ़ गया लेकिन मन था कि इसे मथे जा रहा था। 

कई दिनों तक ये बिलौना चलता रहा और जो अंततः बाहर निकला वो यह था कि श्रेष्ठ तो यह है, आपके पत्ते और छाल किसी के लिए औषधि बनें और आप अपनी सुगंध से उधान को महकाएँ। यदि ऐसा न भी हो पाए तो कम से कम ऐसा तो न हो कि कोई आपके पास फटकना भी न चाहे और गलती से छू भी ले तो उस बेचारे को खुजली हो जाए। तो सारांश यह था कि पेड़ हो या व्यक्ति, जिसका होना वातावरण और समाज को दूषित करे और जिसका स्वभाव बदल पाना किसी तरह सम्भव न हो तो उसका नष्ट किया जाना ही शुभ है। ये घटना तब पुनः याद हो आई जब पिछले दिनों कोर्ट ने उन चार दरिंदों को फाँसी की सजा सुनाई। यही शुभ था। 

हमने अहिंसा को हमेशा ही गलत समझा है और यही वजह है की आज अहिंसा कायरता का पर्याय बन गई है। अहिंसा तो वीरता है और वो इसलिए कि करने वाला अन्त तक इसे नहीं करने की कोशिश करता है और वो सारे उपाय करता है जिससे हिंसा से बचा जा सके। हिंसा उसके लिए अन्तिम उपाय होती है। एक वीर के लिए हिंसा अन्तिम उपाय होती है और एक कायर के लिए प्रथम। जब हिंसा अन्तिम उपाय होती है तब वो शुभ हो जाती है, कर्तव्य बन जाती है और कर्ता को महान बना देती है। 

संहार ही सृजन का आधार बनता है और यही इस घटना में भी था। पेड़ दुर्गन्ध और खुजली फैलता हो तो न तो कोई पक्षी उसकी डाल पर बैठता है और न ही कोई व्यक्ति उसकी छाहं में आश्रय लेता है और तब उसे काट देने के अलावा कोई चारा नहीं बचता और इसी तथ्य में जीवन-रस का सृजन छिपा था। यही बात सीखने-समझने की है। समझने की यह कि हम किसी के जीवन में तकलीफों का कारण नहीं बनें नहीं तो उनके पास हमें अपनी जिन्दगी से निकाल देने के अलावा कोई रास्ता न बचेगा। जब इतना कर लें तो यह बात सीखने की है कि हम अपने में ऐसी बात पैदा करें कि सब हमारे समीप रहना चाहें। हम में से वो सुगन्ध आए। 

हम सब एक दूसरे से सबद्ध है। यह बात सही है कि हमारी सुन्दरता और खुशियाँ हम ही में छिपी है लेकिन इसका मोल तब ही होगा जब ये आस-पास के पूरे वातावरण में भी छाई हो, अन्यथा ये वैसी ही बात होगी कि हमारी जेब में तो ढेर सारे पैसे हों लेकिन खरीदने के लिए बाज़ार में कुछ नहीं। यदि आपको अपने जीवन में सुन्दरता और खुशियों की रचना करनी है तो आपको दूसरों के जीवन को उतनी ही सुन्दरता और खुशियों से भरना होगा। यदि आप उधान का सुन्दर वृक्ष है; खिले फूल, अद्भुत सुगन्ध और छायादार। यदि आने वाले आपकी छाया में बैठकर सुकून पाते है, यदि आपके होने से उधान की सुन्दरता है तो निश्चिन्त रहिए आपका आपसे बेहतर ध्यान माली स्वयं रखेगा। 

आपका,
राहुल …………  

No comments:

Post a Comment