Friday 14 June 2013

कुछ न कुछ चलता ही रहता है


एक जवाब जो मैंने सबके मुँह से सुना है वह यह कि कुछ न कुछ चलता ही रहता है। हमारी जिन्दगी की शांति इस रोजाना के नए घटने ने छीन रखी है। कई बार तो ऐसा लगता है की हमारी जिन्दगी कोई कम्प्यूटर गेम है, हम उसके हीरो और हमारा टास्क है, चारों ओर से हो रहे हमलों से खुद को बचाना। क्या प्रतिपल इन बदलती परिस्थितियों से लड़ना ही व्यक्ति की नियति है और शांत जीवन एक मृग-मरीचिका। ऐसा कैसे हो सकता है? लेकिन यह भी सत्य है कि हम सब महसूस तो ऐसा ही कुछ करते है।

सोचते-सोचते जिस जगह आकर विचारों की रेल रुकी वह था कि यदि ऐसा सभी के साथ हो रहा है तो निश्चित ही इसकी कोई न कोई सार्थक वजह होगी क्योंकि प्रकृति में कुछ भी निरुद्देश्य नहीं। 'क्यों सबके जीवन में कुछ न कुछ चलता रहता है? का जवाब ही शायद हमें बदलती परिस्थितियों से सहज होने में मदद कर सके। हमारे मन में संतुष्टि और जीवन में शान्ति ला सके।

इसमें कोई दो राय नहीं कि हम सब अपने जीवन को प्रतिक्षण बेहतर बनाने की कोशिश में लगे है, यही पुरुषार्थ है और यही अपेक्षित भी। मुझे लगता है इस बात को थोडा उधेड़ने की जरुरत है। बेहतर जीवन तो तब ही सम्भव है ना, जब वो पहले से बदले और बदलाव होगा तब निश्चित ही जिन्दगी की सतह पर ऐसी चीजें उभरेंगी जिनसे हमें मुक्त होना होगा। यह ठीक वैसे ही है जैसे हम अपने कमरे की सफाई कर रहे हों। कमरे की झाड़ू लगाएंगे तो कोनों में दबा कचरा एक बार तो फर्श के बीचों-बीच आएगा ही, जिसे इकट्ठा कर बाहर फेंकना होगा। कचरे से परहेज करेंगे तो सफाई कैसे होगी। कमरे की सभी चीजों को अपनी जगह से सरकाना और कचरे का फर्श के बीचों-बीच आना, कमरे को साफ़-सुंदर बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है और यही दृष्टिकोण हमें जिन्दगी की प्रतिपल बदलती परिस्थितियों के प्रति रखना होगा। रोजमर्रा में आने वाले असहज क्षण बेहतर जिन्दगी को पाने की प्रक्रिया का हिस्सा भर है। जिन्दगी में कुछ न कुछ चलते रहना तो बदलाव का शुभ-संकेत है क्योंकि हर बदलाव जीवन को पहले से बेहतर बनाने को ही आता है।

आपसे यह बात करते हुए मुझे तितली का जीवन-चक्र याद आ रहा है। मुझे नहीं लगता बदलाव और बेहतरी का इससे सुन्दर कोई और जीता-जागता उदाहरण हो सकता है। एक केटेपिलर धीरे-धीरे अपने ही भोजन के कारण फूलने लगता है। एक दिन इतना फूल जाता है कि उसकी चमड़ी ही तड़कने लगती है और अपने ही द्रव्य में कैद हो जाता है। इस कैद केटेपिलर को हम केकून कहते है लेकिन कुछ ही दिनों बाद वह केटेपिलर अपने द्रव्य को काम में ले एक सुंदर तितली बन उस कैद से बाहर निकलता है। हो सकता है कई बार बदलाव ज्यादा तकलीफदेह हो लेकिन यदि हमारी दृष्टि एक केटेपिलर की है तो वह निश्चित ही हमारे जीवन को कहीं अधिक सुन्दर बनाएगा।

इन सारी अच्छी-अच्छी बातों के बीच जो मन में बात रह-रहकर उठती है वह यह कि हमारी जिन्दगी में कई बदलाव ऐसे आए है जिनके परिणाम सुखद नहीं रहे। क्या कहेंगे हम उनके बारे में? अनुभवों को कैसे झुठलाएँ? मैंने जब अपने ही जीवन में आई ऐसी घटनाओं का विश्लेषण किया तो पाया कि ये बदलाव या तो मेरी बुद्धि से या किसी ओर व्यक्ति से निर्देशित थे न कि सहज प्राकृतिक। दोनों ही स्थितियाँ निरपेक्ष नहीं होती इसलिए इस तरह लाए बदलाव  सुखद नहीं होते। बुद्धि और सलाह का उपयोग बदलती परिस्थितियों को समझने और अर्थपूर्ण इस्तेमाल में हों न कि जबरदस्ती बदलाव  में।

बदलाव एक सहज प्राकृतिक घटना है जैसे समुद्र में उठती हुई लहरें। लहरों की दिशा में सर्फिंग कीजिए, सर्फिंग का आनन्द भी आएगा और बड़ी आसानी से किनारे पर पहुँच भी जाएँगे। ये कुछ न कुछ चलते रहना जिन्दगी के समुद्र में उठती हुई लहरें ही तो है, जरुरत है तो इनके साथ सर्फिंग करने की, फिर देखना जिन्दगी वैसे ही संतुष्ट और शांत हो जाएगी जैसे लहरों के नीचे समुद्र।


(दैनिक नवज्योति में रविवार, 9 जून को प्रकाशित)
आपका 
राहुल ............                 

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