Friday 7 June 2013

सोहबत से ही सीरत


यह बात सिद्ध हो चुकी है कि पौधे अपनों पत्तियों से माइक्रोस्कोपिक ध्वनियाँ निकालते है और ये ध्वनि तरंगे आस-पास लगे पौधों को प्रभावित करती है। यदि तुलसी के पौधे के बिल्कुल पास हम सौंफ का पौधा लगा दें, तो तुलसी के पौधे का विकास अवरुद्ध हो जाएगा। इसके विपरीत यदि दो पूरक ध्वनियों के पौधों को पास-पास लगा दिया जाए तो दोनों ही सामान्य से जल्दी और बेहतर फलने-फूलने लगेंगे।

अब ये तो हुई पौधों की बात। आइए, इस सन्दर्भ में कुछ हमारी बात भी कर लें। हम सब क्या है, ऊर्जा-पुंज ही तो है। हमारा जीवित होना ही हमारे ऊर्जा-पुंज होने का प्रमाण है। ऊर्जा, हमारे या किसी के भी सक्रिय होने की वजह और यह भी निश्चित है कि जो सक्रिय है उसकी एक तरंगीय आवृति यानी वाइबरेशनल फ्रीक्वेंसी भी होगी। जिसकी जितनी और जैसी सक्रियता उसकी उतनी और वैसी फ्रीक्वेंसी, और वैसा ही उसका प्रभाव। आपने देखा, किस तरह और किस हद तक हम एक-दूसरे को प्रभावित करते है और प्रभावित होते है। निश्चित ही, हम सब जानते है कि हम किन लोगों के बीच रहते है यह बहुत मायने रखता है लेकिन क्या हमने कभी समझा है कि यह मामला इतना गंभीर है?

कुछ लोग तर्क देते है कि, आप दुनिया को नहीं बदल सकते, आपको अपना ध्यान रखना है। आप अपना काम कीजिए और निकल लीजिए, कोई क्या करता है इससे आपको क्या लेना-देना। व्यावहारिक  जगत में इस बात की अपनी अहमियत है और कुछ हद तक ऐसा करना भी पड़ता है लेकिन याद रखने की जरुरत यह है कि ये सिर्फ उन स्थितियों के लिए है जिन्हें हम टाल नहीं सकते। इसका कतई ये मतलब नहीं है कि हम चाहे जैसे लोगों के बीच रहें, हमारा तो बस काम होना चाहिए। आप चाहे जितना सतर्क रह लें, यदि आप लगातार ऐसे लोगों के साथ है जैसा होना आप नहीं चाहते तो आप कभी सफल नहीं हो पाएँगे। हो सकता है आप उन जैसे होने से बच जाएँ परन्तु वैसे तो निश्चित ही नहीं बन पाएँगे जैसा आप बनना चाहते थे और इसमें आपकी कोई गलती भी नहीं होगी क्योंकि ये उनकी, हमारी सोच पर जबरदस्ती है, हमारी इच्छा नहीं। रहीम इसे यूँ कहते है,-
काजर की कोठरी में, कैसो हू सयानो जाए 
एक लीक काजर की, लागिहै  पे लागि है।

यदि आप अपनी सोहबत को लेकर सजग है, ऐसी स्थितियाँ आपको बेचैन करती है जहाँ आपको मन मारकर ऐसे लोगों के साथ व्यवहार करना पड़ता है जिनकी ' वेव-लेन्थ' आपसे नहीं मिलती और आप अपने स्तर पर उन्हें बदलने के लिए थोड़े भी प्रयासरत है तो समझ लीजिए आपका काम हो गया। ये प्रकृति का 'आकर्षण-नियम' है कि सामान गुणों वाली चीजें एक-दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करती है। इस तरह, धीरे-धीरे स्वतः ही स्थितियाँ बदलने लगेंगी और आप अपने आपको सही लोगों के बीच पाएँगे।

आप जब ऐसे लोगों के बीच होंगे तो उनका जीवन आपको प्रेरित ही नहीं करेगा, दुविधा की स्थिति में आपको रास्ता भी दिखाएगा। ऐसे लोग आपको सही अर्थों में समझेंगे तो सही ही, हर अच्छे प्रयास पर उनकी हौसला अफजाई ईधन का काम करेगी। जिस तरह काजल की कोठरी में कालिख से नहीं बचा जा सकता वैसे ही पारस के पास रखे लोहे को सोने बनने से नहीं रोका जा सकता। अच्छी सोहबत से आपके व्यक्तित्व में कई सुंदर गुण स्वतः ही चले आएँगे जिनके बारे में न तो आपने कभी सोचा था और न ही कभी कोई प्रयास किया था। अपनी सोहबत को सम्भालिए आपकी सीरत स्वतः ही निखरती चली जाएगी।


(जैसा की नवज्योति में रविवार, 2 जून को प्रकाशित)
आपका 
राहुल ..........  

4 comments:

  1. Well done!
    Superb, as usual.
    sp. 3rd para.
    Keep it up dear!
    GOD BLESS U!

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  2. Thank you very much, specially for giving your full attention.
    I also realised that whenever words are just coming their own way they serve.
    Keep reading dear.
    Take care.




















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  3. Thanks again or a good write up, they say a man is known by the company he keeps, a short lived company with you is getting me enlighten from time to time on different subjects.
    With best wishes
    Dr parmanand

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  4. Thank you uncle.
    When experience agrees with intution, it really inspires.
    Regards,
    rahul......

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