Friday 18 January 2013

आपका राजसिक योग



दशरथ मांजी का जन्म 1934 में एक गरीब मजदूर परिवार में हुआ था। यह बात है गया, बिहार के पास पहाड़ियों के बीच बसे गाँव गेलोर की। शादी के कुछ वर्षों बाद एक दिन उसकी पत्नी बीमार पड़ गयी। गाँव से अस्पताल की दूरी 70 कि.मी. थी क्योंकि पहाड़ियों से घूमकर जाना पड़ता था। समय पर अस्पताल नहीं पहुँच पाने के कारण वह अपनी पत्नी को नहीं बचा पाया। उसे बहुत बुरा लगा। उसे लगा कि काश! ये पहाड़ियाँ बीच में न होती तो मैं अपनी पत्नी को बचा लेता। क्या मालुम उसे क्या सूझी, उसने पहाड़ काटना शुरू किया ये बात है 1960 की। लगातार 22 वर्षों तक वो अपनी इस धुन में लगा रहा औए 1982 को अरती और वजीरगंज के बीच की दूरी 75 कि.मी. से घटकर 1 कि.मी. रह गयी। ये क्या था, खालिस जुनून।

यह घटना बताती है कि इन्सानी मंसूबों के सामने कुछ भी नामुमकिन नहीं बशर्ते हममें उन्हें पूरा करने का जुनून हो।

अन्तरात्मा की आवाज़ पर अखण्ड विश्वास हो, मन में दृढ़ संकल्प हो तो काम जुनून में तब्दील हो जाता है और फिर उसके नहीं हो पाने की कोई गुंजाइश नहीं बचती। संक्षेप में, पागलपन की हद तक चाहना ही जुनून है। जब आपका अपने ध्येय के प्रति प्रेम आपके जेहन से समय और भूख के भाव को मिटा दे। जब आपको कोई किन्तु-परन्तु सुनाई न दे। जब ऐसा हो जाए तो समझ लीजिए आपको धुन लग गयी, लगन लग गयी और लगन से तो मीरा को गिरधर नागर मिल गए तो बाकी क्या बचा? सच पूछिए तो, जुनून कोई गुण नहीं, जीने का एक तरीका है जहां कोई अफ़सोस नहीं, कोई चिन्ता नहीं, कोई डर नहीं, कोई प्रतिस्पर्धा नहीं; है तो सिर्फ सन्तोष और आनन्द।

आप कहेंगे, फिर तो अपराधी और आतंकवादी सबसे पहले जुनूनी हुए? अपराध और आतंकवाद के इस बुरे दौर में आपका ऐसा सोचना गलत भी नहीं। ये बात भी सही है कि वे जो कुछ भी कर रहे होते है उस पर उन्हें पूरा विश्वास होता है और खैर संकल्प तो उनका दृढ़ होता ही है लेकिन एक बात जो आप भूल रहे है, वह है 'अन्तरात्मा की आवाज़'। किसी को नुकसान पहुँचाना किसी के अन्तरात्मा की आवाज़ नहीं हो सकती। ये विचार अंतर्मन की नहीं बुद्धि की पैदावार होते है। व्यक्ति अपराधी या आतंकवादी बनता है ऐसी संगत के कारण जो उसकी बुद्धि को इतना विकृत कर देती है कि अंततः उसकी विकृत बुद्धि उसके अंतर्मन को हर लेती है। क्या करें इसका फैसला अंतर्मन करे और कैसे करें, ये बुद्धि बताए, ये ही उत्तम है।

शास्त्र भी कहते है प्रकृति त्रिगुणात्मक है यानि सृष्टि की रचना तीन गुणों के विभिन्न संयोगों से हुई है; सत, रज और तम। भौतिकी ने जिन्हें न्यूट्रोन, प्रोटोन और इलेक्ट्रान का नाम दिया है। जिस व्यक्ति के जीवन में सात्विक गुणों की प्रबलता होती है उसका जीवन साधुओं जैसा होता है, जिसमें तामसिक गुणों की प्रबलता होती है उसका जीवन निष्क्रिय यानी आलसी, व्यसनी या व्यभिचारियों जैसा होता है लेकिन जिसमें राजसिक गुणों की प्रबलता होती है उसका जीवन राजाओं जैसा होता है। 'राजा' शब्द ही एक छवि गढ़ता है, ऐसे व्यक्ति की जो अपने दिल की सुनने एवम पूरे विश्वास-संकल्प के साथ आगे बढ़ने के लिए मानसिक रूप से स्वतन्त्र हो। जो अपना जीवन पूरे जुनून के साथ जिएँ। एक गृहस्थ के लिए यही रास्ता उपयुक्त है। यदि आपको अपना राजसिक योग  सफल करना है तो जुनून धारण करना होगा।


(रविवार, 13 जनवरी को नवज्योति में प्रकाशित)
आपका,
राहुल ..............        

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