Thursday 1 March 2018

एक मोहब्बत भरा दिल







एक ताजमहल और बनने को है, और इस बार इसे बनाने वाले हैं 81 वर्षीय रिटायर्ड पोस्टमास्टर साहब श्री फैजुल हसन कादरी। चौंक गए ना आप, पर ऐसा ही है। संयोग तो नहीं होगा कि उनकी महरूम बेगम का नाम भी ताजमुली ही था। खुदा को शायद मालूम रहा होगा कि ये मोहब्बत किसी दिन यूँ परवान चढ़ेगी इसीलिए उनका नाम कुरान के पन्ने पर उस दिन ताजमुली खुला होगा ! 
बेशक ये बन रहा ताजमहल बहुत छोटा है लेकिन इसकी वजह खालिस मोहब्बत है किसी शहंशाह की नुमाईश नहीं। आप ही सोचिए, एक बुजुर्ग का दिल कितना मजबूर रहा होगा जो छोटा ही सही अपनी बीवी की याद में ताजमहल बनाने निकल पड़ा। 
इस दरियादिल इन्सान से बुलन्दशहर का शायद ही कोई बन्दा होगा जो वाकिफ नहीं होगा!

ढाँचा बनने को आया था, एक दिन सुबह की बात है, क्या देखते हैं! स्कूल के हेडमास्टर साहब कुछ परिचितों के साथ दरवाजे पर खड़े हैं। समझ नहीं आया, क्या बात होगी। उन्हें पूरे आदर से अन्दर लाए, बिठाया और पूछने लगे। पर वे सब हिचकिचा रहे थे, 'आप ही कहिए, आप ही कहिए।' आखिर उनमें से एक जो कादरी साहब से थोड़ा ज्यादा सहज था कहने लगा, वो बात यूँ है कादरी साहब कि हम लोग एक लड़कियों की सरकारी स्कूल बनाने में जुटे हैं। बस अब पूरी होने को है कि पैसों की किल्लत आन पड़ी है। बड़ी मुश्किल से इलाके में एक लड़कियों की स्कूल की रजा मिली थी, कहीं ऐसा न हो सारी मेहनत फालतू हो जाए। कई 'बड़े लोगों' को टटोल आए, अब आखिर हार कर आपका दरवाजा खटखटाया है। 

कादरी साहब एक मिनट के लिए तो उलझन में पड़ गए, लेकिन मोहब्बत वाले दिमाग से नहीं दिल से फैसले लेते हैं इसलिए उन्हें ज्यादा वक्त भी नहीं लगता। उन्होंने कहा, मुझसे हो सकेगा जितनी मदद जरूर करूँगा।
और उन्होंने स्कूल के लिए अपनी जमीन का आखिरी टुकड़ा तक बेच दिया। लेकिन 'ताजमहल' रुक चुका था। कोई छह-सात लाख ही तो और चाहिए थे! स्कूल पूरा हुआ तो कादरी साहब फिर जुट गए। सहारा तो अब पेंशन का ही था इसलिए एक-एक पाई जोड़ने लगे। कुछ वक्त बीता और काम एक बार फिर शुरू हुआ। 
अभी चाल ही ठीक से नहीं बनी थी कि उनकी भतीजी की जिन्दगी में ऐसा कुछ हुआ कि कादरी साहब फिर से अपने आप को नहीं रोक पाए। करीब लाख रुपये इकट्ठा हुए थे, वे उन्होंने उसे दे दिए। 

सच्ची प्रेरक कहानियों की तलाश में अक्सर मेरी मुठभेड़ ऐसी ही अद्भुत ख़बरों से हो जाती है। इंशाअल्लाह, ये ताजमहल तो बन कर रहेगा लेकिन इस कहानी ने जो समझने का मौका दिया वो ये कि आखिर एक मोहब्बत भरा दिल होता क्या है?
और जो मैं समझा वो ये कि जो जीवन की हर खूबसूरती पर आ जाए, जो अपने किसी को तकलीफ में न देख पाए, जो दुनिया को और खूबसूरत बनाने की तड़प रखे, जो किसी मुश्किल के सामने लाचार न हो; वही सचमुच एक मोहब्बत भरा दिल है। 
वैलेंटाइन-डे और बसन्त से सही ऐसी किसी कहानी का मौसम क्या होगा लेकिन इन्हें कहना और भी जरुरी हो जाता है जब हम प्यार और मोहब्बत के नाम पर एक-दूसरे से लड़ने में यों लगे हों; फिर चाहे वो हमारा प्यार अपने धर्म, अपने समुदाय से हो या अपनी विचारधारा से हो। 

दैनिक नवज्योति स्तम्भ-'जो मैं समझा' 
(रविवार, 11 फरवरी 2018 के लिए)

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