Saturday 5 September 2015

मिसिंग फेक्टर








सेन्ट्रल पार्क में बैठे एक दिन सुबह बातों ही बातों में शब्दों और अर्थों पर चर्चा चल पड़ी। एक दोस्त अलग-अलग शब्दों के शाब्दिक अर्थ बता रहे थे जैसे स्वार्थी वो जो स्व के अर्थ को जानता हो यानि अपने आपको जानता हो, षड्यंत्रकारी वो जिसे षड् यंत्रो का ज्ञान हो यानि जीवन की छह कलाओं में दक्ष हो। शब्दों को यूँ समझने में बड़ा मजा रहा था और आश्चर्य भी हो रहा था कि बेचारे हैं क्या और काम क्या आते हैं। काफी समय तक ये अर्थ मन में बने रहे कि और तब अचानक लगा कि चाहे कुछ भी हो ये सब बुद्धि-विलास के अलावा कुछ नहीं। क्या जो अपने को जानने की राह पर हो उसे हम स्वार्थी कह सकते है या जो जीवन को साध रहा हो उसे षड्यंत्रकारी? और तब अहसास हुआ कि भाव ही हैं जो शब्दों को वजूद देते हैं। बिना भावों के शब्द बारहखड़ी के अलावा कुछ नहीं। 
थोड़ी ही देर हुई कि ये अहसास विचारों और जिन्दगी को लेकर मेरी सोच को पुख्ता करते नजर आए।  


शब्दों से ही तो विचार बनते हैं और विचार ही हमारा जीवन बनाते हैं। बच्चे थे जब इसी बात को यूँ सुनते थे कि बेटा! ध्यान रखा करो, जाने कब सरस्वती जीभ पर बैठी हो। दोनों का मतलब एक ही है और ये बात है भी सोलह आने सच, पर यही कारण था कि धीरे-धीरे ये भी दूसरी अच्छी बातों की तरह साबित हो रही थी। ऐसी बात जो होनी तो चाहिए पर हो नहीं पाती। यही वजह थी कि इतने आसान तरीके के मालूम होते हुए भी हमें मनचाही जिन्दगी हासिल नहीं। 
यही था वो मिसिंग फेक्टर।  


बात भावों की ही थी; हमें अपने भाव, अपनी फ्रीक्वेंसी बदलनी होगी। ये विचार जिनसे हम अपने जीवन को सुन्दर बनाना चाहते हैं ये हमारे अन्दर से नहीं आते, इनमें हमारी आस्था नहीं होती। जैसेहम मानते नहीं कि हमारे समृद्ध होने पर विश्वास भर कर लेने से वैसी ही स्थितियाँ बनने लगेंगी और हम समृद्ध होंगे लेकिन चूँकि समृद्ध होने का लालच होता है इसलिए इसे जैसे-तैसे मानने की कोशिश करने लगते हैं यानि विचारों से भाव नदारद। थोड़ी स्थितियाँ विपरीत हुई नहीं कि वही ढाक के तीन पात; हम वैसे ही सोचने लगते हैं जैसे आज तक सोचते आये हैं इसीलिए जिन्दगी भी जैसी है वैसी ही बनी रहती है और विचारों से जीवन बनने की बात भी महज एक और अच्छी बात। 


जो मैं समझा, वो ये कि कुछ करना है तो सिर्फ अपने भावों पर काम करना होगा, इन्हें ट्यून करना होगा। सुन्दर भाव होंगे तो अच्छे विचार अन्दर से आयेंगे, वो जिनमें हमारी आस्था होगी और ये आस्था उन विचारों को हकीकत में बदल देगी। 


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