Monday 13 April 2015

देखो,​ ​मैं खिल रही हूँ।






खान मार्केट दिल्ली में वो बस स्टॉप पर खड़ी थी कि अचानक किसी ने धक्का दिया और मुँह पर हाथ रख नीचे गिरा दिया। वो गुड्डू ही था, एक ग्लास में एसिड भर कर लाया था। उसने वो एसिड पहले लक्ष्मी के चेहरे और फिर हाथों पर डाल दिया और वहाँ से भाग छूटा। लक्ष्मी कहती है, उसे लग रहा था जैसे वो जल रही थी, कुछ ही मिनटों में उसके मुँह और हाथ का माँस लटकने ​लगा।​​​ ​वो सड़क पर पड़ी तड़प रही थी लेकिन ​हमेशा की तरह ​कोई ​उसे ​बचाने नहीं आया। ये बात है 2005 की जब वो मात्र 15 साल की थी, बहुत सुन्दर​-मासूम ​ और उसने 32 साल के गुड्डू का ​प्रेम-निवेदन​ ठुकरा दिया था। 

कुछ ही दिनों पहले तो उसने 'इंडियास गॉट टेलेंट' में भाग लिया था लेकिन उस दिन के बाद वो कई सालों तक अपने घर से बाहर नहीं निकली। उसका तन नहीं मन भी बिखर चूका था लेकिन ​जिस तरह ​उसके पिता ने उसे सम्भाला​ और​ हिम्मत बंधाई​, शायद कम ही पिता ऐसा कर पाते होंगे। कुछ ही दिनों में उसे मानसिक रूप से इतना तैयार कर लिया था​ कि वो अपनी ही तरह पीड़ित लड़की रूपा के साथ सुप्रीम कोर्ट में एसिड ​की खुली बिक्री​ के विरोध में जनहित याचिका दायर करने को तैयार हो गयी। ​पिता आर्थिक रूप से बहुत कमजोर थे, न​ होते तो क्यूँ इतनी छोटी उम्र में उसे किसी किताबों की दुकान पर काम करना पड़ता और क्यूँ वो उस दिन बस स्टॉप पर खड़े उस दरिंदे को ​मिलती। इसके बावजूद उन्होंने ​गुड्डू और हमले में उसकी साथिन राखी को 10 और 7 साल की सजा दिलवायी और अपनी प्यारी बिटिया लक्ष्मी की एक के बाद एक सात सर्जरी करवाई कि वो सर उठा कर जी सके। ये सब किया उन्होंने अपने दम पर, न कोई सरकारी मदद न कोई सहायता। 

लेकिन ​इन सब के बीच वे भी अन्दर के अन्दर कहीं टूट रहे थे और आखिर 2012 में दिल का ऐसा दौरा पड़ा कि वे बच नहीं पाए। अब घर में कोई कमाने वाला नहीं बचा ​था। विसंगति यह कि हम जिस समाज में रहते है वहाँ व्यक्ति की सूरत देखी जाती ​है सीरत नहीं। लक्ष्मी को कोई नौकरी देने को तैयार नहीं था। ठीक भी था,​ हर इन्सान को अपनी नियति जीनी होती है ​शायद ​लक्ष्मी को भी अपनी जीनी थी। कुछ ही दिनों बाद एक पत्रकार उपनिता उससे मिलने आयी। उसने लक्ष्मी को खबर बना दिया, साथ ही अलोक दीक्षित से मिलवाया जो इन्हीं मुद्दों पर काम कर रहे थे। बाद में मालूम चला वे तो खुद लक्ष्मी को पिछले चार सालों से ढूँढ रहे थे। उन्होंने लक्ष्मी को अपनी संस्था 'स्टॉप एसिड अटैक' के कैंपेन कोर्डिनेटर का प्रस्ताव रखा। इसी दौरान लक्ष्मी सुप्रीम कोर्ट में केस जीत गई। 

आज एसिड की खुली बिक्री पर पाबन्दी है और वे एसिड अटैक की खिलाफत का चेहरा। ​स्टॉप एसिड अटैक कैंपेन के तहत आलोक और लक्ष्मी ने दिल्ली में 'छाँव' नाम से एक पुनर्वास केन्द्र शुरू किया है। यहाँ एसिड अटैक पीड़ित लड़कियों की कॉउंसलिंग की जाती है, मानसिक रूप से मजबूत बनाया जाता है और जरुरत हो तो उन्हें ठीक होने तक वहाँ रखा भी जाता है। वे कहतीं है हम विक्टिम नहीं फाइटर्स हैं। आज वे हर ऐसी लड़की तक हर सम्भव तरीके से पहुँचने की कोशिश कर रही है, उन्हें टूटने से बचा रहीं हैं। वे उन सब लड़कियों की आवाज बन चुकी हैं जो चीख-चीख कर कह रहीं है कि कोई एक दरिंदा हमसे हमारी जिन्दगी नहीं छिन सकता। ​​ 

साथ काम करते-करते आलोक लक्ष्मी की हिम्मत और सुन्दर मन कायल ​होने लगे ​तो लक्ष्मी को जिन्दगी में पहली बार लग ​रहा था ​ कि कोई उसके दर्द को समझ रहा है, इसी बात ने उन्हें दोस्त से जीवन-साथी बनने पर मजबूर कर दिया। आजकल वे टी.वी. पर 'उड़ान' सीरियल कर रही है, अपने उसी चेहरे के साथ, बड़े ही गर्व से। मार्च, 14 में मिशेल ओबामा के हाथों बहादुरी का पुरस्कार मिला। सभी पुरस्कृत महिलाओं की तरफ से उन्हें धन्यवाद के दो शब्द कहने बुलाया, उन्होंने कुछ कहने की बजाए अपनी लिखी कविता सुनाई जिस पर पूरे हॉल को खड़े होकर तालियाँ बजानी पड़ी, -

चेहरा जो तुमने जला दिया,
वो चेहरा जिससे मुझे प्रेम था,
पर देखो,
मैं खिल रही हूँ।​ 

राहुल हेमराज ​........

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