Friday 5 April 2013

साथ चल कर देखें



जीवन एक उत्सव है तो दुनिया एक सैर और हम सब यहाँ इकट्ठा हुए है जिन्दगी नाम की पिकनिक को मनाने। पिकनिक, जहाँ हमख्याल दोस्त कुछ समय के लिए ही सही, साथ मिलकर जिन्दगी का आनन्द उठाते है। आप भी कई बार पिकनिक गए होंगे। आपने नहीं देखा, वहाँ आपकी कुछ बातें दूसरे मान लेते है तो कुछ दूसरों की बातें आपको माननी पड़ती है। हमारा जीवन भी कुछ ऐसा ही है क्योंकि उत्सव मनाने का यही सही तरीका है और दुनिया शब्द का तो अर्थ ही 'दो' से है।

आप कहेंगे एक तरफ तो, व्यक्ति ईश्वर की स्वतंत्र अभिव्यक्ति है अतः वह अपना जीवन कैसे जिएगा यह सिर्फ और सिर्फ वह ही तय करेगा। व्यक्ति के जीवन की दिशा वह हो जिस ओर से अन्तर्मन पुकारे। दूसरी तरफ आज मैं जिन्दगी का लुत्फ़ उठाने के लिए एक दूसरे की बात मानने की वकालात कर रहा हूँ। एक दुसरे का साथ निभाने की बात कर रहा हूँ।

देखिए, जीवन की कुछ बातें होती है सैद्वान्तिक जिनका सम्बन्ध व्यक्ति की छोटी-मोटी आदतों से होता है। निस्संदेह व्यक्ति को किसी के लिए भी अपने जीवन मूल्यों से समझोता नहीं करना चाहिए। श्रेष्ठ जीवन वही है जिसका आधार मूल्य हों। साथ ही आपको यह छूट अपने प्रियजनों और परिजनों को भी देनी होगी, उनकी अद्वितीयता को स्वीकारना होगा और यह तब ही संभव होगा जब हम अपनी छोटी-मोती आदतों को बदलने को तैयार हों। अपने आराम को छोड़ने के लिए तत्पर हों। शायद इसीलिए रहन के साथ सहन जुड़ा होता है। साथ रहना है तो थोडा सहना भी होगा।

इस तरह जब आप दूसरों की बात समझने को तैयार होंगे, उनकी बात उन्ही की भाषा में सुनने को तैयार होंगे तो निश्चित ही वे अपने आपको आपके साथ सहज महसूस करेंगे। वे आपकी बात खुले मन से सुनेगें  और तब ही आप अपनों के जीवन में किसी सुन्दर बदलाव का कारण बन पाएँगे। ये आपके जीवन को भी स्वतः ही सुंदर बना देगा क्योंकि प्रत्युत्तर में आप भी तो वैसा ही व्यवहार पाएँगे।

क्या मालूम हम सबकी यह प्रवृति है कि कोई माँगे तो दूँ , शायद यह भी अहं का ही एक राग है। हम इंतज़ार करते है कि कोई हमें कहे तो हम उसके लिए कुछ करें। मैं सोचता हूँ, क्यों नहीं हम अपना जीवन सुखद बनाने के लिए ऐसा सोच कर देखें कि वे मेरी कौनसी आदतें है जो मेरे अपने मुझमें बदलना चाहेंगे। आपको भी मालूम है और मुझे भी, कि जानते तो हम सब है पर उन्हें सतह पर नहीं आने देना चाहते क्योंकि इससे हमारे आराम में खलल पड़ता है, बेचारे अहं को चोट पहुँचती है। जिन्दगी को बुहारना है तो ये कष्ट को पाना ही पड़ेगा। अपनों के लिए अपने को थोडा सा बदलकर देखिए, आप अंदाजा ही नहीं  सकते कि एवज में आपको कितना मिल सकता है। निदा फाज़ली ठीक ही फरमाते है.............

मुम्किन है सफ़र हो आसाँ,
             अब साथ भी चल कर देखें 
कुछ तुम भी बदल कर देखो 
             कुछ हम भी बदल कर देखें
 

(नवज्योति में रविवार, 31मार्च को प्रकाशित)
आपका 
राहुल……  

4 comments:

  1. Bahut sunder. I am becoming fan of yours.

    Soft words soften the hearts that are harder than rock
    Hard words harden the hearts that are softer than silk.

    MRJ
    (A beautiful response from Dr.M.R.Jain)

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    1. Sorry for such a delay response.
      These lines are really so beautiful, a true wisdom.

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  3. Thanks once again Anjali.
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