Friday 4 May 2012

हमारा सही परिचय




मनुष्य को परमात्मा की सुंदरतम भेंट है उसका मस्तिष्क जिसे बोलचाल की भाषा में दिमाग भी कहते है. मस्तिष्क के सही उपयोग से जन्म लेती है बुद्धि ; बुद्धि यानि अच्छे और बुरे में भेद करने की समझ इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति वही है जो अपने दिमाग का सही उपयोग करें. हम सब यहाँ अपने अपने तरीके से संसार को अनुभव करने और अपने आपको व्यक्त करने आते है अतः स्वस्थ मस्तिष्क के बिना तो हमारा जन्म लेना भी सार्थक नहीं. कुल मिलाकर एक अच्छे जीवन की कल्पना एक स्वस्थ मस्तिष्क के बिना नहीं की जा सकती.


हर क्षण उपलब्ध विकल्पों में से बेहतर का चुनाव ही हमारे जीवन को सुंदर बनता है. इस क्षण हम क्या चुनते है यह ही निश्चित करेगा की हमारे आने वाला क्षण कैसा होगा. बेहतर विकल्प का चुनाव हम बुद्धि के सहारे करते है जो हमें सफल बनाती है. समस्या तो तब पैदा होती है जब हम इसी बुद्धि के सहारे हासिल की गई सफलताओं को अपना परिचय समझने लगते है. इस तरह हमारा मस्तिष्क अनियंत्रित हो पद, पैसा और ज्ञान के ईंट -गारे से हमारी एक छवि गढ़ लेता है और हम अपनी ही बनायीं छवि में कैद होकर रह जाते है. हम जीवन भर अपने -आपको भूल, आत्मिक आनंद को छोड़ अपनी ही बनायीं इस झूठी छवि के बचाव में जुटे रहते है. आप ही बताइए, एक ख़ाली जेल के जेलर की हालत एक कैदी से कम बदतर होती है ? स्वयं का झूठा परिचय ही अहम् है. इस तरह जब भी हमें लगता है की कोई व्यक्ति, घटना या स्थिति हमारी छवि को यानि हमारे अहम् को चोट पहुंचा रही है हम विचलित हो उठते है और हमारी खुशियाँ पराधीन हो जाती है. इपिकटीट्स ने ठीक ही कहा है, ' हमारी परेशानियों का सबब घटनाएँ नहीं अपितु घटनाओं के बारे में हमारी सोच है.'

मस्तिष्क की क्षमताओं और संभावनाओं का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की वैज्ञानिकों के अनुसार आइन्स्टाइन भी अपने मस्तिष्क का 5% ही उपयोग कर पायें. जितना शक्तिशाली साधन होगा उतनी ही सावधानी बरतनी होगी चाहे वह परमाणु - उर्जा हो या हमारा मस्तिष्क. आंकड़े कहते है की एक सामान्य व्यक्ति के मस्तिष्क में औसतन 60,000 विचार आते है और इनमे से अधिकांशतः वे ही होते है जो कल भी आये थे और परसों भी. यहाँ हमें ठिठक कर यह सोचना होगा की हम मस्तिष्क का उपयोग कर रहे है या मस्तिष्क हमारा. नियंत्रित मस्तिष्क और सदबुद्धि व्यक्ति को राम बना सकती है और विकृत मस्तिष्क और अहंकारी बुद्धि रावण.


हम सभी ईश्वर की स्वतंत्र भौतिक अभिव्यक्ति है. मूलतः एक होते हुए भी अनुभूति और अभिव्यक्ति के स्तर पर भिन्न है और हमारी इसी निजता को सहेजता है हमारा मस्तिष्क. अब जहाँ निजता होगी वहाँ अहम् भी होगा इसलिए यह भी अनुचित होगा की हमारा अहम् शून्य हो जाएँ. हर व्यक्ति की अपनी नज़र है और अपना संसार. हर व्यक्ति की उचित और अनुचित की अपनी - अपनी परिभाषा है इसलिए अहम् उतना भर जरुरी भी है की हम उपलब्ध जानकारियों का अपने परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण कर सकें.


हम अपने पद, पैसे और ज्ञान को भूलें नहीं, इनका भरपूर आनंद लें आख़िरकार इन्हें हमने हासिल किया है लेकिन याद रखें यह ' हम ' नहीं है. हम इसका आनंद लेने वाले है. मस्तिष्क का हम उपयोग करें मस्तिष्क हमारा नहीं. अहम् को ' स्व की पहचान ' की सीमाओं में रखें उसे अहंकार न बनने दें. जीवन आनद का यही रहस्य है.



( दैनिक नवज्योति में रविवार, 29 अप्रैल को शीर्षक 'स्वयं के झूठे परिचय से दुरी ही अच्छी ' के साथ प्रकाशित ) 

आपका 
राहुल.... 





2 comments:

  1. very impressive...some more real life examples would be helpful for readers ....

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  2. Thanks, Newspaper columns have some boundations but I will definately keep in mind.

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