Saturday 17 December 2011

Go Wholeheartedly




जीवन की कोई राह ऐसी नहीं होती जिसमें मुश्किलें नहीं होती फिर भी मंजिल को पाने के लिए किसी एक राह पर तो निकलना ही होता है. हम इस जीवन में क्या करना चाहते है यह बहुत जरुरी है जीवन की राह को चुनने के लिए लेकिन हम जो कुछ भी करना चाहते है उसकी सफलता के लिए इतना भर काफी नहीं है. हमें अपनी पसंद से, अपने आप से वचनबद्ध होना होगा. हमारी वचनबद्धता ही हमें रास्ते की मुश्किलों का सामना करने की शक्ति देगी.

जब भी हम किसी काम को पसंद तो करते है लेकिन उससे वचनबद्ध नहीं होते तो जैसे ही मुश्किलें आने लगती है हम अपने चुनाव पर ही संदेह करने लगते है. हम रास्ते की रूकावटो को अपनी सुविधा के लिए अपनी असफलता मानने लगते है और फिर या तो आधे-अधूरे मन से आगे बढ़ते है या रास्ता ही बदल लेते है और इन सब का दोष भाग्य या परिस्थितियों पर मढ़ देते है.

वास्तव में ये मुश्किलें हमें जीवन के वो पाठ पढ़ाने आती है जिन्हें सीखे बिना जीवन में वो नहीं पाया जा सकता जो हम चाहते है. यदि किसी काम के परिणाम वैसे नहीं आते जैसे हमने सोचे थे और ऐसा एक या दो से ज्यादा बार होता है तो हमें अपनी वचनबद्धता को टटोलना चाहिए, अपने इरादों की गंभीरता को जांचना चाहिए; हो सकता है कुछ कमी राह गयी हो. कमी याने हमारे काम की आर्कित्रकचरल ड्राइंग उतनी स्पष्ट नहीं हो जितनी सफलता की इमारत के लिए जरुरी हो.
परिणामों के आधार पर अपनी वचनबद्धता को जांचने में हमें यह ख़ास तौर पर ध्यान देना होगा की कंही अहम् बीच में न आ जाए. परिणामों को स्वीकार करना अहम् को कभी मंजूर नहीं हो सकता क्योंकि ऐसा करने से तो उसका वजूद ही खतरे में पड जाएगा इसलिए हमारा अहम् मनचाहे परिणामों के नहीं मिलने का दोष भाग्य और परिस्थितियों पर मढ़ने के लिए भांति-भांति के तर्क देने लगता है और हम कभी सही कारणों को जान ही नहीं पाते.

इस सारी बात का कतई यह मतलब नहीं है की यदि हमने कोई निर्णय क्षणिक भावावेश में ले लिया था या वह हमारा स्व-भाव नहीं है या समय, काल और परिस्थितियों के कारण अप्रासंगिक हो चुका है तो भी 'प्रतिज्ञा' के नाम पर उसे ढ़ोते रहें और जीवन भर इस अफ़सोस के साथ जियें की मैंने ऐसा किया ही क्यूँ?
ऐसी स्थिति में हमें पूरा-पूरा अधिकार है की हम अपनी राह बदल लें. ऐसा कर हम न केवल अपनी निजता का सम्मान कर रहे होंगे वरन उन लोगों के जीवन को भी सुन्दर और बेहतर राहों की तरफ प्रेरित कर रहे होंगे जो हमारे निर्णय से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित है और इसलिए एक क्षण के लिए भी अपने मन में ग्लानि या अपराध-बोध को जगह देने की जरुरत नहीं है.

हमारी पहली वचनबद्धता अपने आप से है फिर किसी और से, यदि हम अपने आप से वचनबद्ध नहीं हो सकते तो कभी किसी और से भी नहीं हो सकते. किसी ने ठीक ही कहा है.  'You cannot have a half hearted intentions and a whole hearted results.' 
 
हम जो भो करें पूरे दिल से करें, बढ़ते जाएँ, मंजिल हमारा इन्तजार कर रही होगी.
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, 
आपका,
राहुल......





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