Friday, 5 July 2013

समय-समय की बात



आज आप से बात करते हुए मुझे अपना बचपन याद आ रहा है। याद आ रहा है वह दिन जब मेरे पिता मुझे साईकिल  चलाना सीखा रहे थे। वे बराबर मेरे साथ चल रहे थे। सामने देखना, हैण्डल सीधा पकड़ना और साथ में पैंडल मारना, तीनों में से कोई एक मुझसे छूट जाता और उन्हें संभालना पड़ता। कोई आधे घन्टे तक ये सब चलता रहा। अब मैं साईकिल को सम्भाल पा रहा था और वे मुझसे दूरी बनाने लगे। कुछ मिनटों बाद जब मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वे ख़ुशी से मुस्कराते हुए हाथ हिला रहे थे।

ऐसा ही हमारे साथ स्कूल में भी होता था, हम अगली कक्षा में पहुँचते और हमारे शिक्षक बदल जाते, कितना बुरा लगता था। थोड़े दिन बीतते और उन नये शिक्षकों से भी रिश्ते उतने ही प्रगाढ़ हो जाते। जैसे-जैसे हम बड़ी कक्षाओं में आते गए,ये बात समझ आने लगी कि वे ही शिक्षक हमें पढ़ा पाएँ, ये सम्भव ही नहीं था लेकिन उनके बिना यहाँ तक पहुँच पाना भी सम्भव नहीं था।

आगे बढ़ने के लिए पीछे छोड़ना पड़ता है। हम सब इस कटु सत्य को जानते है, फिर क्यों हम अपनी पुरानी मान्यताओं से इतना जकड़े हुए हैं? उन्हें जकड़े है और अन्ततः वे हमें जकड़े है। क्यों नहीं हम उन्हें समय, काल, देश और परिस्थिति की कसौटी पर कसना चाहते? क्यों हमें अपनी अप्रासंगिक हो चुकी मान्यताओं, रीती-रिवाजों और परम्पराओं को अलविदा कहने से इतना परहेज है?

अपने ही अवचेतन में झाँक कर देखा तो पाया कि हमने अपने माता-पिता और बड़े-बूढों को इन्हें बड़ी श्रद्धा से निभाते देखा है। ये मान्यताएँ उनके जीवन का आधार थीं। जब इनको जाँचने की बात आती है या इन पर कोई सवाल उठता है तो हमें लगता है हम उनकी अवहेलना कर रहे है, उनका निरादर कर रहे है।

एक मिनट के लिए ठिठक कर हमें सोचना चाहिए कि उन्होंने जिन मान्यताओं को अपने जीवन का आधार बनाया, उसकी क्या वजह रही होगी? उन मान्यताओं से लगाव या जीवन का सुख और खुशियाँ। प्रश्न ही अपना जवाब स्वयं दे रहा है साथ ही इस ओर भी ध्यान दिला रहा है कि पुराने का विरोध महज विरोध करने के लिए न हो, उसकी वजह व्यक्ति की वृहत्तर सुख और खुशियाँ हो। ऐसा कोई भी काम जो हमारे जीवन को अधिक सुंदर बनाए, हमारे बड़ों की इच्छाओं को पूरा ही करेगा।

आपका ध्यान एक ताज़ा घटना की तरफ ले जाना चाहता हूँ। आपने टेलीग्राम सेवाओं के 15 जुलाई से बन्द होने का समाचार तो जरुर पढ़ा होगा। इस तरह का ख़बरें हमारे मन में एक टीस जरुर पैदा करती है, सच में ये अतीत के प्रति हमारी आदरांजलि है लेकिन इंटरनेट और मोबाईल वर्तमान की हकीकत। हमें आगे तो बढ़ना ही होगा। यही हमारे जीवन को अधिक सुन्दर बनाएगा।

मैं ऐसी किसी मान्यता, परम्परा या रीती-रिवाज़ का उल्लेख तो नहीं करना चाहता क्योंकि निजी श्रद्धा का विषय है लेकिन हाँ, इतना जरुर कहना चाहता हूँ कि प्रत्येक व्यक्ति को समय-समय पर निजी स्तर पर इसका आकलन अवश्य करना चाहिए। ये जीवन की साफ़-सफाई है। जीवन में किसी भी बात से ज्यादा खुशियों को तरजीह मिलनी चाहिए।
महात्मा गाँधी कहते है, " मेरी प्रतिबद्धता सत्य से है, निर्वाह करने से नहीं।"


(जैसा की नवज्योति में रविवार, 30 जून को प्रकाशित)
आपका 
राहुल ........            

5 comments:

  1. Are you sure Mahatma Gandhi said this that he is committed only to the Truth and not to its observance or implementation???

    (mail from Shakuntala ji)

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  2. Good one. Thanks
    PROF. DR M. R. JAIN FICS, FAMS

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