हमारे बच्चों के भारी स्कूल बैगों की हमारी चिंता बिल्कुल जायज और प्रशंसनीय है। नन्ही जानें और इतना बोझ, ठीक से चल पाना मुश्किल। रोज-रोज की तरह-तरह की परीक्षाएँ और अनुशासन के नाम पर इतने कायदे-कानून। ख़ुशी की बात है कि इस दौर में अधिकांश स्कूलें और अभिभावक दोनों ही इस समस्या के प्रति जागरूक हो रहे हैं। मन किया इस विचार को थोडा और विस्तार दें, तो पाया हम सभी कितना अनावश्यक बोझ अपने पर लादे है और फ़ालतू ही हांफ रहे है। कोई अनावश्यक वस्तुओं का, कोई विचारों का तो कोई दायित्वों का।
जगह कितनी ही सुंदर क्यों न हो, यदि आप थके हुए है तो घूमने का मज़ा नहीं आ सकता, ठीक उसी तरह इस खुबसूरत जिन्दगी का आनन्द भी दिमाग़ में इन फ़ालतू बोझों के साथ नहीं आ सकता। आप ही बताइए, क्या एक यात्री नदी पार कर लेने के बाद चप्पू-पतवार साथ लिए चल पड़ता है? कभी नहीं, चाहे उसे अहसास हो कि इसके बिना यात्रा संभव ही नहीं थी। हमने भी कितनी ही ऐसी वस्तुएँ इकट्ठी कर रखी है जिसका अब कोई उपयोग नहीं। कुछ चीजें हमें बहुत पसंद है इसलिए, तो कुछ चीजें हमें नापसंद है लेकिन हमें सिखाया है कि बिना काम लिए किसी चीज को हटाना बरबादी है इसलिए। एक रास्ता है, इन चीजों को उन लोगों तक पहुँचाइए जिन्हें इनकी ज्यादा जरुरत है और शुरुआत कम पसंद की वस्तुओं से कीजिए।
मानता हूँ, ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं है, लेकिन आपका यह दृष्टिकोण आपकी मनोदशा बदल अनावश्यक विचारों और दायित्वों से पीछा छुड़ाने में मदद करेगा। आपका घर स्वतः ही सुंदर और दैनिक जीवन अधिक व्यवस्थित होने लगेगा।
ऐसे विचारों का बोझ जिनका सम्बन्ध भूतकाल से है। किसी के आहत करने की पीड़ा घर कर गई है या आपको किसी बात का अफ़सोस है। दोनों ही स्थितियों में, आपको यह बात समझनी और स्वीकारनी पड़ेगी कि जो बीत गया उसे बदला नहीं जा सकता। हाँ, यदि हम इस क्षण को पूरे विवेक के साथ जिएँ तो, स्थितियाँ कैसी भी हों, हम उनका उपयोग अपने हित में जरुर कर सकते हैं। टेक्नॉलोजी के इस युग में उन जानकारियों का बोझ भी कम नहीं जो अनजाने ही हमने अपने दिमाग में ठूंस ली है। आवश्यक जानकारियों का विवेकपूर्ण इस्तेमाल तो निश्चित ही व्यक्ति की मदद करता है लेकिन इंटरनेट और मीडिया द्वारा जानकारियों की बमबारी ने तो व्यक्ति के मस्तिष्क की उर्वरा का ही नाश कर दिया है।
इसी तरह वे औपचारिकताएँ, तारीखें और दायित्व जो हमने बिना सोचे-समझे या सभी ऐसा करते है इसलिए या किसी और ने हमारे लिए तय कर ली है। इन सब के चलते हमने अपने दैनिक जीवन को अत्यधिक व्यस्त, तनाव भरा और उबाऊ बना लिया है। यहाँ तक कि हम अपनी प्राथमिकताओं को लेकर भी पूरी तरह भ्रमित हो चुके है।
एक मिनट ठिठक कर सोचिये, क्या आपके लिए है और क्या नहीं फिर चाहे वे वस्तुएँ हों, विचार हों या दायित्व। अपने जीवन से फ़ालतू चीजों की सफाई कीजिए, आपके पास अपनी प्राथमिकताओं को ढंग से निभा पाने के लिए पर्याप्त समय और पर्याप्त ऊर्जा होगी । जिन्दगी को देखने और आनंद लेने का धीरज होगा। मैं तो यही कहूँगा, 'कम सामान, सफ़र आसान'।
(दैनिक नवज्योति में रविवार, 24 मार्च 2013 को प्रकाशित)
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