प्रिय दोस्तों,
नमस्ते,
26 जनवरी के अवकाश के कारण 27, रविवार को अख़बार नहीं छपे और मुझे मौका मिल गया कि मैं आपसे कुछ विशेष, कुछ अलग हट के साझा कर सकूँ।
रूस के प्रसिद्द कवि वसिली सुखोम्लीन्सकी की यह कविता मुझे एक पेंटिंग एक्जीबिशन में मिली। पोस्टकार्ड साइज में छपी यह रचना पेंटर बतौर अपने विजिटिंग कार्ड इतेमाल कर रहा था। मुझे इतनी भायी की कुछ दिनों बाद मैंने इसे फ्रेम करवा अपने स्टडी टेबल की दीवार पर लगा लिया। मुझे इस कविता ने हमेशा ही प्रेरणा दी है, शायद आपको भी पसंद आए;
प्रेक्षण करना, सोचना,
चिंतन मनन करना,
श्रम से ख़ुशी पाना
और अपने कार्य पर गर्व करना,
लोगों के लिए सुन्दरता
और ख़ुशी की रचना करना
और उसमें सुख पाना,
प्रकृति,संगीत और कला के सौंदर्य
पर विमुग्ध होना
और इस सौंदर्य से
अपने आत्मिक जगत को समृद्ध बनाना,
लोगों के दुःख-सुख में
हाथ बंटाना --
यही है
चरित्र निर्माण का
मेरा आदर्श
अगले सप्ताह फिर से नवज्योति के स्थायी स्तम्भ के जरिये आपसे फिर मुलाक़ात होगी,
आपका
राहुल ......
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