वॉरेन बफ़ेट, दुनिया के तीसरे सबसे धनी व्यक्ति, 2012 में 'टाइम' मैग्जीन द्वारा प्रमाणित दुनिया के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति। जिनकी कुल सम्पत्ति 46 बिलियन डॉलर यानि करीब 2,53,000 करोड़ रुपये। जिन्होंने अपनी सम्पति का 99% भाग 'बिल एंड मेलिंदा फाउंडेशन' को दान कर दिया। जिन्होंने दुनिया के 20 सबसे अमीर व्यक्तियों को इकट्ठा कर यह समझाने की कोशिश की, कि उन्हें अपनी सम्पति का आधा हिस्सा परोपकार में लगा देना चाहिए। जो आज भी अपने उसी पुराने घर में रहते है जो उन्होंने आज से 50 साल पहले ख़रीदा था। अमेरिका के नेबरस्का के पास ओहामा में उनका तीन कमरों का निवास बिल्कुल सामान्य पड़ोस की तरह जान पड़ता है। इन सारी बातों में यही वो बात थी जिसने मेरे मन को आन्दोलित किया। उनके रहन-सहन के बारे में और जानकारी जुटाने की कोशिश की तो आश्चर्य हुआ कि न तो वे अपने साथ मोबाइल रखते है और न ही उनकी ऑफिस टेबल पर कोई कम्प्यूटर ही है।
वॉरेन बफेट मुझे जीता-जागता उदाहरण लगे जो धन का उपयोग कर रहे है धन उनका उपयोग नहीं कर रहा। चीजें हमारे जीवन को नहीं चलाए, जीवन को चलाने के लिए हम चीजों को उपयोग में लें। आजकल हमारी हालत तो ऐसी है कि किसी कारण से कुछ घंटों मोबाइल न बजे तो बेचैनी-सी होने लगती है। लगता है हमारी कहीं जरुरत ही नहीं या हमारे पास कोई काम ही नहीं। बच्चे कहीं ऐसी जगह चले जाएँ जहां टी.वी. नहीं हो तो उन्हें ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगती है और महिलाएँ यदि फैशन या चलन की जानकारी न रख पाएँ तो उन्हें लगता है, वे पिछड़ गयी है, कहीं उनका आकर्षण कम न हो जाएँ।
ये छोटी-छोटी बातें यहीं तक सीमित नहीं है, ये हमारी पूरी मनोदशा को रेखांकित करती है। आप कहेंगे, हमने मेहनत से पैसा कमाया है तो हमारा हक़ बनता है कि हम उसका भरपूर आनन्द लें। दूसरी तरफ, ये भी ठीक है कि कम और ज्यादा का कोई मापदण्ड नहीं होता जो आपके लिए कम है वही किसी के लिए बहुत ज्यादा है। अनावश्यक है, फिजूल है। आपकी दोनों बातें बिल्कुल ठीक है लेकिन जरुरत है इन दोनों को उधेड़ने की। पहली बात तो 'धन का आनंद', वो तब ही संभव है जब तक धन, आप जैसी जिन्दगी चाहते है उसे पाने में आपका सहयोग करें न कि उसकी मात्रा यह निश्चित करे कि आप कैसा जीवन जिएँगे। दूसरी बात, 'कम या ज्यादा', तो ये पैमाना सिर्फ आपका अपना होगा आप जिन और जितनी चीजों के साथ सहज है वही आपके लिए बिल्कुल ठीक है, उचित है, न कम न ज्यादा।
जीवन की आधारभूत जरूरतें हमारे कर्म की प्रेरणा हो सकती है लेकिन उसके बाद यह हमारी रचनात्मकता की अभिव्यक्ति ही है। हमारा पुरुषार्थ, हमारी उद्यमशीलता ही है। आप कितना कमाते है और आप कैसे रहते है, ये दोनों अलग-अलग बातें है। आपकी रचनात्मकता आपको अधिक से पुरुस्कृत करती है तो यह ख़ुशी और संतुष्टि का प्रसंग है। यह प्रकृति ओर से दी आपको दी गई शाबासी है, लेकिन यहाँ एक अहम् प्रश्न स्वतः पैदा होता है कि फिर व्यक्ति सहज जीवन से अतिरक्त धन का क्या करें? इसका उत्तर चाणक्य देते है। वे कहते है, धन की केवल तीन गतियाँ होती है; उपभोग, दान एवं विनाश। उचित उपभोग के बाद शेष बचे धन को दान, यानि परोपकार में लगाना ही श्रेष्ठ है वरन उसका विनाश निश्चित है। आप इस सृष्टि के ताने-बाने का एक तागा है, और वस्त्र की सुन्दरता भी आप ही की जिम्मेदारी है।
यही वॉरेन बफेट ने किया। जीवन के साथ अपनी सहजता को बनाए रखा वरना क्या जरुरत थी कि एक प्राइवेट विमान कम्पनी का मालिक, यात्री विमान के इकॉनोमी क्लास में सफ़र करें। आप भी उस बिन्दु को तलाशें जहां आपका रहन-सहन और सहज-जीवन आपस में मिलते हों। यहाँ जिन्दगी की डोर आपके हाथ में होगी और आपकी समृद्धि आपके जीवन में आनन्द की सहायक होगी।
( रविवार, 3फरवरी को नवज्योति में प्रकाशित)
आपका
राहुल ..........
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