किसी भी काम को अच्छे से अच्छा करने कि कोशिश करने से सुंदर कोई बात नहीं हो सकती. एक सच्चा जीवन-साधक वही है जो हर बार पहले से बेहतर करने की कोशिश करें. यही जीवन की प्रेरणा-शक्ति भी है और ऊर्जा-स्रोत भी. अपने काम में परफेक्ट यानि बिल्कुल सही होने की प्यास ही हमें सर्वश्रेष्ठ बनाती है. यही हमारे सफल और अंततः खुशहाल जीवन का मूल-मंत्र है.
आप सोच रहे होंगे कि हर बार जिस तरह मैं अपनी बात ख़त्म करता हूँ, आज शुरू कैसे कर रहा हूँ. आप ठीक सोच रहे हैं. मैं आज 'काम को और बेहतर' करने की बात नहीं कर रहा वरन यह विचार साझा करना चाहता हूँ कि किस तरह शक्कर कि अधिकता चाशनी को कड़वा बना देती है. किस तरह इतना सुंदर गुण जूनून कि हद तक बढ़ हमारे जीवन की सुख-शांति छीन लेता है.
कुछ जीवन-साधक अपने काम को इस तरह मांजते चले जाते है कि उनका काम उनका परिचय बन जाता है. किसी काम से उनका जुड़ा होना ही काम के स्तर कि घोषणा होती है. ठीक वैसे ही जैसे आजकल हम आमिर खान के किसी कार्यक्रम या फिल्म के बारे में सोचते है. किसी व्यक्ति के लिए इससे बड़ा पुरस्कार और क्या हो सकता है?
आपका काम आपका परिचय बने, लोग उसमें आपकी सुगंध पायें लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब हम उसे अपना पर्याय समझने लगते है. आपका पर्याय हो सकता है तो सिर्फ काम के प्रति आपकी ईमानदारी एवम निष्ठा और कोई नहीं. गुड अपनी मिठास से पहचाना जाता है न कि हलवे के स्वाद से. हलवे का बहुत या कम अच्छा बनना सिर्फ एक अनुभव है लेकिन व्यक्ति जब अपने काम या अनुभव को अपना पर्याय बना लेता है तो फिर उसमें छोटी-सी चूक भी बर्दाश्त नहीं कर पाता. उसे लगता है जैसे उसका अस्तित्व ही खतरे में पड गया हो और इस तरह अपने काम में परफेक्ट होने जैसा सुंदर गुण भी अति के कारण जीवन में कुंठा और नैराश्य का कारण बन जाता है.
हो गई ना चाशनी कडवी ? सच तो यह है कि आपका काम आपका बच्चा है. जिस तरह आप अपने बच्चे को सारी अच्छाईयों और कमियों के बावजूद प्यार करते है लेकिन साथ ही जिन्दगी भर उसकी कमियों को दूर करने कि कोशिश करते है उसी तरह आप अपने काम को सम्पूर्णता से स्वीकारें, उसमें भी गलतियों के लिए जगह छोड़ें. गलतियों की स्वाभाविकता को सह्रदयता और सहजता से लें. ये ही वे क्षेत्र है जिन पर आप काम कर अपने जीवन को अधिक बेहतर बना सकते है. किसी भी व्यक्ति या वस्तु का मूल्यांकन उसकी समग्रता के आधार पर करें.
असम्पूर्णता सम्पूर्णता की सुन्दरता तो है ही उसका अटूट हिस्सा भी. प्रकृति की ओर नज़र घुमाकर देखें, यह बात सहज ही समझ आ जाएगी. प्रकृति का कोई घटक ऐसा नहीं जिसमें बाँकपन न हो. सूर्य ठीक पूर्व मैं नहीं उगता, पृथ्वी पूरी गोल नहीं और चन्द्रमा बेदाग़ नहीं लेकिन क्या प्रकृति से पूर्ण और सुंदर कुछ हो सकता है?
सोचिए पेड़-पौधे और फल-फुल यदि रूप-रंग, स्वाद-सुगंध में एक से होते, यहाँ तक कि हमारी शक्लो-सूरत भी एक सी होती; ठीक वैसी जिसे हम परफेक्ट कहते है तो हमारा जीवन कितना बेजान और नीरस होता. परफेक्शन किसी वस्तु में नहीं व्यक्ति कि नज़र में होता है और परफेक्ट वह व्यक्ति होता है जिसे जीवन के हर पहलू में पूर्णता नज़र आए. अपने काम में त्रुटियाँ नहीं आनंद ढूढीए. हर बार इस आनंद को बढ़ाने कि सोचिए फिर देखिए जीवन में कैसे मिठास घुल जाती है.
आपका
राहुल....
( रविवार, २३ सितम्बर को नवज्योति में प्रकाशित )
No comments:
Post a Comment