Friday, 21 September 2012

क्षमा - क्यों, कैसे और किसे ?





क्षमा कर पाना इंसान का श्रेष्ठतम चारित्रिक गुण और पावन कर्म है. शायद इतना श्रेष्ठ और पावन की हम इसे मानवीय ही नहीं मानते. हम सोचते है कि ये तो किसी महापुरुष के बूते की ही बात है, भला मुझसे कैसे संभव है?

इस प्रश्न से उलझने से पहले हमें एक-दूसरे हठी प्रश्न से दो-दो हाथ करने होंगे वो यह कि ' मैं क्षमा करूँ ही क्यूँ? जब तक हमारी बुद्धि ये नहीं समझ लेती हमारा अहंकार क्षमा न करने के नित-नए बहाने ढूंढता रहेगा. इस बीच यदि हम अपने मन को टटोले तो एक बड़ा हिस्सा अपराध-बोध, क्रोध और घृणा से भरा मिलेगा. मन में इन भावों के होने का अहसास ही जाहिर कर देगा कि किस तरह हम अपने आपको रोके है वह सब करने, होने और बनने से जो हम अपनी जिन्दगी से चाहते है. हमें ठीक वैसा ही लगेगा जैसे हम घर से करने कुछ निकले थे और कर कुछ और रहे है. क्षमा हमें अपराध-बोध, क्रोध और घृणा से मुक्त कर हमारी रचनात्मकता लौटाती है.

आप कहेंगे, सारी बात ठीक है लेकिन ऐसा कोई व्यवहार जिससे हमारा मन आहत हुआ हो, दिल दुख हो; भला! कोई कैसे भूला सकता है? आपकी बात सही लगती है लेकिन इसे सही मानने से पहले हमें लोगों कि छंटनी करनी होगी. पहले तो हम स्वयं, दूसरे वे लोग जिनसे अनजाने ऐसा हुआ और तीसरे वे जो जान-बूझकर लगातार ऐसा कर रहे है.

यदि विगत में ऐसी किसी भूल जिसका पछतावा आज भी आपके दिल में है जिसके बारे में आपको ऐसा लगता है कि काश! में ये नहीं करता या इसकी जगह वो कर लेता तो आज मेरा जीवन, रिश्ते और सफलताएँ कुछ और होती तो एक बात हमेशा ध्यान रखिए, आप आज जो भी है वो अपने अच्छे और बुरे सारे अनुभवों का सम्मिलित परिणाम है. इन गलतियों ने ही आपको इतना परिपक्व और समझदार बनाया है. यदि आपने अपनी गलती से सीख लिया तो उस गलती का उद्देश्य व आपका काम पूरा हो गया, अब उसे और ढोने की कोई जरुरत नहीं. आप अपने को क्षमा कर ही किसी और को क्षमा कर पाने के काबिल बन सकते है.

आपकी अपने प्रति यही सहजता उन लोगों को समझने में मदद करेगी जिन्होंने अनजाने ही आपको आहत किया है. मुझे याद आता है 'पा' फिल्म का संवाद. एक छोटी दोस्त आई. सी.यू में लेटे ऑरो से कहती है कि अपनी गलती पर शर्मिंदा और दिल से माफ़ी माँगने वाला कहीं ज्यादा आहत होता है जिससे वो माफ़ी कि उम्मीद रखता है. व्यक्ति को उसके आचरण से नहीं नीयत से पहचानना चाहिए.  

अब आते है वे लोग जो जान-बूझकर ऐसा व्यवहार करते है जो आपको तकलीफ पहुँचाए. ऐसे लोगों से पहली बार में कठोर एवम स्पष्ट शब्दों में अपनी असहमति व्यक्त कर दें. हो सकता है इन्हें ग़लतफ़हमी हो कि आपको अपनी तकलीफों कि वजह का अंदाजा ही नहीं. ऐसा है तो आइन्दा ये अपना व्यवहार सुधार लेंगे और आपके लिए उनके उस व्यवहार को भूला देना कहीं आसान होगा.

जो लोग इसके बाद भी अपने व्यवहार को दोहराते है उनसे दूरी बनाना ही अच्छा, यह समझकर कि जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण भिन्न है. ये सिखाते है कि हमें जीवन में कैसा व्यवहार कभी नहीं करना चाहिए. इन लोगों से दूरी ही आपके जीवन में शांति लौटाएगी जो हमें बुरे सपने की तरह उनके व्यवहार को भुलाने में मदद करेगी. अंग्रेजी में एक कहावत है, ' सूअर के लिए तो कीचड़ आनंद है पर आप उससे उलझकर अपने कपडे ही खराब करेंगे.'

कुछ लोग इससे भी आगे बढ़ जाते है. आपकी भलमानसता को कमजोरी समझाने लगते है. अपने निजी स्वार्थों के लिए आपका ही अहित करने से भी जरा नहीं हिचकते. ऐसे लोगों के प्रति क्रोध जायज है और आपको अपने बचाव का अधिकार भी. हर आदर्श की एक सीमा होती है नहीं तो कृष्ण शिशुपाल का वध नहीं करते ओर राम रावण से युद्ध नहीं करते. वो क्षमा नहीं कायरता है जो हमारे आत्म-सम्मान को गिराएँ, हमारी निजता पर अतिक्रमण करें लेकिन ध्यान रहें, आपका क्रोध अँधा न हो. आपकी प्रतिक्रिया व्यवहार के प्रति हो व्यक्ति के प्रति नहीं.

क्षमा का यही बहुआयामीपन व्यक्ति को साधारण से असाधारण बनता है. यह महापुरुषों का गुण नहीं बल्कि वो रसायन है जो व्यक्ति को महापुरुष बनता है.

( इतवार १६ सितम्बर को नवज्योति में प्रकाशित )
आपका
राहुल....

2 comments:

  1. Absolutely correct!!
    Wah!! kya bhawpoorna aur sashakt abhivyakti hai Rahul! Honestly, ek ek shabd ko gehanta se ghada hai, har ek bhawna ko sunderta se abhivyakt kiya hai.
    Bilkul sahi hai ki Kshama agar tahe dil se na ki jaye toh kewal ek aupcharikta hi hogi. Sahi mayane mein Kshama karna, mangne se kathin hai magar antarman ko kanhi adhik tript karne wala hota hai.
    Aapke shabdon ke chayan evom bhawnaon ki abhivyaktiyon ko pranaam!!!

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  2. Boss, hoslaafjaai ke liye tahe dil se dhanywad.Aapki prashansha main duaayen jhalakti hai aur ye sab usi ka parinaam hai.

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