जीवन में एक जगह खड़ा ही नहीं रहा जा सकता; या तो आप आगे कि और बढ़ रहे है वरना आप नीचे कि और फिसलने लगेंगे. यह ढलान कि चढ़ाई है.
सेना जब दुश्मन पर चढाई करती है तो जिन पुलों को पार करती जाती है उन्हें जलाती जाती है. वे पीछे जाने का कोई अवसर ही नहीं छोड़ना चाहते. उनके जेहन में सिर्फ एक बात होती है या तो दुश्मन के घर पर कब्ज़ा कर लेंगे या मर मिटेंगे.
जब हम पीछे जा ही नहीं सकते, एक जगह खड़े हो ही नहीं सकते तो बेहतर है कि आगे बढे.
इस जगह यह बात समझने कि जरुरत पैदा होती है कि हम अपनी जीवन-यात्रा में कई मोड़ों पर ठहर ही जाना क्यूँ चाहते है? क्यूँ हमारे मन में आगे बढ़ने का उत्साह कम होने लगता है?
सेना जब दुश्मन पर चढाई करती है तो जिन पुलों को पार करती जाती है उन्हें जलाती जाती है. वे पीछे जाने का कोई अवसर ही नहीं छोड़ना चाहते. उनके जेहन में सिर्फ एक बात होती है या तो दुश्मन के घर पर कब्ज़ा कर लेंगे या मर मिटेंगे.
जब हम पीछे जा ही नहीं सकते, एक जगह खड़े हो ही नहीं सकते तो बेहतर है कि आगे बढे.
इस जगह यह बात समझने कि जरुरत पैदा होती है कि हम अपनी जीवन-यात्रा में कई मोड़ों पर ठहर ही जाना क्यूँ चाहते है? क्यूँ हमारे मन में आगे बढ़ने का उत्साह कम होने लगता है?
मैंने कई लोगों को यह कहते सुना है कि जीवन एक संघर्ष है. में जिन्दगी से लड़ते-लड़ते थक गया हूँ. मुझसे अब और नहीं होता. खूब कर लिया. मैं और कर ही क्या सकता हूँ?
जीवन सकारात्मक ऊर्जा का मूर्त रूप है संघर्ष शब्द ही नकारात्मक है. आप संघर्ष कर रहे है मतलब किसी न किसी के विरुद्ध है. जीना शब्द अपने साथ ' आनंद ' को लिए है वंही ' लड़ाई ' शब्द अपने साथ ' हार-जीत ' और ' थकान ' को लिए है. हम से अब और इसलिए भी नहीं होता क्योंकि यह लड़ाई के बाद कि थकान होती है.
' मैंने खूब कर लिया ' या ' मैं क्या कर सकता हूँ? ' ये भावनाएं वास्तव में तब घर करने लगती है जब हमें कड़ी मेहनत और बार-बार के प्रयासों के बावजूद मनचाहे परिणाम नहीं मिलते. ऐसे समय हमें यह देखने कि जरुरत है कि क्या हमने प्रयासों में बदलाव किया. यदि हम किसी काम को एक ही तरीके से बार-बार करेंगे तो हम हर बार वो ही परिणाम पायेंगे. हमें परिणामों में बदलाव के लिए प्रयासों में बदलाव लाना होगा.
प्रयासों में बदलाव के लिए हमें ठिठकना भी होगा. यह छोटा सा अंतराल हमारी आगे कि यात्रा के लिए जरुरी भी है जब हम यह सोच सकें कि हमें प्रयासों में बदलाव क्या और कैसे लाने है. यह पड़ाव आगे कि यात्रा के लिए अपने आपको तैयार और तरोताजा करने के लिए है न कि हार मानकर बैठ जाने के लिए. हमें ठिठकना है ठहरना नहीं.
मुझे याद आता है बचपन में पापा शाबासी देने के साथ यह कहा करते थे बेटा! अगली बार और बेहतर करने कि कोशिश करना. उस समय यह बात खुद की सफलता को कमतर करने सी लगती थी लेकिन आज समझ आता है की सफलता की निरंतरता के लिए ' और बेहतर करने ' की भावना कितनी जरुरी है. सच तो यह है की हम यदि इस क्षण को ' और बेहतर ' जीने की कोशिश करेंगे तो हम जीवन के हर क्षण का पूरा-पूरा आनंद तो उठा ही रहे होंगे साथ ही जीवन में स्वतः ही आगे की ओर भी बढ़ रहे होंगे जहाँ थकान और ठहराव का कोई स्थान नहीं होगा.
हमारा जीवन और बेहतर बने दिल से इन्ही शुभकामनाओं के साथ;
आपका
राहुल....
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