Wednesday, 15 June 2016

खुशियों की तैयारी




दुनिया में ऐसा कोई नहीं जो खुश नहीं रहना चाहता। कम से कम ये एक बात तो हम सब में कॉमन है ही, और मुझे नहीं लगता इसमें कोई दो राय होगी। खुशियाँ, चाहिए हम सबको और है बहुत कमों के पास, डिमाण्ड और सप्लाई में इतना बड़ा गैप शायद ही और किसी में हो, इसलिए है भी ये बहुत कीमती। पर विचार करते-करते एक बात चौंकाने वाली दिखी, और वो ये थी कि इसे हमने उस श्रेणी में डाल दिया है जहाँ हमने उन बातों को रख रखा है जो प्रकृति के अधिकार में है, जिस पर हमारा कोई जोर नहीं। 

शायद इसलिए कि हम पैदा तो खुश ही हुए थे पर फिर जैसे-जैसे हम बड़े होते गए ये हमसे दूर होती गई। अध्ययन कहते हैं कि जब हम बच्चे थे, कभी किसी तो कभी किसी बात पर दिन में 400 बार होंठों पर मुस्कराहट थिरक उठती थी, और अब बड़े होने पर हालत ये कि बमुश्किल 40 बार आ पाती है। हमने सोचा यह स्वाभाविक होगा, जैसे बड़े होने के साथ हमारी आवाज बदलती है या दूसरे परिवर्तन आते हैं वैसे ही खुशियों के साथ भी होता होगा! 'यही जिन्दगी है!' - हम खुश हैं तो हैं और नहीं तो नहीं, जैसा हमारा भाग्य। जीवन की परिस्थितियाँ हमारे तो बस में नहीं, हमारा काम तो बस उसका डटकर मुकाबला करना है, बस। कभी हम हार जाते हैं तो कभी जीत, जीत गए तो खुश हो लिए और हार गए तो दुखी; पर हाथ में कुछ नहीं, जैसा नियति ने लिखा है वैसा भोगना है। 

तो फिर ये सारा ज्ञान, सारा कर्म किसलिए? क्या हम महज परिस्थितियों के गुलाम भर हैं? नहीं, नहीं, ऐसा तो नहीं हो सकता है? हम खुश पैदा हुए थे यानि ये हमारा नैसर्गिक, मूल स्वभाव है। तब तो इसका मतलब ये हुआ कि हम खुश हैं तो नॉर्मल हैं, खुश नहीं हैं तो, एबनॉर्मल। ऐसा हैं, तो फिर आयी कहाँ से ये एबनोर्मल्टी। रुका, सोच और विचार को रोका, और ऐसा करते ही कुछ सतह पर आया। जो आया वो यह था कि हम जैसे-जैसे बड़े होते गए, जिन्दगी की तैयारी करने लगे। पहले तो अपने बड़ों से सुन, फिर अपने आस-पास देख उसकी एक छवि गढ़ ली। ये छवि बड़ी डरा देने वाली थी जैसे जिन्दगी नहीं कोई जंग हो। अब हम इस जंग की तैयारी में जुट गए। हमें ऐसे बिहेव करना है, ऐसे बोलना है, लोग कैसे होते हैं?, क्या-क्या मुश्किलें हमारे सामने आने ही वाली हैं?, और न जाने क्या-क्या। एक योद्धा की तरह हमने आपको लैस कर लिया, अब आप ही बताइए ऐसे में खुशियाँ क्या खाक फटकेंगी हमारे पास?

तो करना बस इतना ही होगा कि इस कवच-बख्तर को, इन हथियारों को उतारना होगा। अपने आपका सहज करना होगा। डर की जगह विश्वास को जगह देनी होगी। ऐसा नहीं कि हमारे ऐसा करने से दुनिया एकदम से अच्छी हो जाएगी, पहले की तरह ही इसमें अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग होंगे, सब दिन अच्छे भी नहीं होंगे लेकिन मेरा पाला अच्छे लोगों से पड़ेगा, मेरे साथ अच्छा ही होगा क्योंकि मेरा विश्वास अच्छाई में है, इस बात को समझना और इस पर भरोसा कायम करना होगा। 

तो जो मैं समझा,
वो ये था कि खुशियों को हर पल का साथी बनाना है तो सब से पहले जिन्दगी की तैयारी में जो कुछ सीखा है उसे अनसीखा करना होगा और उन बातों का अभ्यास करना होगा जो हममें थीं ही। अभ्यास इसलिए की इतने साल हो गए, हमें हमारे स्वभाव की ही आदत नहीं रही। अकारण किसी को देख मुस्करा देना, छोटी सी बात पर खुश हो जाना, अपनी पसन्द-नापसन्द को खुल कर बताना, जो है सो कहना, बात इसलिए करना कि कुछ कहना या जानना चाहते हैं और न कि किसी से जीतना। ........... हाँफने लगा हूँ, ये फेहरिस्त लम्बी है, बस यूँ समझ लीजिए जैसे हम थे वही होने का अभ्यास करना है। 
तो लब्बोलुआब ये कि खुश रहना सीखा जा सकता है, ये हम पर हैं कि हम इसके लिए कितने तैयार हैं और कितना प्रयास करते हैं।   

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