सफलता की ये परिभाषा सचमुच हौसला बढ़ाने वाली लेकिन सोचने पर मजबूर देनी वाली थी। मेरे प्रिय लेखक ऐलन कोहेन लिखते हैं, "व्यक्ति की सबसे बड़ी सफलता अपनी तरह जी पाने में है।"
हौसला बढ़ाने वाली इसलिए कि मेरे अपने जीने के तरीके को समर्थन था। मैं जैसा हूँ ठीक हूँ ये छिपा सन्देश था, जैसे मेरे होने को ही मान्यता थी। और सोचने वाली इसलिए कि अपनी तरह जीना कहते किसे हैं? ये 'अपना तरीका' किसी में कब और कैसे बनता है? या ये उसमें होता है, जन्मजात जैसे डीएनए।
जब मैं इस 'अपने तरीके' को टटोलने लगा तो पाया हम अमूमन उसे अपना तरीका कहते हैं जिसे हमसे पहले किसी और ने आजमा कर वो सब हासिल किया है जो हम भी अपनी जिन्दगी से चाहते हैं। वाजिब भी है हमारा ऐसा सोचना, दो दूनी चार होते हैं तो चार भाजक दो भी तो दो ही होंगे ना? वैसे ही, हम कैसे जीना चाहते हैं ये स्पष्ट हैं तो हमें तरीका भी तो वो ही अपनाना पड़ेगा ना? कारण और परिणाम की यही शिक्षा तो हम स्कूल-कॉलेज में लेकर बड़े हुए हैं। पर न जाने क्यूँ अपने आप से तर्क करते हुए मैं भी ठीक वैसा ही महसूस कर रहा था जैसा पढ़ते हुए अभी आप कर रहे हैं, थोड़ा सा असहज। क्या गड़बड़ है ये तो मालूम नहीं चल रहा था पर कुछ तो है जो ठीक नहीं है ऐसा पक्के से लग रहा था।
काफी सोचने के बाद भी कुछ नहीं सूझा तो लगा दो-चार दिनों के लिए बात यहीं छोड़ देते हैं, प्रश्न करना हमारा काम है जवाब देना प्रकृति का। वो अपने तरीके से जब उचित समझेगी अपने आप बताएगी। मैं दूसरा कुछ पढ़ने-लिखने में लग गया। अचानक एक दिन लगा जैसे कोई मुझसे पूछ रहा था कि जिन्दगी क्या कोई गणित है? ये प्रश्न नहीं जवाब था। और फिर इसके सहारे-सहारे तो मैं चलता ही चला गया। हम चाहे अपने मन से तय करें या किसी को देखकर कि हम अपना जीवन कैसे जीयेंगे लेकिन उसे पाने का तरीका हमारा अपना होगा, वो जो हमारे जीवन-मूल्यों से मेल खाता हो। लता मंगेशकर की बड़ी तमन्ना थी कि वे एक बार के. एल. सहगल के साथ गाए और उतना ही नाम कमाए, उन्होंने शायद उससे भी अधिक कमाया भी पर गाया हमेशा अपनी तरह। बात समृद्धि की हो तो व्यापार नारायण मूर्ति और प्रेमजी अजीम जैसे लोग भी करते हैं और वे लोग भी हैं जिनके नाम रोज अखबारों को भरने के काम आते हैं।
अब बात थी कि ये 'अपना तरीका' जन्मजात होता है या व्यक्ति इसे कहीं से सीखता है? बात लता जी चल रही थी तो इसे भी गायन के उदाहरण से ही समझते हैं, अपनी तरह गाना जन्मजात होता है लेकिन पेशेवर गायिकी में अपना व्यवहार कैसा रखना है, कैसे गाने गाने हैं ये निर्भर करता है उस गायक के जीवन-मूल्यों पर जो उसने अपनी सोच-समझ से चुनें हैं। यानि ये होता जन्मजात है जिसे व्यवहार में लाना व्यक्ति धीरे-धीरे अपने चारों ओर से चुनता है, सीखता है।
तो, जो मैं समझा
वो ये था कि हम जैसे हैं ठीक हैं, हमारे तरीके हमारे अपने हैं जिन्हें बदलने की कोई जरुरत नहीं चाहे हम जो जिन्दगी से चाहते हैं वो किसी और ने किन्हीं और तरीकों से हासिल किया हो। इस तरह सफलता की इस परिभाषा में एक आश्वासन भी छिपा था कि एक ही चीज को कई तरीकों से हासिल किया जा सकता है। ये आश्वासन ही तो इसकी विशेषता है जो हमें हिम्मत देती है अपने विश्वासों, अपने मूल्यों पर टिके रहने की। और ऐसा व्यक्ति तो निश्चित ही सफल है ही।
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