Friday, 21 June 2013

गर्व का विषय


सायली अगवाने निश्चित ही विशेष है। वे मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को नृत्य सिखाती है। इक्कीस वर्षीया सायली स्वयं पिछले तेरह वर्षों से कत्थक का अभ्यास कर रही हैं। यहाँ तक तो ठीक था लेकिन कुछ दिनों पहले जब उन्हें एक रियलिटी शो में नृत्य करते हुए देखा तब पहले तो मुँह खुला का खुला रह गया और फिर आँखे नम हो उठी, मन श्रद्धा से भर गया। मन में तब से अब तक एक ही सवाल उठता है, हमें गर्व किस बात का है, अपने स्वस्थ पैदा होने का? क्योंकि सायली स्वयं भी उन बच्चों जैसी ही है जिन्हें वे नृत्य सिखाती है।

स्वाभाविक था सायली के बारे में और अधिक जानने की उत्कंठा का पैदा होना और जो मालूम चला वो कहीं अधिक आश्चर्यचकित कर देने वाला था। वे जब पैदा हुई तब उनका वजन 1850 ग्राम था और पैर एकदम सपाट। थोड़े ही दिनों में पता चलने लगा कि वे सामान्य नहीं है। सायली के माता-पिता श्रीमती मनीषा-श्री नंदकिशोर अगवाने ने तय किया कि वे तीनों मिलकर इस जंग को जीतेंगे।

सायली का दाखिला एक सामान्य स्कूल में करवाया जहां उन्होंने चौथे दर्जे तक पढाई की लेकिन आगे की पढाई सामान्य स्कूल में कर पाना उनके लिए संभव नहीं था लेकिन साफ़ दिख रहा था उनमें नृत्य है। अब वे विशेष बच्चों की 'जीवन-ज्योति स्कूल' के साथ-साथ कत्थक सिखने 'रूपक नृत्यालय' जाने लगीं। इस समय उनकी उम्र आठ वर्ष रही होगी। इस बात को तेरह वर्ष बीत गए। आज सायली सुबह 8.30 बजे अपनी स्कूल जाती है जहां से वे 4.30 बजे लौटती है। 6 से 7 कत्थक के अभ्यास के लिए रूपक नृत्यालय व रात 8.30 से 9.30 शामक डावर क्लासेज। इसके बीच वे स्वयं 'सायली डान्स क्लास' चलाती है जहां अपने जैसे बच्चों को नृत्य सिखाती है और अप्रत्यक्ष रोप से जीना। उन्हें अपने नृत्य के लिए कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है और शायद ही ऐसा नृत्य का टी.वी. प्रोग्राम होगा जहाँ सायली ने विशेष प्रस्तुति न दी हो।

उनको जानकार एक बात बिल्कुल स्पष्ट हो गई कि गर्व का विषय यह नहीं है कि आपको प्रकृति से क्या मिला है अपितु यह कि जो कुछ आपको मिला है उसका आपने क्या किया है। विश्व प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक एवम पुनर्जन्म विशेषज्ञ डॉ.ब्रायन विस्स ने यह साबित कर दिया है कि हम हर बार तय करके आते है कि इस बार हमें क्या अनुभव करना है, हाँ उन अनुभवों का जवाब हम कैसे देते है यह हमेशा ही हम पर निर्भर करता है। यहाँ आने के बाद हम भूल जाते है कि हमारा अनुभव हमारा चुनाव है और हम दूसरों के अनुभवों से ईर्ष्या-प्रतिस्पर्द्धा करने लगते है। हम पूरी शिद्दत से जवाब देने की बजाय अपने अनुभवों को बदलने की उधेड़बुन में लगे रहते है और जो हमने ही तय किया था उसका भरपूर आनन्द नहीं उठा पाते। ठीक वैसे ही जैसे किसी रेस्टोरेंट में जाकर आप कुछ खाने का ऑर्डर दें। जब आपका खाना आ जाए तो आप दूसरों का खाना देख-देखकर यह अफ़सोस मनाते रहें कि आपने वही ऑर्डर क्यूँ नहीं किया और इस चक्कर में अपने ऑर्डर किए पसंदीदा खाने का भी लुत्फ़ नहीं उठा पाएँ।

हो सकता है आप पुनर्जन्म और इन सिद्धान्तों में विश्वास न रखते  पर एक बात तो तय है कि दुनिया प्रयासों को याद रखती है परिणामों को नहीं। परिणामों में आपकी प्रतिस्पर्द्धा हो सकती है प्रयासों में नहीं। परिणाम बेहतर हो सकते है प्रयास हमेशा ही अद्वितीय है। परिणाम व्यक्ति को सफल बना सकते है, असाधारण नहीं। सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, दलाई लामा, आन सांग सु की और न जाने कितने ऐसे लोगों का जीवन यह सिद्ध करता है कि व्यक्ति के प्रयास ही व्यक्ति के जीवन को सार्थक बनाते है।

आपको इस जीवन में जो भी मिला है वह बिल्कुल ठीक और पर्याप्त है, उसके लिए जो आपको इस जीवन में हासिल करना है बशर्तें हम पूरे विश्वास के साथ इसे स्वीकारें और इसका सही इस्तेमाल करें।  सायली इस बार यही सीखने-सिखाने आयी है। क्या वे इतना सुन्दर पाठ हमें पढ़ा पाती, यदि वे सामान्य होतीं?


(जैसा कि नवज्योति में रविवार, 16 जून को प्रकाशित)
आपका 
राहुल ...........                                         

2 comments:

  1. Beautifully written and so well exemplified with Siyali.
    You have great art of writing.

    PROF. DR M. R. JAIN FICS, FAMS

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