यदि मैं आपसे कहूँ कि आज मैं आपको एक ऐसा नुस्खा बताने वाला हूँ जिससे सारी अच्छी बातें आप बिना किसी अभ्यास के ही सीख जाएँगे तो आप जरुर इसे मेरी वाक्-पटुता समझेंगे, लेकिन विश्वास मानिए, ऐसा नुस्खा मेरे पास है। अरे भाई! बताता हूँ, थोडा धीरज रखिए। नुस्खा सीधा-सा है, 'अंदर से बच्चे बने रहिये'। अरे! पहले मेरी बात सुनिए, फिर आपको ठीक न लगे तो नकार देना।
आपको नहीं लगता, बच्चों में वे सारे गुण होते है जिन्हें पहले तो हम दुनियादारी के नाम पर भुला देते है फिर उन्हें ही आध्यात्मिकता के नाम पर बाकि की जिन्दगी सीखने की कोशिश करते है। चलिए, मैं आपको कुछ एक गिनवाता हूँ,- वे 'लोग क्या कहेंगे' की परवाह नहीं करते, खुश रहना उनकी पहली प्राथमिकता होती है, वर्तमान में जीते है, दूसरों को माफ़ कर देने की उनमें अदभूत शक्ति होती है, वे आपकी किसी एक बात से नाराज़ है तो उसका आपकी किसी दूसरी बात पर कोई प्रभाव नहीं होता; मुझे नहीं लगता ये सूची आसानी से ख़त्म हो सकती है। मजे की बात तो यह है कि ये सारी बातें हम में थी, इन सारे गुणों के साथ हम पैदा हुए थे लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते गए व्यक्तित्व के इस खुलेपन से हमें डर लगने लगा। हमें हमारी सफलता, समृद्धि, वर्चस्व के खो जाने का डर सताने लगा। इस डर से बचने के लिए हमने अपने चारों ओर दीवार खींच ली। पर हुआ क्या, जितनी ऊँची हम दीवार खींचते, उतना डर बढ़ता गया और इस दीवार ने किया क्या, डर तो भगाया नहीं अलबत्ता खुशियों को जीवन में आने से जरुर रोक दिया।
अब हुआ सो हुआ, बस इस दीवार को गिरा दीजिए, अपने अंदर के बच्चे को जगाइए। बच्चों की नज़र से देखिये, कभी बचकानी हरकतें भी कीजिए। आपकी सफलता, आपकी समृद्धि, आपका वर्चस्व आपसे कोई नहीं छीन सकता चाहे इसके चारों ओर दीवार हो या न हो। हाँ, दीवार नहीं होगी तो आपकी सफलता, समृद्धि और वर्चस्व; खुशियों को अपनी ओर आकर्षित जरुर कर पाएँगी।
हम सब के जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ जरुर आती है जब हमें लगता है 'ये नहीं हुआ तो क्या होगा'। हम इतने घबरा जाते है कि जैसे ये काम नहीं हुआ तो दुनिया ही लुट जाएगी। यहाँ तक कि कई बार अंध-विश्वासों में फँस जाते है या ईश्वर के सामने गिडगिडाने लगते है। हम इतने घबराये होते है कि हमें दूसरी संभावनाएँ नज़र ही नहीं आती। हो सकता है प्रकृति चाहती हो कि हम दूसरी संभावनाओं को भी तलाशें। हम अपने होने न होने को उन परिस्थितियों से जोड़कर देखने लगते है। ऐसे मुश्किल दौर में एक मिनट के लिए ठिठक कर सोचिए कि आपकी जगह कोई और बच्चा होता तो क्या करता? मेरा विश्वास है कि आपको अपने अधिकाँश सवालों के जवाब मिल जाएँगे और आप कहीं अधिक जोश के साथ जिन्दगी जीने को प्रस्तुत होंगे।
बस इतना कीजिए, रोज़ाना थोडा समय बच्चों के साथ गुजारिए, ऐसा समय जब आप उनके बराबर हो जाएँ। कुछ उनके जैसा कीजिए, जिन्दगी जीना आ जाएगा।
आपको आपके लौट आए बचपन की दिल से मुबारकबाद।
(दैनिक नवज्योति में रविवार, 5 मई को प्रकाशित)
आपका
राहुल...........
Wah Rahul dada! Wah! As usual, u r an amazing writer with full of originality & clarity.
ReplyDeleteSuper expressions with gr8 feel.
thnx fr sharing with us.
M learning a lot out of ur posts.
GOD BLESS U dear!
ईमानदारी से कहूँ तो खुद के बारे में किसी और के मुँह से राइटर सुनना अच्छा लगता है और फिर आपकी प्रशंसा भी हुई हो तो क्या बात है, वो भी उस आदमी ने की हो जो खुद लाइफ कोच हो और इस विषय में अच्छी-खासी दखल रखता हो।
ReplyDeleteथैंक यू यार .......
Dear rahuilji, Once again a good massage, other day I was listening that if there is GOD of happy ness then it is the child and childhood.
ReplyDeleteDr parmanand
आप कितनी बड़ी बात कितने कम शब्दों में कह देते है। आप ने जो कहा उसमें कोई दो राय हो ही नहीं सकती।
ReplyDeleteआप जैसों के ये सहमति भरे शब्द विश्वास दिलाते है की मेरी सोच सही दिशा में है और मैं आप तक पहुँच पा रहा।
बहुत-बहुत धन्यवाद।।
Excellent explanation but it is not totally true. Childish behaviour can put you in lot of problems which can not be separated once you behave like a child. Life has to have Childlike Carefree Nature, youth like enthusiasm and wisdom of a mature person. As every drug has side effects, so is the side effects of CHILDLIKE BEHAVIOUR.
ReplyDeleteThanks
MRJ
PROF. DR M. R. JAIN FICS, FAMS
I agree with you.This response has made my article complete.This is what I exactly wanted to say that we may be in any age but always maintain a fearless approach & attitude towards life like a child.
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