Friday, 12 April 2013

आनन्द और प्रेम



यह सच है कि हमारे कुछ करने या न करने से कोई फर्क नहीं पड़ता। कोई रास्ता कहीं नहीं पहुँचाता। आप चाहे जितने विवेकी हों, आप कुछ पा नहीं सकते, कोई आपसे कुछ छीन नहीं सकता। आप सम्पूर्ण है, थे और रहेंगे। ये सारी बातें सुनी सबने है पर अध्यात्म हमें इसका अनुभव कराता है। जब हम स्वयं को जानने-समझने की कोशिश में लगे होते है तब एक जगह आकर ऐसा लगने लगता है कि कुछ करने की जरुरत नहीं। अगर यह सब निरर्थक है तो कुछ नहीं करना ही अच्छा। शायद यही कारण है कि हम में से अधिकांश लोग अध्यात्म से कतराते है या इसे उन लोगों के लिए ठीक समझते है जिन्होंने अपनी जिन्दगी को भरपूर जी लिया हो।

यह सत्य की गलत व्याख्या है, अर्थ का अनर्थ है। आत्म को जानना कभी आत्मिक सुख से दूर नहीं कर सकता वैसे ही जैसे अपनी पसंद को जानना कभी आपको नाखुश नहीं कर सकता। अरे! जब परमात्मा ही प्रतिक्षण सृजन में लिप्त है तो अध्यात्म हमें निष्क्रिय कैसे बना सकता है? यह ज्ञान कि 'हम ईश्वर की स्वतंत्र भौतिक अभिव्यक्ति है' और 'विशुद्ध प्रेम हमारी ऊर्जा है', तो हमें समर्थ बनाता है कि हम वो करें जिसे सोचने मात्र से हम अपने आपको अधिक जीवित महसूस करते हों, जिसे करना हमें अपनी सम्पूर्णता और सार्थकता का अहसास कराता हो। जब हम कुछ भी करें और कोई फर्क नहीं पड़ता तो वो क्यूँ करें जो मन कचोटता हो। हम वो करें और वैसे करें कि हमारी सुगन्ध उसमें हमेशा ताजा कायम रहे। हमारा कुछ भी किया हमारी उपस्थिति दर्ज कराए।

अपनी बात को और ढंग से कहने के लिए माँ के हाथ की बनी रोटी से बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है। रोटी बनाने में कोई बड़ी विद्या नहीं, पर माँ के हाथ की रोटी का स्वाद हो कुछ और होता है। माँ खाना खिला रही हो, और बीच में किसी और के हाथ की बनी रोटी आ जाए तो फट से मालूम हो जाता है क्योंकि वह रोटी प्रेम की आँच पर सीकी होती है। हम भी तो अपने किए और न किए के सृजक है, माँ है।

इन सारी बातों का निचोड़ सिर्फ इतना ही कि आप अपने जीवन की नींव उन मूल्यों पर रखें जिन्हें आपका अंतर्मन सहज स्वीकार करता हो। याद रखें, आप ईश्वर की स्वतंत्र भौतिक अभिव्यक्ति है और आपकी अद्वितीयता से ही इस संसार की सुन्दरता है। अपने जीवन का वो रास्ता चुनें जो आपको ख़ुशी देता हो। आपके कुछ करने या न करने का प्रथम आधार उससे मिलने वाला आत्मिक आनन्द हों। जिस काम से आपको आत्मिक आनन्द मिलेगा उसे ही तो आप विशुद्ध प्रेम की उष्मा दे पाएँगे। विशुद्ध प्रेम, जो हमारे वज़ूद की वजह है। यदि कोई काम आप प्रेम से नहीं कर सकते तो बेहतर है उसे न करें, चाहे बात रोजमर्रा के छोटे-मोटे कामों की हो या जीवन के महत्ती कामों की।

सार-संक्षेप यही कि आत्म की दृष्टी से कुछ भी करने योग्य नहीं फिर भी कर्म हमारा स्वभाव है अतः अपने जीवन में आत्मिक आनन्द का सृजन करते चलिए और शेष उस सृजक पर छोड़ दीजिए जिसकी हम सृजना है। खलील जिब्रान गागर में सागर यूँ भरते है, " अपने कर्मों की बाँसुरी बन जाएँ। बाँसुरी, जिसके ह्रदय में घंटों फूंकने का जतन संगीत बनकर निकलता है। जिन्दगी का गूढ़ रहस्य है उसे मेहनत के जरिये प्रेम करना। हमारे कर्म अन्तरम प्रेम के इज़हार का जरिया हों, वे ही आत्मिक आनन्द देंगे।"


(दैनिक नवज्योति में रविवार, 7 अप्रैल को प्रकाशित)
आपका 
राहुल .............    

3 comments:

  1. Dear Rahul,

    You write beautifully. I think very few percentage of population try to understand such beautiful thoughts but they are really very valuable thoghts.
    MRJ

    Thanks once again uncle.
    It is more imp that people like you appreciate my thoughts than be worried for no.of non-serious readers.
    Moreover, we can be like ourselves only.You find them beautiful and valuable, it is sufficient.

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  2. Yes,very true. Buddha also says:
    To be idle is a short road to death and to be diligent is a way of life; foolish people are idle, wise people are diligent.
    (a mail from Shakuntalaji Mahawal)

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