' काम को जल्दी में नहीं उसकी सम्पूर्णता के साथ कीजिए, छोटे-छोटे प्रलोभन आपको बड़ी उपलब्धियों से वंचित रख देंगे। '
- कन्फ्यूसियस
आचार्य चाणक्य को कहाँ जरुरत थी कि वे धनानंद से बदला लेने के लिए इतना प्रपंच करते। वे किसी तरह धनानंद को मरवा देते और उनका बदला पूरा हो जाता लेकिन क्या तब हम उन्हें इसी श्रद्धा और सम्मान से याद करते? निश्चित रूप से, नहीं। उन्होंने अपने अपमान को उस समय के समाज में गिरते हुए मूल्यों और देश की बदहाल कानून-व्यवस्था के प्रतीक के रूप में देखा और जुट गए नव-भारत निर्माण में। यही है काम को उसकी सम्पूर्णता के साथ करना।
आपकी बात बिलकुल सही है कि सभी महापुरुष तो नहीं हो सकते लेकिन विश्वास मानिए ये बात हमारे जीवन के नव-निर्माण पर भी उतनी ही शिद्दत से लागू होती है। आज हमें किसी भी काम को करने के बाद ठीक वैसा ही लगता है जैसा अपने विद्यार्थी जीवन में परीक्षा परिणाम के दिन लगता था कि काश मैं थोडा वो भी कर लेता कितना छोटा सा हिस्सा था और मेरे लिए मुश्किल भी नहीं। वास्तव में ' शॉर्ट-कट ' हमारी जीवन शैली बन गई है और अफ़सोस मानना हमारी आदत।
हमें लगता है कि ये सब इसलिए हुआ क्योंकि आज की तेज-रफ़्तार जिन्दगी में हमें कितना कुछ करना होता है और समय है कम। 'एक जान, हज़ार अरमान' वाली उक्ति शायद हम जैसों के लिए ही बनी है पर मैं आपको बता दूँ कि शॉर्ट-कट अपनाने का हमारा यह तर्क बिलकुल सतही है। यदि हम सब अपना-अपना काम ढंग से करें तो आत्म-संतुष्टि के प्रतिफल के साथ हमारी वाजिब इच्छाएँ स्वतः पूरी होंगी। सारी समस्या यह है कि हम कर्म की बजाय परिणामों को अपना ध्येय बना लेते है। आपस की बातचीत में आपने कई बार सुना होगा; अभी तो एक ढंग की कार खरीदनी है, बच्चों को पढ़ाना है, घर बनाना है और फिर बच्चों की शादियाँ भी तो करनी है और फिर लग जाते है इन सब के ' जुगाड़ ' में। हम अपने काम को पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ करने और उस पर एतबार करने की बजाय इधर-उधर हाथ मरने लगते है और अपनी सुंदर जिन्दगी को 'तनाव', 'भाग-दौड़', 'तेज-रफ़्तार', जैसे विशेषणों से सजा देते है। अपने काम पर विश्वास और उसके प्रति हमारी ईमानदारी और निष्ठा आत्म-संतुष्टि के साथ हमारी अभिलाषाएँ तो पूरी करेंगी ही, समाज में प्रतिष्ठा का अतिरिक्त लाभ भी देगी।
टेक्नोलोजी के इस युग की इन्सान को सबसे कीमती भेंट है तो वह है ' समय की बचत '। आज हर चीज को बनाते समय सबसे अहम् यही बात ध्यान रखी जाती है कि ये उपयोग करने वाले का कितना समय बचाएगी। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया कि इस बचे हुए समय का हम करते क्या है? यह समय बचाया था इसलिए कि हम अपना काम ढंग से कर लें लेकिन इन चीजों के बीच रहते-रहते हम अपने काम को भी इन उपकरणों की शैली में करने लग गए।
जिन्दगी में धीरे होना और अपने काम को सम्पूर्णता से करना एक कला है। धीरे-धीरे स्वाद लेकर थोडा भी खाया हुआ संतुष्टि देता है। मैं शर्तिया कह सकता हूँ कि आपकी जिन्दगी के दस यादगार अनुभव वे ही होंगे जिनमें आपने अपना शत-प्रतिशत दिया होगा। धीरे होने में स्मृति है तो तेज होने में विस्मृति। काम की सम्पूर्णता ही जीवन में संतुष्टि की संजीवनी है।
( रविवार, 28 अक्टुबर को नवज्योति में प्रकाशित )
आपका
राहुल......
काम को मन से पूरा कीजिए ..
ReplyDeleteबहुत अच्छी शिक्षा
बहुत-बहुत धन्यवाद, संगीता जी।
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