दुनिया में कुछ भी अपनी सम्पूर्णता में अच्छा या बुरा नहीं होता. अहम् के बारे में भी मेरा ऐसा ही मानना है. हमारा जीवन हमारे द्वारा किए गए चुनावों का नतीजा होता है. इस क्षण में हम क्या करने का चुनाव करते है यह ही निश्चित करता है कि अगले क्षण के लिए प्रकृति हमें चुनाव के लिए क्या-क्या विकल्प देगी. यही जीवन है.
इस क्षण को हम कैसे जियेंगे इसका निर्णय हमें अंतरात्मा कि आवाज़ पर करना होगा. अंतरात्मा कि आवाज़ जिसे हम मन कि इच्छा, inner calling, intution, दिल कि आवाज़ जैसे नामों से पुकारते है.
एक ही क्षण में, समान परिस्थितियों में एक बच्चा फुटबॉल खेलना चाहता है तो दूसरा कोई पहेली सुलझाना चाहता है. दोनों ही बच्चों के निर्णय न तो सही है न गलत बस अपने-अपने है. दोनों ने ही वो किया जो उनका मन किया और वह ही दोनों के लिए ठीक भी है.
हमारे लिए क्या ठीक है यही स्व को पहचानना है एवं स्व कि पहचान ही तो हमारा अहम् है, यानि अहम् उतना भर जरुरी है जिससे हम इस क्षण को कैसे जियें इसके लिए उपलब्ध विकल्पों को जानकार उनका विश्लेषण कर सकें तब ही तो हम यह तय कर पाएंगे कि इस क्षण को जीने का कौनसा अंदाज़ हमें सच्चे अर्थों में अभिव्यक्त करेगा.
अहम् स्व कि पहचान (self-knowing) है यह अहंकार (false-self) में नहीं बदलना चाहिए; जैसा कि सामान्यता हो जाता है और हम अपनी और अपनों कि जिन्दगी खराब कर लेते है. हम परमात्मा कि स्वतंत्र भौतिक अभिव्यक्ति है और यही हमारी पहचान है, न कि हमारी सांसारिक उपलब्धियाँ. अभिव्यक्ति कि इस स्वतंत्रता और निजता को बनाए रखना ही हमारा अहम् है और उतना ही जरुरी भी. अहम् कि भावना जैसे ही बढ़ती है यानि जैसे ही हम अपनी पहचान सांसारिक उपलब्धियों से बनाने लगते है हमारा यही गुण हमारे लिए विनाशकारी हो जाता है.
हम अपनी और अपनों कि निजता का सम्मान करें और जिन्दगी के हर क्षण को अपनी सुगंध से भर पायें ; दिल से इन्ही शुभकामनाओं के साथ,
आपका
राहुल.....
इस क्षण को हम कैसे जियेंगे इसका निर्णय हमें अंतरात्मा कि आवाज़ पर करना होगा. अंतरात्मा कि आवाज़ जिसे हम मन कि इच्छा, inner calling, intution, दिल कि आवाज़ जैसे नामों से पुकारते है.
एक ही क्षण में, समान परिस्थितियों में एक बच्चा फुटबॉल खेलना चाहता है तो दूसरा कोई पहेली सुलझाना चाहता है. दोनों ही बच्चों के निर्णय न तो सही है न गलत बस अपने-अपने है. दोनों ने ही वो किया जो उनका मन किया और वह ही दोनों के लिए ठीक भी है.
हमारे लिए क्या ठीक है यही स्व को पहचानना है एवं स्व कि पहचान ही तो हमारा अहम् है, यानि अहम् उतना भर जरुरी है जिससे हम इस क्षण को कैसे जियें इसके लिए उपलब्ध विकल्पों को जानकार उनका विश्लेषण कर सकें तब ही तो हम यह तय कर पाएंगे कि इस क्षण को जीने का कौनसा अंदाज़ हमें सच्चे अर्थों में अभिव्यक्त करेगा.
अहम् स्व कि पहचान (self-knowing) है यह अहंकार (false-self) में नहीं बदलना चाहिए; जैसा कि सामान्यता हो जाता है और हम अपनी और अपनों कि जिन्दगी खराब कर लेते है. हम परमात्मा कि स्वतंत्र भौतिक अभिव्यक्ति है और यही हमारी पहचान है, न कि हमारी सांसारिक उपलब्धियाँ. अभिव्यक्ति कि इस स्वतंत्रता और निजता को बनाए रखना ही हमारा अहम् है और उतना ही जरुरी भी. अहम् कि भावना जैसे ही बढ़ती है यानि जैसे ही हम अपनी पहचान सांसारिक उपलब्धियों से बनाने लगते है हमारा यही गुण हमारे लिए विनाशकारी हो जाता है.
हम अपनी और अपनों कि निजता का सम्मान करें और जिन्दगी के हर क्षण को अपनी सुगंध से भर पायें ; दिल से इन्ही शुभकामनाओं के साथ,
आपका
राहुल.....
So all you want to say is that don't think about wrong & right of others and live in present; is'nt it.
ReplyDeleteplease thodi samajh me aane vaali language me likhiye
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