Saturday, 14 November 2015

यात्रा के अनुभव




आज एक वर्ष हो जाएगा मेरे लेखन की शुरुआत को, समय कैसे गुजर जाता है, मालुम ही नहीं चलता। 2004 से जब इस विषय को पढना-गुणना शुरू किया था तब कहाँ मालुम था कि यात्रा में एक पड़ाव यह भी आएगा। इस यात्रा ने मुझे सिखाया कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए तीन बातें जरुरी होती है,-


1.काम की शुरुआत 
2.लगे रहें 
3.सपनों को हमेशा जेहन में बनाए रखें 



- प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक 'शुरूआती हिचक' होती है। इस हिचक का कारण चाहे जो हो लेकिन इससे पार पा लेने भर में काम की आधी सफलता छुपी होती है। हेनरी फोर्ड जब अपनी कार की वी-8 श्रन्खला निकालने की सोच रहे थे, जिसमें एक ही ब्लॉक में आठ सिलेंडर होने थे और ऐसा उस समय एक भी कार में नहीं था, तब उनका एक भी इंजीनियर उनके इस विचार से सहमत नहीं था। यहाँ तक कि इस मॉडल के नक़्शे तक बन गए पर इंजीनियर्स का मत था कि ऐसा मॉडल सड़क पर सफल नहीं हो पायेगा। उनके तर्क सुन-सुनकर वे परेशान हो चले थे, आख़िरकार एक दिन वे फैक्ट्री पहुंचे और एक कार मंगवायी। खड़े रह कर वहाँ से उसे काटने को कहा जहां से उसमें बदलाव लाने थे और फिर इंजीनियर्स से बोले, बातें करना बंद कीजिए और नए मॉडल पर काम शुरू कीजिए। आचरण की यही बेबाकी व्यक्ति से आश्चर्यचकित कर देने वाले काम करवा देती है। 



- काम की शुरुआत में तो सभी का मन उत्साह और उमंग से भरा होता है लेकिन फिर धीरे-धीरे बोरियत होने लगती है। हम परिणामों को लेकर अधीर होने लगते है और मन की यही अधीरता व्यक्ति को यह सोचने पर मजबूर करने लगती है कि शायद उससे यह काम संभव ही नहीं। मन की इसी चंचलता की वजह से व्यक्ति का टिक कर एक ही काम में 'लगे रहना' मुश्किल होता है। 'लगे रहने' का यह ज़ज्बा अव्वल दर्जे का संयम मांगता है इसीलिए यह सबसे अहम् हो जाता है। आपने देखा होगा, जब हम किसी वृक्ष को काट रहे होते है तब कुल्हाड़ियों की कितनी चोटों तक वो तस से मस नहीं होता और फिर एक आखिरी चोट और वो धराशायी। वृक्ष पर की गई हर चोट उतनी ही अहमियत रखती है जितनी आखिरी। इसका श्रेष्ठ उदाहरण है थॉमस एल्वा एडिसन। सफल बल्ब बनाने के लिए उन्होंने 900 से अधिक बार कोशिशें की। वे लगे रहे और आखिर बल्ब को जलना पड़ा।



- शुरूआती हिचकक से पार पाना और फिर उसमें लगे रहने की ऊर्जा के लिए जरुरी है कि हमारा ध्येय हमेशा हमारी आखों के सामने बना रहे। काम की शुरुआत से अंत तक चाहे जैसी परिस्थितियाँ आएँ, चाहे जैसी मनःस्थिति बने, हम हर हाल में अपने सपनों को जिन्दा रखें। आचार्य चाणक्य ने जो अखण्ड आर्यावृत का सपना देखा था वो उन्होंने लक्ष्य प्राप्ति तक अक्षु०ण रखा। कैसी-कैसी परिस्थितियाँ और कितना लम्बा अंतराल, लेकिन उनके जेहन में अपने सपने की तस्वीर बिल्कुल साफ़ और स्पष्ट थी और वे उसे रूप देते चले गए। व्यक्ति के मन में अपने लक्ष्य की छवि स्पष्ट हो तो कोई प्रलोभन या परिस्थिति उसे विचलित नहीं कर सकती।



ये तीनों गुण हर इन्सान को मिले हैं; आपको, मुझको, हम सभी को इसलिए बेहिचक सपने देखिए। देखेंगे तब ही तो पूरे होगे  सपने क्या है?, प्रकृति का आपको दिया जॉब-कार्ड ही तो है। प्रकृति को आप पर भरोसा है, वो आपके साथ है फिर आप क्यों अपने सपनों पर प्रश्न-चिन्ह लगाए बैठे है? अपनी बात को विराम देने के लिए सपनों की अहमियत को उकेरती कॉलरिज की इन सुंदर पंक्तियों से बेहतर क्या होगा ......



क्या हुआ जो तुम सो गए 
और तुमने एक सपना देखा,
तुम स्वर्ग में थे 
जहाँ तुमने,
एक अनदेखा खुबसूरत फुल तोड़ लिया,
तुम्हे कहाँ मालुम था 
जब उठोगे 
वो फुल तुम्हारे हाथ में होगा।

No comments:

Post a Comment