इन दिनों रोज एक
घटना लिखनी होती है जो हमें अपने पर और अपनों पर विश्वास करने को प्रेरित
करे। ये मैं अपने फेसबुक पेज 'दिल से' के लिए करता हूँ।
मैं सोचता था, रोज की एक
पॉजिटिव स्टोरी, ये शायद नहीं हो
पाएगा। पर मैं अचम्भित भी हूँ और प्रेरित भी, साथ में ये भी साफ़ होता जा रहा है कि आखिर ये दुनिया किसके भरोसे
चल रही है। इसी दौरान मेरी मुठभेड़ एक ऐसी कहानी से हुई जिसने मेरे इस विश्वास को पक्का
कर दिया कि जीवन में हमारे पास हमेशा ही पर्याप्त होता है। उतना जो हमारे जीवन को
सार्थक कर दें, हम अपने बारे में
अच्छा महसूस करें और लोगों के दिलों में थोड़ी जगह बना सकें।
इसके पहले मुझे
तो नहीं मालूम था कि हम आर्म-रेसलिंग के वर्ल्ड-चैम्पियन हैं। ये गर्व करवाते है
हमें केरल के जॉबी मैथ्यू। आप कहेंगे अच्छा है लेकिन इसमें खास क्या है? खास बात ये है कि उनके पैर 40% ही विकसित है, यानि यों समझ लीजिए वे पैरों के
सहारे सीढ़ियाँ भी नहीं उतर पाते और वे मेडल दिलाते है जनरल केटेगरी में। वे कहते हैं,
"स्कूल के दिनों में, मैं जब और बच्चों को साइकिल पर
स्कूल आते देखता तब मुझे अपने लिए बहुत बुरा लगता था। मैं
जानता था मैं ऐसा कभी नहीं कर पाऊँगा लेकिन फिर भी मैंने कोशिश की, कि मैं इस बात पर ध्यान दूँ कि मैं
क्या कर सकता हूँ बजाय इसके कि क्या नहीं कर सकता।"
उन्होंने स्कूल
में दोस्तों के साथ वॉलीबाल और बैडमिंटन खेलना शुरू किया। खेल तो पाते, लोग उनके हौसलों की दाद भी देते पर
वे टक्कर नहीं दे पाते, जीत नहीं पाते और
मन में एक कमतरी का अहसास बना रहता। उन्होंने नोटिस किया, खेल के बाद दोस्त जब आपस में पन्जा
लड़ाते है तो वे अच्छे-अच्छों को पछाड़ देते है। वो एक समय, एक बात होती थी जब उन्हें अपने लिए अच्छा लगता है
उन्होंने तय किया कि वे आर्म-रेसलिंग को ही चुनेगें और इसी में महारत हासिल करेंगे। वो दिन है और
आज का दिन, उन्होंने अपने
शरीर के ऊपरी हिस्से को इतना फौलादी कर लिया है कि दुनिया भर के रेस्लर उनसे
घबराते है।
आज भी एक घन्टा
जिम, 45 मिनट पेरियार नदी
में तैराकी से उनका दिन शुरू होता है। वे अपने हाथों से सीढ़ियाँ ही नहीं उतर लेते
बल्कि एक हाथ पर अपने पूरे शरीर का वजन ले सिट-अप लगाना उनके अभ्यास का हिस्सा है। इसके बाद वे स्वयं कार चला
नौकरी पर पहुँचते है। वे एक पेट्रोलियम कम्पनी में स्पोर्ट्स ट्रेनर है। नौ स्पोर्ट्स
के कोच, देश के पहले
मल्टीपर्सन स्पोर्ट्समैन। हाल ही में ईश्वर ने उन्हें ढेर
सारे मेडलों के बाद एक पुत्र-रत्न से नवाजा है। उनकी पत्नी स्वयं एक क्लासिकल डांसर है।
सामान्य से बेहतर उनकी जिन्दगी का राज यह है कि उन्होंने इस बात पर ध्यान दिया कि
उनके पास क्या है न की इस पर कि क्या नहीं। जो है उसे तराशा। उसी कच्ची मिट्टी से
घड़ा बनाया जो आज उनकी जिन्दगी के मीठेपन को सहेजे है। सच, हमारे पास हर क्षण पर्याप्त होता है
बस जरुरत होती है तो अपने ध्यान को जो नहीं है कि बजाय जो है उस पर लगाने की।
राहुल हेमराज
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