Friday, 13 September 2013

कोशिश मत कीजिए


यही बात महसूस हुई जब मैं दो दिनों तक यह सोचता रहा कि अगला विषय क्या होगा जिस पर मैं आपसे बात करूँगा। फिल्म के दृश्यों की तरह एक के बाद एक विषय आते और अगले ही क्षण या यों कह लीजिए साथ ही कोई न कोई तर्क (कु) भी चला आता कि क्यों मुझे उस पर बात नहीं करनी चाहिए। थक कर एक क्षण के लिए आँखें मूँदी और अपना सारा ध्यान साँसों पर ले गया तो बस यही एक विचार कौंधा। 

ये विचार पढ़ा तो पहले भी था लेकिन आज से पहले कभी इसे स्वीकार नहीं कर पाया। लगता था हम कोशिश ही नहीं करेंगे तो सफल कैसे होंगे? जीवन में नई बातें कैसे सीखेंगे? इस परत दर परत दुनिया को कैसे ढूंढ़-जान आनन्दित होंगे? जीवन में और गहरे कैसे उतर पायेंगे? आज लगा, यहाँ भी जीवन की वही उलटबाँसी। जब तक कोशिश करो कुछ दूरी बनी रहती है और जो पाना चाहते हो उसे जीना शुरू कर दो तो लगता है यह तो पहले ही से प्राप्त था, बस इसे काम ही में नहीं लिया था। आपको नहीं लगता, कोशिश शब्द ही अपने आप में इस स्वीकारोक्ति को समाए हुए है कि शायद मुझसे नहीं हो पाएगा या मैं नहीं कर पाऊँगा। एक दबी नकारात्मकता। हम जो पाना चाहते है उसके लिए हम जो है उससे कहीं अधिक होना पड़ेगा। 

अपनी आँखों को मूँद अपना सारा ध्यान साँसों पर ले जाते समय ये विचार शायद इसीलिए मन में कौंधा होगा क्योंकि हम साँस लेने की कोशिश नहीं करते बस लेते है। यह हमारी प्रकृति है अतः कोशिश करने की कभी जरुरत ही नहीं पड़ी। कोशिश तो तब करनी पड़ती है जब आप साँस लेने में पूरी तरह सक्षम न हों यानि साँस की तकलीफ हो। ठीक इसी तरह यदि आपके अंतर्मन में कोई विचार उपजा है तो तय मानिए उसका पाना और होना उतना ही सहज है जैसे साँस लेना बशर्ते यह आपके अंतर्मन की उपज हो न कि अहम् या किसी और जैसा बनने की चाह। वेन डब्लू. डायर ने इसे बहुत ही सुन्दरता से कहा है, उन्हीं के शब्दों में, 'इफ यू केन कन्सीव इट, यू केन क्रिएट इट।'

ये हमारे मन के सन्देह ही तो है जो हमें मानसिक रूप से कमजोर बना देते है और तब हम स्वयं ही रास्ते में आने वाली मुश्किलों को बढ़ा अपने असफल होने की संभावनाओं को बढ़ा लेते है। डगमगाए विश्वास की नीवं पर कभी सफलता की पक्की इमारत खड़ी नहीं हो सकती। इसका मतलब ये कतई नहीं कि अंतर्मन की आवाज़ पर किए किसी काम में हम असफल होंगे ही नहीं। बिल्कुल, जीवन में ऐसा कई बार होगा लेकिन तब वो हमारी मेहनत में कमी और तरीकों में बदलाव की जरुरत का सूचक होगा न कि हमारी अक्षमताओं का परिचायक। किसी भी काम को करने का एक विशेष तरीका और उपयुक्त बल की जरुरत होती है। यदि इसे हम समय-समय पर जाँचते-परखते रहें तो आपके होने को कोई नहीं रोक सकता। 

मैं अपनी बात को वॉरेन बफेट की इन सारगर्भित पंक्तियों के साथ विराम दूँगा, " मैं हमेशा से जानता था कि मैं धनी होऊँगा। मैं नहीं सोचता मैंने एक मिनट के लिए भी इस पर सन्देह किया हो। "



(जैसा की दैनिक नवज्योति में रविवार, 8 सितम्बर को प्रकाशित)
आपका,
राहुल .........    

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